‘झूठ वाली ट्रेन’ चल पड़ी है!
Share

भूत के पांव नहीं होते, भूख के होते हैं…
मजदूरों की बेबसी पर शुरू हो गई है इल्जामों वाली बेरहम, बेदर्द सियासत
जो नहीं होना चाहिए था, वो शुरू हो गया है। कोरोना से लोगों की जिंदगी बचाने के लिए साथ-साथ होने की जगह केंद्र और राज्य आमने-सामने नजर आ रहे हैं।
पहले ममता बनर्जी ने विदेश में फंसे भारतीयों को वापस लाने की एयरइंडिया की योजना बंदे भारत की ये कह कर आलोचना की, कि इसमें मुंबई, दिल्ली, अहमदाबाद, हैदराबाद से लेकर कोच्ची, कोझिकोड और श्रीनगर तक को शामिल किया गया है, लेकिन कोलकाता को नहीं।
ममता के हवाई हमले के जवाब में बीजेपी ने इल्जामों की ट्रेन चला दी।
बीजेपी का इल्जाम है कि गृह मंत्रालय इस बाबत खत लिख रहा है, रेल मंत्री पीयूष गोयल फोन कर रहे हैं,लेकिन गैर बीजेपी शासित राज्य सरकारें अपने यहां के फंसे लोगों को लाने के लिए ट्रेन चलाए जाने की इजाजत नहीं दे रहीं।
बीजेपी का दावा है कि बीजेपी शासित राज्य सरकारें मजदूरों के प्रति ज्यादा संवेदनशील हैं और उन्होंने गैर बीजेपी शासित राज्यों के मुकाबले ज्यादा ट्रेनें चलाने की इजाजत दी है।
यूपी- 487 ट्रेनें चलाने की इजाजत दी
बिहार – 254 ट्रेनें चलाने की इजाजत दी
वहीं TMC शासित बंगाल, कांग्रेस शासित छत्तीसगढ़, और गैरबीजेपी गठबंधन वाली झारखंड सरकार में प्रवासी मजदूरों के लिए न तो संवेदना है, न ही उनका स्थानीय प्रशासन ट्रेनों के चलने की इजाजत दे रहा है।
बंगाल – 09 ट्रेनों की इजाजत दी
छत्तीसगढ़ -10 ट्रेनों की इजाजत दी
झारखंड- 48 ट्रेनों की इजाजत दी
सिक्के का दूसरा पहलू देखें तो इन राज्य सरकारों का जवाब शायद ये होगा कि केंद्र सरकार और रेलवे गैर बीजेपी शासित राज्यों के साथ भेदभाव कर रहे हैं।
चलिए ..ये मान लेते हैं कि बीजेपी शासित राज्य गवर्नेंस में अव्वल हैं, अपने बाशिन्दों को लेकर सबसे ज्यादा फिक्रमंद हैं, तो भी ट्रेन से प्रवासी मजदूरों को लाने की ये व्यवस्था किस तरह काम कर रही है, इसे समझिए।
श्रमिक स्पेशल का चलना समझ लिया तो IAS का इंटरव्यू पास कर जाओगे !
देश में सबसे ज्यादा प्रवासी मजदूर बंगलुरू में हैं जिन्हें सबसे ज्यादा मजदूरों के मूल राज्य यूपी में जाना है, तो व्यवस्था ये है कि कर्नाटक के मुख्यमंत्री श्रमिक स्पेशल के लिए बनाए गए अपने राज्य के नोडल अफसर से बात करेंगे, फिर वो यूपी के मुख्यमंत्री से बात करेंगे… जो इसी तरह अपने राज्य प्रशासन के श्रमिक स्पेशल के लिए बनाए गए नोडल अफसर से बात करेंगे। अब दोनों राज्यों के नोडल अफसर देश के 17 रेलवे जोन में से अपने- अपने राज्यों में पड़ने वाले रेलवे जोन के नोडल अफसर से बात करेंगे। प्रस्थान और गंतव्य के स्टेशन, ट्रेन में सफर करने वाले लोगों की कुल तादाद तय करेंगे। इस हिसाब से जो बिल बनेगा उसका कर्नाटक सरकार भुगतान करेगी। फिर रेलवे इसकी व्यवस्था करेगी। जब सब कुछ तय हो जाएगा,तब गृह मंत्रालय की मंजूरी ली जाएगी और ट्रेन रवाना हो जाएगी।
अगर इतने से आपका सर नहीं घूमा तो थोड़ा और सुनिए।
- इन ट्रेनों को चलाता कौन है? क्या रेल मंत्रालय ? नहीं
जवाब -…जोनल रेलवे….( देश में पहली बार रेल चलाने की अथॉरिटी इस तरह डेलीगेट की गई है)
- किससे पूछ कर चलाता है जोनल रेलवे ? क्या रेल मंत्रालय से पूछता है? नहीं…
जवाब –राज्य सरकार से
- जोनल रेलवे कब से राज्य सरकार के अधीन हो गया ? –
जवाब- 1मई से ( सैद्दांतिक तौर पर)
क्योंकि बाकी सभी ट्रेनें रद्द हैं और सिर्फ स्पेशल ट्रेनें ही चल रही हैं। लिहाजा एक तरह से रेलवे के जोनल ऑफिसों का काम ये है कि राज्य सरकार अपनी डिमांड उन्हें देती है, उनकी डिमांड पर उस जोन का रेलवे दफ्तर आगे काम करता है, डिपार्चर से अराइवल के बीच तीन स्टॉपेज तय करता है, लंबी दूरी की ट्रेन में मुसाफिरों के लिए एक वक्त के खाने की व्यवस्था की जाती है। जहां से ट्रेन को शुरू होना है, वहां से बताई गई संख्या में ट्रेन के टिकट छापे जाते हैं, उन्हें राज्य सरकार को दे दिया जाता है, राज्य सरकार पैसेंजर्स को टिकट बांटती है और फिर उनसे पैसे लेकर या खुद अपनी ओर से रेलवे को देती है।
सवाल है क्या आपातकाल की स्थिति में ये सबसे अच्छी व्यवस्था है जो लॉकडाउन में फंसे लोगों के लिए की जा सकती थी ?क्या इतनी बड़ी आपदा के वक्त भी हम उस तरह ट्रेनें नहीं चला सकते, जिस तरह आम दिनों में ट्रेनें चलती हैं? बस राज्य सरकार की है तो ट्रेन केंद्र सरकार की। कुछ तो वजह होगी ऐसी व्यवस्था बनाने की जिसमें केंद्र सरकार की ट्रेन को चलाने के लिए दो-दो राज्य सरकारों की इजाजत ली जाती है ?