बिहार में मंगल, बंगाल में दंगल!
बिहार विधानसभा चुनावों के बाद अब राजनीतिक दलों का फोकस पश्चिम बंगाल (west bengal) की तरफ शिफ्ट हो गया है। यहां ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस 10 साल से सत्ता में है और बंगाल विधानसभा का मौजूदा कार्यकाल मई 2021 में खत्म हो रहा है। जाहिर है उससे पहले यानी अप्रैल-मई के बीच यहां चुनाव ( Bengal election) कराये जाएंगे। अगर मुकाबले की बात करें, तो यहां कांग्रेस और लेफ्ट का कुछ ज्यादा प्रभाव बचा नहीं है, इसलिए मुख्य मुकाबला बीजेपी और तृणमूल कांग्रेस के बीच ही होनेवाला है।
बीजेपी ने फूंक दिया बिगुल
बिहार में एनडीए के चुनाव जीतने पर नरेंद्र मोदी ने दिल्ली भाजपा मुख्यालय में मेगा शो कर ना सिर्फ पार्टी कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाया, बल्कि बंगाल (west bengal) में कार्यकर्ताओं की मौत को मत से जोड़ने का मंत्र देकर आगे का एजेंडा भी तय कर दिया। जश्न बिहार की जीत का मनाया जा रहा था, लेकिन जोश बंगाल के लिए भरा जा रहा था।
दूसरी ओर जब बिहार में मतदान का दौर चल रहा था, तो उस वक्त अमित शाह बंगाल (west bengal) का चक्कर लगाते रहे। दरअसल बिहार के लिए कोरोना के समय ही उन्होंने मतदाताओं और सहयोगियों का मिजाज भांप लिया और यहां का एजेंडा सेट कर बंगाल की तैयारी में जुट गये। उनके बाद जेपी नड्डा और आखिर में पीएम मोदी ने चुनाव की कमान संभाल ली। पूरे बिहार चुनाव में कहीं भी भाजपा के चाणक्य नजर नहीं आए और जब बंगाल (west bengal) के चुनाव हों तब भी शायद वह लोगों और सियासी विश्लेषकों की नजर में न आएं।
west bengal : बीजेपी का का प्रदर्शन
2016 के विधानसभा चुनावों में तृणमूल कांग्रेस ने दो-तिहाई से ज्यादा बहुमत हासिल किया था। 294 सीटों में से तृणमूल कांग्रेस ने 44.91% वोट के साथ 211 सीटें जीती थीं, वहीं बीजेपी ने 291 सीटों पर चुनाव लड़ने के बावजूद सिर्फ 3 सीटों पर जीत हासिल की। बीजेपी को सिर्फ 10.16% वोट मिले थे। दूसरी तरफ लेफ्ट और कांग्रेस का गठबंधन भी नाकामयाब साबित हुआ था। कांग्रेस ने 40 और लेफ्ट ने 31 सीटों पर जीत हासिल की थी। आपको बता दें कि बंगाल में लेफ्ट पार्टियों का यह अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन था।
लेकिन 2019 के लोकसभा चुनावों में मिले परिणाम से बीजेपी का हौसला और उम्मीदें काफी बढ़ गईं। बीजेपी ने 2014 के लोकसभा चुनावों में सिर्फ दो सीटें हासिल की थीं, जबकि 2019 के चुनावों में उसने 18 सीटें हासिल कीं। वहीं, तृणमूल कांग्रेस की सीटें 34 से घटकर 22 रह गईं। तृणमूल कांग्रेस ने 44.91% वोट हासिल किए, जबकि भाजपा ने 40.3% वोट। 40 में से अधिकांश सीटों जहां भाजपा जीती, वहां तृणमूल दूसरे नंबर पर रही और जहां तृणमूल को सीट मिली, वहां बीजेपी दूसरे नंबर पर रही। 10 से ज्यादा सीटों पर जीत-हार का अंतर 5% या उससे कम रहा। यानी मुकाबला सीधे तौर पर तृणमूल कांग्रेस और बीजेपी के बीच ही रहा।
ये बात भी गौर करनेवाली है कि जहां 2014 में भाजपा की बढ़त 28 विधानसभा क्षेत्रों में थी, वहीं 2019 में ये बढ़कर 128 विधानसभा सीटों पर हो गई। जबकि तृणमूल की बढ़त घटकर 158 विधानसभा सीटों पर रह गई। बीजेपी को उम्मीद है कि अगर 2021 की वोटिंग भी लोकसभा चुनावों की तर्ज पर हुई तो तृणमूल कांग्रेस के लिए फिर से सत्ता हासिल करना मुश्किल हो जाएगा।
बिहार चुनावों का कितना पड़ेगा असर?
- बीजेपी का फोकस खास तौर पर बंगाल (west bengal) की 220 सीटों पर है। उसने इस बाबत बंगाल में दो आंतरिक सर्वे भी कराए हैं। सर्वे के नतीजों में संकेत मिला है कि इन सीटों पर जनता बीजेपी को तृणमूल के विकल्प के रूप में स्वीकार कर रही है।
- बिहार का किशनगंज पश्चिम बंगाल की सीमा पर है और इस्लामपुर जैसे मुस्लिम बहुल इलाके से सटा हुआ है। ऐसे में किशनगंज जैसी 70% मुस्लिम आबादी वाली सीटों पर राजनीति का रंग एक जैसा ही होगा।
- सीमांचल में बीजेपी 12 में से 8 सीटें जीत गई और ओवैसी की पार्टी को 5 सीटें मिली हैं। इन इलाकों में कांग्रेस और आरजेडी को मुस्लिम वोटों के बंटने का नुकसान हुआ।
- बिहार में ओवैसी की AIMIM ने पांच सीटों पर जीत हासिल कर यह संकेत दे दिया है कि वह बंगाल के मुस्लिम बहुल इलाकों में वोटकटवा पार्टी बन सकती है। उसने बंगाल चुनावों में भी हिस्सा लेने का ऐलान कर दिया है। ऐसे में धार्मिक आधार पर वोटों का ध्रुवीकरण तय है।
- मालदा में 51%, मुर्शिदाबाद में 66%, नादिया में 30%, बीरभूम में 40%, पुरुलिया में 30% और ईस्ट और वेस्ट मिदनापुर में 15% मुस्लिम आबादी है। ऐसे में भाजपा की कोशिशें सफल रहीं तो निर्णायक मुस्लिम वोटों वाली सीटों पर वोट बंटेंगे और हिंदू वोट बीजेपी की झोली में गिरेंगे।
- राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ओवैसी की पार्टी के चुनाव लड़ने से उनके प्रत्याशी तृणमूल कांग्रेस का वोट काटेंगे। कांग्रेस और सीपीएम भी तृणमूल कांग्रेस का वोट काटेंगी और आखिरकार इसका फायदा बीजेपी को मिलेगा।
- बंगाल (west bengal) में बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों के लोगों की अच्छी खासी संख्या है। इसलिए बिहार-यूपी की राजनीति का इन पर भी असर पड़ेगा। वहीं चुनाव प्रचार के दौरान इन राज्यों से योगी आदित्यनाथ जैसे स्टार प्रचारकों के आने के बाद पूरा माहौल बदल जाएगा।
हमेशा दो कदम आगे की सोच
हमेशा दो कदम आगे रहने की सोच का ये फायदा हुआ है कि 5 साल पहले जो पार्टी बंगाल (west bengal) की राजनीति में कहीं नहीं थी, वो आज प्रमुख विपक्षी पार्टी के तौर पर उभरी है। पार्टी ने लुक ईस्ट पॉलिसी के तहत बंगाल ही नहीं, पूर्वोत्तर के राज्यों में बड़ी सफलता हासिल की है। जबकि कांग्रेस और वाम दलों की स्थिति लगातार बिगड़ती गई। पिछले लोकसभा चुनावों के दौरान बीजेपी ने खास तौर पर बंगाल के उत्तरी और पश्चिमी हिस्से में अपनी गहरी पैठ बनाई। वहीं, दक्षिण बंगाल अब भी तृणमूल का गढ़ बना हुआ है। भाजपा के दिग्गज नेताओं की मानें तो बंगाल में इस बार राष्ट्रवाद और हिंदुत्व के मुद्दे पर चुनाव होगा। इनकी मानें तो इस बार तृणमूल कांग्रेस का शासन जाएगा, बीजेपी का शासन आएगा….लाल झंडे के गढ़ में अब भगवा लहराएगा।