अमेरिका के 2 बड़े बैंक सिग्नेचर-सिलिकॉन 2 दिन में डूबे, खतरे में 21 से ज्यादा भारतीय कंपनियां
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10 मार्च 2023 को अमेरिका का 16वां सबसे बड़ा सिलिकॉन वैली बैंक डूब गया। इसके ठीक 2 दिन बाद 12 मार्च को अमेरिका के सिग्नेचर बैंक के डूबने की खबर सामने आई। इसके बाद इन दोनों बैंकों की संपत्तियों को अमेरिकी रेगुलेटर ने अपने नियंत्रण में ले लिया। अकेले सिलिकॉन वैली बैंक के डूबने से दुनियाभर के निवेशकों को 38 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा का नुकसान हुआ है। इससे 21 भारतीय कंपनियां भी बुरी तरह प्रभावित हुई हैं।
इकोनॉमिस्ट अरुण कुमार ने कहा कि आमतौर पर किसी बैंक के डूबने की बड़ी वजह लोन डिफॉल्ट मामलों में उछाल होता है, लेकिन इन दोनों केस में ऐसा नहीं हुआ है। बैंकिंग क्षेत्र से जुड़े एक्सपर्ट का कहना है कि सिलिकॉन वैली और सिग्नेचर बैंक के डूबने की दो बड़ी वजहें सामने आ रही हैं…
- इंटरेस्ट रेट रिस्क
- लिक्विडिटी रिस्क
इंटरेस्ट रेट रिस्क: एक बैंक इस जोखिम का सामना तब करता है, जब काफी कम समय में कई बार इंटरेस्ट रेट बढ़ाए जाते हैं। अमेरिका में महंगाई 40 साल के उच्च स्तर पर है। यही वजह है कि महंगाई पर काबू पाने के लिए फेडरल रिजर्व ने मार्च 2022 के बाद कई बार इंटरेस्ट रेट बढ़ाए हैं, जो अब 4.5% के करीब पहुंच गई है। ये पिछले 15 साल में सबसे ज्यादा है।
इसका असर ये हुआ कि फेडरल बैंक के खजाने में आमदनी यानी यील्ड अचानक से 2% बढ़ गया। इस वजह से बैंक और बाकी दूसरे इन्वेस्टर्स कॉर्पोरेट बॉन्ड्स और सरकारी ट्रेजरी बिल्स को खरीदने के बजाय पैसा फेडरल बैंक में इन्वेस्ट करने लगे। फिर देखते ही देखते कॉर्पोरेट बॉन्ड्स और ट्रेजरी की कीमत घटने लगीं। वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट के मुताबिक यील्ड 2% बढ़ने से बॉन्ड्स की कीमत 32% तक गिर सकती है। सिलिकॉन वैली बैंक ने अपनी कुल संपत्ति का 55% हिस्सा अमेरिकी सरकार के बॉन्ड में निवेश किया था। ऐसे में कीमत कम होते ही सिलिकॉन वैली बैंक को भारी नुकसान हुआ। इस बैंक ने नकदी की कमी को दूर करने के लिए मेच्योरिटी से पहले ही ट्रेजरी से पैसा निकालना शुरू कर दिया। इस वजह से बैंक दिवालिया होने के करीब पहुंच गया।
लिक्विडिटी रिस्क: जब किसी बैंक को अपना नुकसान करके ग्राहकों को फायदा पहुंचाना होता है तो इसे लिक्विडिटी रिस्क कहते हैं। इसे ऐसे समझिए कि आपने 2019 की शुरुआत में अपनी सारी पूंजी लगाकर और बैंक से कर्ज लेकर एक फ्लैट खरीदा। इसके बाद अचानक से कोरोना महामारी आ गई। ऐसे में अब कर्ज और उसका इंटरेस्ट देने के लिए आपके पास पैसा नहीं है। एक तरफ बैंक की आमदनी घटती है तो वहीं दूसरी तरफ बैंक में जिन लोगों का पैसा जमा होता है, वह निकालने लगते हैं। इससे पैसा कम पड़ने की वजह से बैंक दिवालिया हो जाते हैं। सिलिकॉन वेली केस में भी ऐसा ही हुआ है। उसके नकद भंडार में जितने पैसे थे, उससे ज्यादा लोग निकाल रहे थे। नकद की कमी न हो, इसके लिए सिलिकॉन वैली ने अपने सिक्योरिटीज पोर्टफोलियो से 21 अरब डॉलर बेचने का फैसला किया था। उम्मीद से कम कीमत में पोर्टफोलियो बेचने की वजह से बैंक को 1.8 अरब डॉलर का नुकसान हुआ।
ट्रैक्सन डेटा के मुताबिक सिलिकॉन वैली बैंक ने 21 भारतीय स्टार्टअप कंपनियों में इन्वेस्टमेंट किया है। हालांकि ये आंकड़ा ज्यादा भी हो सकता है। इनमें ब्लूस्टोन, कार्वेल, लॉयल्टी रिवॉर्ड, पेटीएम, पेटीएम मॉल और वन97 जैसी कंपनियों के नाम हैं। रिपोर्ट के मुताबिक 2011 के बाद इस बैंक ने भारतीय कंपनियों में इन्वेस्ट नहीं किया है।
स्टार्ट-अप हार्वेस्टिंग फार्मर नेटवर्क के प्रमुख रुचिर गर्ग ने एक इंटरव्यू में बताया कि इस बैंक से जुड़ी भारतीय कंपनियों की संख्या 20-25 से ज्यादा नहीं है। दरअसल, बहुत सारे स्टार्ट-अप्स को भारत से बाहर जैसे जापान, सिंगापुर, अमेरिका आदि से फंडिग आती है। ऐसे में कंपनियां सिलिकॉन वैली जैसे बैंकों में अपना बैंक अकाउंट खोलती हैं। जब किसी कंपनी में सिलिकॉन वैली बैंक निवेश करता है तो स्वाभाविक है कि वो कंपनी भी विदेशों से होने वाले लेन-देन के लिए सिलिकॉन वैली में अकाउंट खुलवाना पसंद करेगी।
America’s 2 big banks Signature-Silicon drowned in 2 days, more than 21 Indian companies in danger