यूपी में अपराधी बेखौफ़!
उत्तर प्रदेश के कानपुर में अपराधियों ने एक सनसनीखेज वारदात को अंजाम दिया है। गुरुवार की रात पुलिस जब अपराधियों को पकड़ने के लिए पहुंची, तो अपराधियों ने ताबड़तोड़ फायरिंग की, जिसमें डीएसपी समेत 8 पुलिसकर्मी शहीद हो गये। फायरिंग में 6 पुलिसकर्मी गम्भीर रूप से घायल भी हो गये हैं, जिन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया है। सीएम योगी आदित्यनाथ ने पुलिसकर्मियों की शहादत पर दुख व्यक्त करते हुए मामले में सख्त कार्रवाई का निर्देश दिया है।
हुआ क्या था ?
डीजीपी के मुताबिक हिस्ट्री शीटर विकास दुबे के खिलाफ कानपुर के राहुल तिवारी ने हत्या के प्रयास का केस दर्ज कराया था। इसी सिलसिले में गुरुवार रात एक बजे के करीब, एक पुलिस टीम दबिश देने बिकरू गांव पहुंची। लेकिन बदमाशों को पुलिस के आने की भनक पहले से मिल गई थी। इसलिए उन्होंने शातिर तरीके से जाल बिछाया और जेसीबी वगैरह लगाकर गांव में घुसने के रास्ते रोक दिये। पुलिस पार्टी जब गांव में पहुंची तो उन्हें गाड़ी बाहर ही छोड़नी पड़ी। जैसे ही पुलिसकर्मी गांव में दाखिल हुए, तो उनकी किसी कार्रवाई से पहले ही, छतों पर छुपकर बैठे अपराधियों ने अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी। इसमें सर्कल ऑफिसर (डीएसपी) और 3 सब-इंस्पेक्टर समेत 8 पुलिसकर्मियों की मौत हो गई। इसके बाद बदमाश पुलिस के कई हथियार लूटकर फरार हो गये।
कहां हुई चूक?
दरअसल, विकास को पुलिस के आने की खबर पहले ही मिल चुकी थी। इसलिए उसने अपने घर से कुछ दूर रास्ते में जेसीबी मशीन खड़ी कर दी थी, ताकि पुलिस को रोका जा सके। बदमाश छतों पर छुपकर बैठे थे और जब पुलिस की टीम घिर गई, तो उन्होंने चारों ओर से फायरिंग शुरु कर दी। पुलिस को ऐसे शातिराना हमले की उम्मीद नहीं थी। एडीजी लॉ एंड ऑर्डर प्रशांत कुमार ने बताया कि पुलिस टीम बिना तैयारी गई थी। उसे अंदाजा ही नहीं था कि विकास और उसके कितने साथी असलहों के साथ अंदर हैं। यही चूक भारी पड़ गई।
कौन है विकास दूबे?
हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे कानपुर देहात के चौबेपुर थाना क्षेत्र में विकरू गांव का रहने वाला है। वह कानपुर नगर से लेकर कानपुर देहात तक लूट, डकैती, मर्डर जैसे अपराधों को अंजाम देता रहा है।
- 2000 में विकास ने शिवली इलाके के ताराचंद इंटर कॉलेज के सहायक प्रबंधक सिद्धेश्वर पांडेय की हत्या कर दी थी, जिसमें उसे उम्रकैद की सजा भी हुई थी।
- 2000 में उस पर जेल से ही रामबाबू यादव की हत्या साजिश रचने का आरोप लगा था।
- 19 साल पहले उसने 2001 में थाने में घुसकर इंस्पेक्टर रूम में बैठे राज्यमंत्री संतोष शुक्ला की हत्या कर दी थी। उसका इतना खौफ था कि कोई गवाह सामने नहीं आया और वो बरी हो गया।
- इसके बाद विकास ने राजनेताओं के संरक्षण से राजनीति में एंट्री की और जेल में रहने के दौरान शिवराजपुर से नगर पंचायत का चुनाव जीत लिया।
- विकास ने अपने अपराधों के दम पर पंचायत और निकाय चुनावों में कई नेताओं के लिए काम किया और उसके संबंध प्रदेश की सभी प्रमुख पार्टियों से हो गए।
- 2002 में जब प्रदेश में बसपा की सरकार थी तो इसका सिक्का बिल्हौर, शिवराजपुर, रिनयां, चौबेपुर के साथ ही कानपुर नगर में चलता था।
- 2004 में केबल व्यवसायी दिनेश दुबे की हत्या के मामले में भी विकास आरोपी है।
- 2018 में विकास दुबे ने अपने चचेरे भाई अनुराग पर जानलेवा हमला किया था। तब अनुराग की पत्नी ने विकास समेत चार लोगों को नामजद किया था।
- इस समय विकास दुबे के खिलाफ यूपी के तमाम जिलों में 60 मामले चल रहे हैं। पुलिस ने इसकी गिरफ्तारी पर 25 हजार का इनाम रखा हुआ था।
- 2017 में एसटीएफ ने उसे लखनऊ के कृष्णा नगर से गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था। अब एक बार फिर जेल से निकलने के बाद बड़ी घटना को अंजाम दिया है।
क्या है अपडेट?
उत्तर प्रदेश के कानपुर में 8 पुलिसकर्मियों के शहीद होने के बाद एक्शन में आयी यूपी पुलिस ने दो अपराधियों का एनकाउंटर किया है। कानपुर के आईजी के मुताबिक तलाशी अभियान के दौरान दो पुलिस कर्मी घायल हो गए और दो अपराधियों को मार गिराया गया। इनके पास से ऐसे हथियार भी बरामद किए हैं, जिनका इस्तेमाल गुरुवार रात पुलिस कर्मियों पर फायरिंग में किया गया था। यूपी की सभी सीमाएं सील कर दी गई हैं और अन्य आरोपियों को पकड़ने के लिए तलाशी जारी है।
क्या हैं मायने?
इसमें कोई शक नहीं कि इस घटना ने उत्तर प्रदेश में अपराधियों के बढ़ते हौसले की शर्मनाक तस्वीर पेश की है। लेकिन इस घटना ने कई गंभीर सवाल भी खड़े किये हैं, जिनका जवाब ढूंढना होगा।
- आखिर ऐसा क्यों हुआ कि पुलिस की आने की जानकारी मिलने के बावजूद विकास भागा नहीं, बल्कि रास्ते ब्लॉक कर उनके आने का इंतज़ार करने लगा ?
- ऐसा क्यों हुआ कि अपराधी छतों पर घात लगाये पुलिस का आने का इंतज़ार करते रहे और जैसे ही पुलिसवाले पहुंचे, उन्होंने अंधाधुंध फायरिंग शुरु कर दी ? ये किसी की चूक नहीं, मर्डर है, अपनी ताकत का प्रदर्शन है।
- ऐसा क्यों है कि अपराधियों में पुलिस का खौफ नहीं? बल्कि अपराधी ही पुलिस का मर्डर करने का प्लान बनाने लगे?
- और सबसे बड़ा सवाल, आखिर कौन से देश में ऐसा हो सकता है कि कोई अपराधी थाने में घुसकर, इंस्पेक्टर के सामने बैठे शख्स की हत्या कर दे, और जिन्दा बच निकल जाए?
ये एक घटना नहीं, परिणाम है। परिणाम…..नेता और अपराधियों की बढ़ते गठजोड़ का, नेताओं द्वारा अपराधियों के संरक्षण का और उनकी मदद से फलते-फूलते डर और आतंक के कारोबार का। सवाल के घेरे में पिछली सरकारें ही नहीं, सैकड़ों एनकाउंटर का दावा करनेवाली यूपी सरकार भी है।