पूरी तरह समझें क्या हैं कृषि कानून?

किसान आंदोलन (farmers agitation) लंबे गतिरोध की ओर बढ़ता दिख रहा है। पिछले चार दिनों से हजारों की तादाद में किसान दिल्ली की सीमाओं पर जमे हुए हैं और दिल्ली को साल करने की तैयारी में हैं। सरकार का कहना है कि तीनों नए कृषि कानून (agri laws) किसानों के हित में हैं। ऐसे में बेहतर होगा कि हम ये समझें कि आखिर ये कानून हैं क्या… और इनका क्या फायदे-नुकसान हैं?
1. कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक, 2020
कृषि क्षेत्र में मौजूदा स्थिति ये है कि किसानों को अपनी उपज की बिक्री में कई प्रकार की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। इन पर अधिसूचित कृषि उत्पाद विपणन समिति (APMC) वाले बाज़ार क्षेत्र के बाहर कृषि उपज की बिक्री पर कई तरह के प्रतिबंध थे। किसान केवल राज्य सरकारों के पंजीकृत लाइसेंसधारियों को उपज बेच सकते थे। साथ ही राज्य सरकारों द्वारा लागू विभिन्न APMC विधानों के कारण एक राज्य के किसान अपना अनाज दूसरे राज्य में बेच नहीं सकते थे। राज्यों के बीच कृषि उत्पादों के मुक्त प्रवाह में भी कई बाधाएं थीं। इसके अलावा यह तथ्य भी है कि मंडियों में 5-7 आढ़तिये ही मिलकर किसान की फसल की कीमत तय करते हैं और किसानों का इसमें कोई दखल नहीं होता है।

नये अधिनियम (agri laws) से क्या हैं लाभ?
- अधिनियम का उद्देश्य एपीएमसी द्वारा विनियमित मंडियों के बाहर अवरोध मुक्त इंटर-स्टेट और इंट्रा-स्टेट कृषि उपज की बिक्री की अनुमति देना है। इसके जरिये किसानों को खरीद- बिक्री के अधिक विकल्प उपलब्ध होंगे।
- किसान इस कानून के जरिये अधिसूचित मंडियों (APMC) के बाहर भी अपनी उपज को ऊंचे दामों पर बेच पाएंगे और निजी खरीदारों से बेहतर दाम प्राप्त कर पाएंगे।
- इस अधिनियम के जरिए ज्यादा उपज वाले क्षेत्र के किसान, दूसरे राज्यों में भी उपज बेचकर बेहतर मूल्य प्राप्त कर सकते हैं, जबकि कम उपज वाले क्षेत्रों में उपभोक्ताओं को कम कीमत पर उपज मिल सकेगी।
- किसान प्रत्यक्ष विपणन में खुद को सम्मिलित करने में सक्षम होंगे, जिससे बिचौलियों को समाप्त किया जा सकेगा, और उचित मूल्य की वसूली हो सकेगी।
- इस अधिनियम (agri laws) में कृषि क्षेत्र में इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग का भी प्रस्ताव किया गया है।
- इस अधिनियम के तहत किसानों से उनकी उपज की बिक्री पर कोई उपकर या लगान नहीं लिया जाएगा।
- किसानों की समस्याओं और शिकायतों के लिए एक अलग विवाद समाधान तंत्र की स्थापना का प्रावधान है।

क्या हो सकती हैं परेशानियां?
- इस अधिनियम (agri laws) के लागू होने पर स्थानीय बाज़ार में किसानों को अपनी उपज का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) नहीं मिल पाएगा, क्योंकि अब भाव बाजार के आधार पर तय होंगे।
- चूंकि, अधिकांश किसान छोटे अथवा सीमांत कृषि-भूमि के मालिक होते हैं, और इनके पास अपनी उपज को दूर के बाज़ारों में बेचने हेतु परिवहन के साधन नहीं होते हैं।
- इसके जरिये बड़े कॉरपोरेट खरीदारों को खुली छूट दी गई है। ये बिना किसी पंजीकरण और बिना किसी कानून के दायरे में आए हुए किसानों की उपज खरीद-बेच सकते हैं।
- एपीएमसी मंडी के बाहर नए बाजार पर ना तो कोई पाबंदी है और ना ही निगरानी। ये खुली छूट आने वाले वक्त में एपीएमसी मंडियों की प्रासंगिकता को ही समाप्त कर देगी।
- इस कानून (agri laws) के बनने के बाद भी ज्यादातर किसान अपनी उपज स्थानीय बाज़ार में ही न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से कम कीमतों पर बेचने के लिये मजबूर होंगे, क्योंकि प्राइवेट पार्टियां पहले की तरह कम से कम कीमत पर अनाज खरीदने की कोशिश करेंगी।
- सरकार को अब बाजार में कारोबारियों के लेनदेन, कीमत और खरीद की मात्रा की जानकारी नहीं होगी। इसमें सरकार का भी नुकसान है क्योंकि अब वह बाजार में दखल करने के लिए जरूरी जानकारी हासिल नहीं कर पाएगी।

क्या कारगर होगी ये व्यवस्था?
ये बात तो सभी मानते हैं कि मंडी व्यवस्था में कमियां थीं। मंडियों में किसानों को लंबा इंतजार करना पड़ता है क्योंकि पर्याप्त संख्या में मंडियां नहीं हैं। अभी देश में करीब 7000 मंडियां हैं, जबकि जरूरत 42000 मंडियों की है। अब नई मंडियां बनने के बजाए पुरानी मंडियां भी धीरे-धीरे खत्म हो जाएगी। इसके साथ ही एमएसपी की व्यवस्था भी धीरे-धीरे खत्म हो जाएगी, क्योंकि मंडियां ही MSP को सुनिश्चित करती हैं। सरकार की जिम्मेदारी कम हो जाएगी और कृषि व्यवस्था बाजार की ताकतों पर निर्भर हो जाएगी।
इसका एक उदाहरण है बिहार। बिहार में यही एपीएमसी कानून 2006 में ही खत्म किया गया था। लेकिन 14 सालों बाद भी बिहार आज सबसे कम कृषि आय वाले राज्य में शामिल है। वर्ष 2020 में बिहार में गेहूं के कुल उत्पादन का 1% ही सरकारी खरीद हो पाई। जाहिर है, इस व्यवस्था से ना तो किसानों को कोई फायदा हुआ ना प्रदेश की अर्थव्यवस्था को।
वैसे, इसके खिलाफ तर्क देनेवाले भी यही बात कहते हैं। अगर पुरानी व्यवस्था इतनी अच्छी थी, तो पंजाब-हरियाणा के अलावा दूसरे राज्यों को इसका फायदा क्यों नहीं हुआ? 1970 से लागू MSP व्यवस्था के बावजूद देश में कृषि की हालत इतनी पिछड़ी क्यों है? जहां 85 फीसदी सीमांत किसान हों, वहां इनके पास इतनी फसल कहां होती है कि मंडियों में बेच सकें? आंकड़ों के मुताबिक, देश के 6 फीसदी किसान ही MSP का फायदा उठाते हैं, बाकी के 94 फीसदी किसान तो अपना अनाज लेकर मंडियों तक पहुंचते भी नहीं हैं।

2. कृषि (सशक्तिकरण और संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा करार विधेयक, 2020 (agri laws)
भारतीय किसानों के सामने खेती से जुड़ी कई समस्याएं हैं, जैसे – छोटी जोत, मौसम पर निर्भरता, सिंचाई की परेशानी, उत्पादन और बाज़ार की अनिश्चितता आदि। इसके अलावा कई अन्य तरह के जोखिम भी होते हैं। इस वजह से कृषि कार्य अब उनके लिए फायदे का कारोबार नहीं रहा। ऐसे में उन्हें बाहरी सहयोग और जोखिम करने वाले उपायों की सख्त जरूरत है। इस कानून (agri laws) के जरिए सरकार ने किसानों और निजी कंपनियों के बीच में समझौते वाली खेती का रास्ता खोल दिया है। सामान्य भाषा में इसे कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग कहते हैं।

इस अधिनियम से क्या हैं लाभ?
- यह विधेयक (agri laws) किसानों को सीधे प्रसंस्करणकर्त्ताओं, थोक विक्रेताओं, बड़े खुदरा कारोबारियों, निर्यातकों आदि के साथ जुड़ने की सुविधा देता है।
- इससे अनुबंध कृषि या कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग का रास्ता खुलेगा। यानी एक निश्चित राशि देकर आप की जमीन को एक पूंजीपति या ठेकेदार किराये पर लेगा और अपने हिसाब से फसल का उत्पादन कर बाजार में बेचेगा। ये काम कोई किसान, सहकारी समिति या कंपनी भी कर सकती है।
- इसके जरिए किसान प्रत्यक्ष रूप से मार्केटिंग से जुड़ सकेंगे, जिससे बिचौलियों की भूमिका समाप्त होगी और उन्हें अपनी फसल का बेहतर मूल्य प्राप्त हो सकेगा।
- यह फसलों की बुवाई से पहले ही किसानों को मूल्य आश्वासन प्रदान करता है। अधिक बाजार मूल्य के मामले में, किसान अपनी उपज की न्यूनतम मूल्य से ज्यादा कीमत वसूल सकता है।
- फसल खराब होने पर कॉन्ट्रेक्टर को पूरी भरपाई करनी होगी। यह बाजार की अनिश्चितता के जोखिम को कम करेगा। पूर्व मूल्य निर्धारण के कारण, किसानों को बाजार की कीमतों के बढ़ने और गिरने से सुरक्षा मिलेगी।
- यह किसान को आधुनिक तकनीक, बेहतर बीज और अन्य वैश्विक उपकरणों का उपयोग करने में भी सक्षम बनाएगा। इससे विपणन की लागत भी कम होगी और अंततः किसानों की आय में वृद्धि होगी।
- इससे कृषि उपज को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों तक पहुँचाने और कृषि से जुड़े इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास के लिए निजी क्षेत्र का निवेश बढ़ेगा।

क्या हो सकती हैं परेशानियां?
- भारत में किसानों की शैक्षणिक स्थिति को देखते हुए माना जा रहा है कि एक किसान अपनी पैदावार के लिये उचित मूल्य तय करने में कॉर्पोरेट कंपनियों से समझौता करने में सक्षम नहीं होगा।
- अधिनियम (agri laws) के मुताबिक गुणवत्ता मानकों को दोनों पक्षों द्वारा पारस्परिक रूप से तय किया जा सकता है। लेकिन, कृषि-पारिस्थितिकी में विविधता को देखते हुए गुणवत्ता में एकरूपता संभव नहीं होगी और किसानों को इसका नुकसान उठाना पड़ सकता है।
- सबसे अधिक समस्या किसान और ठेकेदार के बीच में कॉन्ट्रैक्ट से जुड़े विवाद को लेकर होगी। वैसे, विवाद की स्थिति में जो निस्तारण समिति बनेगी उसमें दोनों पक्षों के लोगों को रखा जाएगा, लेकिन किसी पूंजीपति की तुलना में एक किसान बेहतर दलील या वकील रख पाएगा, इसकी संभावना कम ही है।
- कानून (agri laws) के अनुसार किसान पहले कंपनी के साथ 30 दिन के अंदर विवाद निपटाने की कोशिश करेगा। अगर निपटारा नहीं हुआ तो 30 दिन के बाद एक ट्रिब्यूनल के सामने पेश होना होगा। हर जगह एसडीएम अधिकारी मौजूद रहेंगे।
- कोई भी किसान अपनी फसल के सही दाम के लिए महीनों चक्कर नहीं लगाना चाहेगा, क्योंकि उन्हें अपनी अगली फसल की भी चिंता करनी होगी। बड़े कॉरपोरेट घराने किसानों की इस स्थिति का फायदा उठाने में संकोच नहीं करेंगे।

3. आवश्यक वस्तु संशोधन विधेयक, 2020
आवश्यक वस्तु अधिनियम को 1955 में बनाया गया था। नया अधिनियम (agri laws) अनाज, दाल, आलू, प्याज और खाद्य तिलहन जैसे खाद्य पदार्थों के उत्पादन, आपूर्ति व वितरण को नियंत्रण मुक्त करता है। यानी खाद्य तेल, दाल, तिल, आलू, प्याज जैसे कृषि उत्पादों पर से स्टॉक लिमिट हटा ली गई है। प्रोसेसर या वैल्यू चेन पार्टिसिपेंट्स के लिए ऐसी कोई स्टॉक लिमिट लागू नहीं होगी। इस संशोधन के अंतर्गत अकाल, युद्ध, आदि जैसी असामान्य परिस्थितियों के कारण कीमतों में अत्याधिक वृद्धि तथा प्राकृतिक आपदा जैसी परिस्थितियों में कुछ कृषि उपजों की आपूर्ति, भंडारण तथा कीमतों को नियंत्रित किये जाने का प्रावधान है।
क्या हो सकते हैं फायदे?
- संशोधन विधेयक (agri laws) में यह व्यवस्था की गई है कि युद्ध, अकाल, असाधारण मूल्य वृद्धि और प्राकृतिक आपदा जैसी परिस्थितियों में इन कृषि उपजों की कीमतों को नियंत्रित किया जा सकता है।
- अनुबंध पर हस्ताक्षर करने के बाद, किसानों को व्यापारियों की तलाश नहीं करनी होगी। कारोबारी सीधे खेत से उपज उठाएगा।
- पूरे देश में दस हजार किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) बनाए जा रहे हैं। ये एफपीओ छोटे किसानों को एक साथ लाएंगे और कृषि उपज के लिए पारिश्रमिक मूल्य सुनिश्चित करने के लिए काम करेंगे।
- इस संशोधन के माध्यम से न केवल किसानों के लिये बल्कि उपभोक्ताओं और निवेशकों के लिये भी सकारात्मक माहौल का निर्माण होगा और यह निश्चित रूप से हमारे देश को आत्मनिर्भर बनाएगा।
- इस संशोधन से कृषि क्षेत्र में निवेश, किसानों की आय दोगुनी करने और ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस (Ease of Doing Business) को बढ़ावा मिलेगा।
क्या हो सकती हैं परेशानियां?
- इस अधिनियम (agri laws) के अंतर्गत सरकार सिर्फ दो कैटेगेरी में, 50% (होर्टिकल्चर) और 100% (नॉन-पेरिशबल) दाम बढ़ाने पर ही उसे रेगुलेट करेगी।
- इसके तहत किसी कृषि उपज के मूल्य श्रृंखला (वैल्यू चेन) प्रतिभागी की स्थापित क्षमता स्टॉक सीमा लगाए जाने से मुक्त रहेगी।
- निर्यातक, वस्तुओं की मांग दिखाने पर, स्टॉक सीमा लगाए जाने से मुक्त रहेंगे।
- अब कृषि उपज जुटाने की कोई सीमा नहीं होगी और उपज जमा करने के लिए निजी निवेश को छूट होगी। यह जमाखोरी और कालाबाजारी को कानूनी मान्यता देने जैसा है।

क्यों हो रहा है विरोध?
गौरतलब है कि कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन सुविधा) विधेयक 2020 में इस बात का कोई जिक्र नहीं किया गया है कि फसलों की खरीद MSP से नीचे के भाव पर नहीं होगी। किसान चाहते हैं कि इसे सुनिश्चित किया जाए।
वहीं इस कानून (agri laws) के कारण किसानों में इस बात का डर बैठ गया है कि एपीएमसी (APMC) मंडियां समाप्त हो जाएंगी। विधेयक 2020 (agri laws) में कहा गया है कि किसान एपीएमसी मंडियों के बाहर बिना टैक्स का भुगतान किए किसी को भी बेच सकता है। कई राज्यों में इस पर टैक्स का भुगतान करना होता है। किसानों को अंदेशा है कि जब बिना किसी भुगतान के बाहर कारोबार होगा तो कोई मंडी क्यों आएगा?
वैसे ये और बात ये है कि सरकार जो अनाज की ख़रीद करती है उसका सबसे अधिक हिस्सा यानी क़रीब 90 फीसदी तक पंजाब और हरियाणा से होता है। वहीं देश के आधे से अधिक किसानों को ये भी नहीं पता कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) क्या है?
देश भर के किसान संगठनों और मंडी समितियों से जुड़े लोगों का मानना है कि इन अधिनियमों (agri laws) के जरिये सरकार कृषि में निजी क्षेत्र को बढ़ावा दे रही है, जो किसानों की परेशानियों को और बढ़ाएगा।

कुछ लोगों ने इसकी वैधानिकता पर भी सवाल उठाये हैं। संविधान की सूची-II (राज्य सूची) की प्रविष्टि-14 के तहत कृषि को राज्य सूची के विषय के रूप में शामिल किया गया है। वहीं केंद्र सरकार ने समवर्ती सूची (सूची III) की प्रविष्टि 33 के आधार पर कृषि से संबंधित विषय पर कानून (agri laws) बनाया है। समवर्ती सूची की प्रविष्टि-33 जहाँ एक ओर कृषि विषयों पर राज्यों की शक्ति को सीमित करती है वहीं दूसरी ओर केंद्र को यह अधिकार देती है कि वह कृषि उत्पादन, कृषि-व्यापार, खाद्यान्न वितरण और कृषि उत्पाद संबंधी मामलों पर विधि बना सकती है।
फिर भी केंद्र सरकार का निर्णय राज्य के कार्यों में हस्तक्षेप के साथ संविधान में निहित सहकारी संघवाद की भावना को चोट पहुँचा सकता है, इसलिए इस तरह के कानून (agri laws) बनाने से पहले केन्द्र सरकार को चाहिए कि सभी राज्यों की सहमति और सुझाव ले लिए जाएं।
सरकार की सफाई
केंद्र ने ये भी स्पष्ट किया है कि किसानों के पास सरकार द्वारा निर्धारित दरों पर अपनी उपज बेचने का विकल्प होगा। मंडियां काम करना बंद नहीं करेंगी और व्यापार पहले की तरह जारी रहेगा। सरकार कह रही है कि इससे आम किसानों को फायदा ही है। अब अपनी मर्जी से सही दाम होने पर ही अपनी उपज बेच सकेंगे। लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि गांवों में किसानों के पास भंडारण की सुविधा कहां है? ऐसे में किसान तो जो बाजार में दाम चल रहा होगा, उसी के मुताबिक अपनी उपज बेच देंगे। फायदा उन पूंजीपतियों को होगा, जो भंडारण की व्यवस्था बनाने के लिए बड़ी पूंजी लगाएंगे और फिर सही वक्त आने पर उपज की मनमानी कीमत वसूल करेंगे।

कैसी होनी चाहिए आगे की राह?
- वर्तमान में भी देश में किसानों की एक बड़ी आबादी के पास छोटी जोत है और उनके पास आधुनिक उपकरणों का अभाव है, ऐसे में सरकार को कृषि में वैज्ञानिक पद्धति के उपयोग और नवीन उपकरणों हेतु आर्थिक सहायता उपलब्ध कराने का प्रयास कर सकती है।
- प्रधानमंत्री के सुझाव के मुताबिक अगर किसान संघ बना लें, तो वे बेहतर निवेश और लाभ सुनिश्चित कर सकते हैं।
- अब देश के किसान बड़ी मात्रा में अपनी उपज को गोदामों में जमा कर रख सकते हैं। जब जरुरत बढ़ेगी, तो कोल्ड स्टोरेज का नेटवर्क भी विकसित होगा।
- मौजूदा दौर में कोई देश अपने कृषि को सरकारी अमले और सब्सिडी की बदौलत फायदेमंद नहीं बना सकता। ऐसे में हमारे किसानों को आधुनिक सोच के साथ आगे आना होगा और आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढ़ाना होगा।