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वो आंखें जो बोलती थीं, अब खामोश हैं!

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वो आंखें जो बोलती थीं, अब खामोश हैं!

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पैमाना कहे है, कोई  मैखाना कहे है

दुनिया तेरी आँखों को भी

 क्या क्या ना कहे है

( शाहरूख खान का ट्वीटर पर इरफान खान के लिए शोक संदेश)

इरफान खान नहीं रहे। बुधवार शाम 5 बजे वर्सोवा के कब्रिस्तान में लोगों ने नम आंखों से उन्हें आखिरी विदाई दी। परिवारवालों के अलावा वहां फिल्म इंडस्ट्री से तिग्मांशु धूलिया और विशाल भारद्वाज भी थे।

पठान परिवार का ये शुद्ध शाकाहारी बेटा अनकन्वेंशनल लुक और इन्टेंस एक्टिंग के लिए इतना नाम कमाएगा किसने सोचा था?

 इरफान ने जिन्दगी में कुछ भी आसानी से हासिल नहीं किया। एक्टिंग करना चाहते थे तो मां ने शर्त लगा दी कि पहले ग्रेजुएशन कर लो। एनएसडी में नाम लिखाया तो पिता चल बसे। फैलोशिप के पैसों से कोर्स पूरा किया। इस सफर में किसी ने साथ दिया तो एनएसडी की क्लासमेट सुतापा सिकंदर ने। 1995 में दोनों हमसफर बन गए। तब तक इरफान को स्ट्रगल करते-करते सात साल बीत चुके थे। ये वो दौर था जब ज्यादा एक्टिंग हीरो के शर्ट और सिगरेट के हिस्से आती थी, इरफान की आंखें बोलती थीं, वो सहज होकर अभिनय करते थे। किसको परवाह थी?

सात साल और बीते…फिर एक दिन …रिलीज हुई हासिल

तिग्मांशु ने जब 2003 में इरफान को लेकर हासिल बनाई थी, तब तक बीते 15 सालों में इरफान ज्यादातर छोटी छोटी भूमिकाएं ही करते आए थे। हासिल के रणविजय से उन्हें निगेटिव किरदार वाली वो पहचान मिल गई जो हिन्दी सिनेमा में सरवाइव करने के लिए जरूरी थी। इसके बाद अगले साल आई, विशाल भारद्वाज की मकबूल। मैकबेथ के लीड कैरेक्टर में इरफान ने जैसे अपना सब कुछ झोंक दिया। लेकिन सारी वाहवाही और अवार्ड अब्बाजी ( पंकज कपूर) के हिस्से आई। दौड़ के लिए ऑडिशन दिया, रामगोपाल वर्मा ने चुन लिया मनोज वाजपेयी को। शादी के साइड इफेक्ट जैसी नामालूम फिल्म बनाने वाले साकेत चौधरी के डायरेक्शन में हिन्दी मीडियम में काम किया तो 14 करोड़ की ये फिल्म दुनिया भर से 322 करोड़ वसूल लाई।

इरफान को एक एक्टर के तौर पर कौन सी चीज खास बनाती है?

इसके लिए आपको एक बार फिर से हैदर देखनी चाहिए। विशाल भारद्वाज शाहिद कपूर से एक्टिंग करवा सकते हैं ये समझने के लिए नहीं, वो किस तरह एक बहुत छोटे से किरदार में …रुहदार के किरदार में.. इरफान की इन्टेंस एक्टिंग को संभालते हैं ये महसूस करने के लिए। इरफान छोटे से रोल को बड़ा बना देते हैं…और हैदर निखर जाता है। जैसे मर्चेंट ऑफ वेनिस में शाइलॉक इसलिए ज्यादा बेरहम नजर आता है क्योंकि एंटोनियो बेहद मासूम है। एक छोटी लकीर मिट कर दूसरी लकीर को बड़ा बना देती है। बेबस लाचार ठाकुर  शोले के गब्बर को ज्यादा बेरहम बनाता है। इस तरह की कई छोटी-छोटी लकीरों के जरिए इरफान हमारे अंत:करण के आयतन में कई त्रिकोण और वर्ग कब बना गए हमें पता भी नहीं चला।

इरफान को मां से बहुत लगाव था। इतना कि जब फिल्म में काम शुरू किया तो उनसे वादा किया कि ऐसा कुछ नहीं करूंगा कि आपको शर्मिंदा होना पड़े। पांच दिन पहले मां चल बसीं। लॉकडाउन की वजह से इरफान उन्हें आखिरी बार देख भी न पाए।

इरफान अब हमारे बीच नहीं हैं …एक बहुत अच्छा एक्टर जिसने हमें कई बार हंसाया था, रुलाया था, डराया था…

अब वो हमें सिर्फ रुलाएगा और हम उसके लिए दुआ करेंगे …उपरवाला तुम्हें जन्नत बख्शे

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