नीतीश के सुशासन पर लगी अपनों की ही नजर
15 अगस्त 2007, स्वतंत्रता दिवस के मौके पर पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान में नीतीश का भ्रष्ट्राचारियों पर दिया गया भाषण, जिस पर खूब तालियाँ बजी। साथ ही इसके तुरंत बाद भ्रष्ट्राचारियों पर नकेल कसने के लिए टास्क फोर्स का गठन भी कर दिया गया।
जिसका पहला और सबसे हाईप्रोफाइल केस था, 2007 में पूर्व डीआईजी नारायण मिश्रा के खिलाफ। नीतीश सरकार ने अपनी सुशासन बाबू वाली छवि तब सुनिश्चित कर ली, जब 2012 में उसने पटना में नारायण मिश्रा का घर ज़ब्त करके, उसे दिव्यांग बच्चों के स्कूल में तब्दील कर दिया।
17 नवंबर, 2020 का दिन, जब नीतीश कुमार ने 7 वीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली , साथ ही अपने साथ 14 अन्य मंत्रियों को भी शपथ दिलाई। नीतीश के साथ सुशासन बाबू की चल रही तस्वीर वहीं धूमिल होती दिखी। जब नीतीश के नए मंत्रिमंडल में कुछ ऐसे चेहरे थे, जिन पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे हुए हैं। उनमें सबसे पहला नाम है, जेडीयू कोटे से मंत्री मेवालाल चौधरी का, जिन्हें शिक्षा विभाग सौंपा गया है। नीतीश के करीबी माने जाने वाले मेवालाल चौधरी 2010-15 के बीच में सबौर कृषि विवि में वाइस चांसलर थे। इन पर जूनियर वैज्ञानिक की बहाली में धांधली और भवन निर्माण में घपला के गंभीर आरोप हैं। मामला सामने आने के बाद बिहार में काफी हाय-तौबा मची थी। बिहार में नीतीश सरकार की फजीहत होने के बाद इस मामले की निगरानी ब्यूरो से जांच कराई गई। निगरानी ब्यूरो की जांच में आरोप प्रमाणित हुए इसके बाद मेवालाल चौधरी पर स्पेशल विजिलेंस ने 2017 में केस दर्ज किया था और भागलपुर के सबौर थाने में भी 2017 में केस दर्ज हुआ था. जदयू के विधायक मेवालाल चौधरी के खिलाफ आईपीसी की धारा 409, 420, 46,7 468, 471 और 120 बी के तहत भ्रष्टाचार के मुकदमा दर्ज है। इनके खिलाफ अभी भागलपुर के एडीजे-1 की अदालत में मामला लंबित है।
यही नहीं मेवालाल चौधरी के मंत्री बनाए जाने पर बिहार के पूर्व आईपीएस अधिकारी अमिताभ कुमार दास ने DGP को पत्र लिखकर मेवालाल चौधरी से पूछताछ की बात कही है ।
वहीं दूसरा नाम कॉंग्रेस से जेडीयू में आए अशोक चौधरी का है। जिनपर बैंक लोन घोटाले का आरोप लगा था। 2017 में नियुक्ति घोटाले का मामला थाने में दर्ज हुआ था. इस केस में विधायक डॉ चौधरी को कोर्ट से अंतरिम जमानत मिल गई थी। भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे नीतीश मंत्रिमंडल को लेकर अब विपक्ष भी मुखर हो गया है। विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने ट्वीट कर नीतीश के शासन को महाजंगलराज की संज्ञा देकर राजनीतिक गलियारे में एक नई चर्चा छेड़ दी है।
निश्चित ही नीतीश की यह पारी विवादों में रहने वाली है। क्योंकि जिस तरह नीतीश ने लालू के शासनकाल को जंगलराज और भ्रष्टाचार से युक्त बताया था। ऐसे में दागदार छवि वाले मंत्रियों का नीतीश कैबिनेट में शामिल होना सिर्फ नीतीश की किरकिरी ही नहीं करने वाला , बल्कि विपक्ष द्वारा प्रचारित जंगलराज बनाम महाजंगलराज से उनकी सुशासन बाबू वाली छवि भी धूमिल कर सकता है।