AMU: पीएम का संबोधन और इसके मायने
मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) के शताब्दी समारोह में ऑनलाइन हिस्सा लिया और इस मौके पर अपनी उपलब्धियों के साथ-साथ विश्वविद्यालय के छात्रों को भी कई संदेश दिये। यूं तो एक प्रधानमंत्री की ओर से इस तरह का भाषणबाजी आम मानी जाती है, लेकिन जब एक हिन्दुत्ववादी पार्टी का नेता…किसी अल्पसंख्यक संस्थान में ऐसी बातें कहे, तो इसके कई मायने निकलते हैं। चलिए देखते हैं पीएम मोदी ने क्या कहा और दरअसल वो कहना क्या चाहते थे।
भारतीय संस्कृति का प्रतिनिधित्व
पीएम मोदी ने एएमयू (AMU) के शताब्दी समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि आज एएमयू से तालीम लेकर निकले लोग दुनियाभर में छाए हुए हैं। विदेश यात्राओं के दौरान यहां के अलुम्नाई मिलते हैं, जो गर्व से बताते हैं कि वो एएमयू (AMU) से हैं। अपने 100 वर्ष के इतिहास में एएमयू ने लाखों जीवन को तराशा है, संवारा है। इस विश्वविद्यालय से निकले छात्र भारत की संस्कृति का प्रतिनिधित्व करते हैं।
इसमें कोई शक नहीं कि इस विश्वविद्यालय से निकले छात्रों ने विभिन्न क्षेत्रों में कामयाबी हासिल की है और देश का नाम रौशन किया है। पूर्व क्रिकेटर लाला अमरनाथ, कैफी आजमी, राही मासूम रजा, जावेद अख्तर और नसीरुद्दीन शाह ने एएमयू से ही पढ़ाई की थी। इसके अलावा प्रोफेसर इरफान हबीब, उर्दू कवि असरारुल हक मजाज, शकील बदायूंनी, प्रोफेसर शहरयार जैसे नामचीन लोग भी इस विश्वविद्यालय के छात्र रहे हैं।
AMU विश्वविद्यालय नहीं, ‘छोटा भारत’
प्रधानमंत्री मोदी ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) को ”छोटा भारत” बताते हुए कहा कि ‘उर्दू, अरबी और फारसी भाषा पर यहां जो रिसर्च होती है, इस्लामिक साहित्य पर जो रिसर्च होती है, वो समूचे इस्लामिक वर्ल्ड के साथ भारत के सांस्कृतिक रिश्तों को नई ऊर्जा देती है।
यहां एक तरफ उर्दू पढ़ाई जाती है, तो हिंदी भी। अरबी पढ़ाई जाती है तो संस्कृत की शिक्षा भी दी जाती है। यहां लाइब्रेरी में कुरान है तो रामायण भी उतनी ही सहेजकर रखी गई है। हमें इस शक्ति को न भूलना है, न कमजोर पड़ने देना है। एएमयू (AMU)के कैंपस में एक भारत-श्रेष्ठ भारत की भावना मजबूत हो, हमें इसके लिए काम करना है।
पीएम मोदी जिस भारत की बात कर रहे थे, वो धर्म-निरपेक्ष भारत की संकल्पना है। पीएम इसे लेकर गंभीर हैं, इसका ना तो मोदी-समर्थकों को यकीन हुआ होगा और ना ही मोदी-विरोधियों को। बीजेपी का नेता हिन्दू राष्ट्र की बात ना करे, तो उनके समर्थकों को भी उतना ही आश्चर्य होगा, और उसके विरोधियों को भी। इसलिए इसे राजनीतिक बयानबाजी ही समझा जाना चाहिए।
भेदभाव नहीं करती है सरकार
पीएम ने कहा कि देश आज उस मार्ग पर बढ़ रहा है जहां हर वर्ग तक योजनाएं पहुंच रही हैं। उन्होंने कहा, ‘बिना किसी भेदभाव के 40 करोड़ से ज्यादा गरीबों के बैंक खाते खुले, दो करोड़ लोगों को घर मिले, आठ करोड़ से ज्यादा महिलाओं को गैस कनेक्शन मिला. बिना किसी भेदभाव के कोरोना वायरस संक्रमण के दौर में 80 करोड़ देशवासियों को मुफ्त अनाज सुनिश्चित किया गया. आयुष्मान योजना के तहत 50 करोड़ लोगों को पांच लाख रूपये तक का मुफ्त इलाज संभव हुआ.’
पीएम ने अपने नारे ‘सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास’ पर ही यकीन दिलाने की कोशिश की। उन्होंने कहा कि जो देश का है, वह हर देशवासी का है और उसका लाभ हर देशवासी को मिलना चाहिए। ये बात सैद्धांतिक तौर पर तो लागू है, पर व्यवहारिक तौर पर कितना अमल में लाया जाता है, इसे लेकर अल्पसंख्यक वर्ग में काफी मतभेद हैं।
अल्पसंख्यकों के हित में किये काम
पीएम ने शिक्षा के क्षेत्र में किए गए कामों को गिनाते हुए कहा कि मुस्लिम छात्राओं के बीच पढ़ाई छोड़ने की दर में गिरावट आई है। उन्होंने कहा कि शिक्षा चाहे Online हो या फिर Offline, सभी तक पहुंचे, बराबरी से पहुंचे, सभी का जीवन बदले, हम इसी लक्ष्य के साथ काम कर रहे हैं.‘
शिक्षा के अलावा पीएम ने तीन तलाक कानून का भी जिक्र किया और बताया कि इससे मुस्लिम महिलाओं को काफी राहत मिली है। वहीं, उन्होंने यूपी के चर्चित लव जिहाद कानून का जिक्र करना जरुरी नहीं समझा, जिसे लेकर अल्पसंख्यकों में काफी रोष है।
सरकार पर रखें भरोसा
प्रधानमंत्री ने कहा, ‘देश की समृद्धि के लिए उसका हर स्तर पर विकास होना आवश्यक है. आज देश भी उस मार्ग पर बढ़ रहा है, जहां प्रत्येक नागरिक को बिना किसी भेदभाव के देश में हो रहे विकास का लाभ मिले. देश आज उस मार्ग पर बढ़ रहा है, जहां पर प्रत्येक नागरिक संविधान से मिले अपने अधिकारों को लेकर निश्चिंत रहें, भविष्य को लेकर निश्चिंत रहें.’
मोटे तौर पर पीएम मोदी ने अल्पसंख्यक वर्ग को ये भरोसा दिलाने की कोशिश है कि नरेन्द्र मोदी आपका दुश्मन नहीं है ( बीजेपी या RSS का पता नहीं)। साथ ही उन्होंने आश्वासन दिया कि आपके अधिकार और आपका भविष्य यहां सुरक्षित है ( बेहतर होता अगर वो इसे सपाट शब्दों में कहते – कोई आपसे पाकिस्तान जाने को नहीं कहेगा!)
सियासत नहीं, समाज अहम है
पीएम ने कहा ‘समाज में वैचारिक मतभेद होते हैं, लेकिन जब बात राष्ट्रीय लक्ष्यों की प्राप्ति की हो, तो हर मतभेद किनारे रख देने चाहिए। जब आप सभी युवा साथी इस सोच के साथ आगे बढ़ेंगे तो ऐसी कोई मंजिल नहीं, जो हम हासिल न कर सकें। हमें समझना होगा कि सियासत सोसाइटी का अहम हिस्सा है। लेकिन सोसाइटी में सियासत के अलावा भी दूसरे मसले हैं। सियासत और सत्ता की सोच से बहुत बड़ा, बहुत व्यापक किसी देश का समाज होता है।‘
जाहिर है उनका इशारा हाल में CAA-NRC के मुद्दे पर हुए छात्रों के विरोध-प्रदर्शन की ओर था। पिछले साल दिसंबर महीने में ही नागरिकता संशोधन कानून को लेकर AMU कई दिनों तक अस्थिर रहा। इस दौरान कई छात्रों को हिरासत में लिया गया और प्रशासन को बल प्रयोग भी करना पड़ा। पीएम के कहने का मतलब शायद ये था कि छात्र अपनी पढ़ाई पर ध्यान दें, सियासत में ना उलझें।
आखिर में उन्होंने छात्रों से अपील की कि AMU के कैंपस में ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ की भावना दिनों-दिन मजबूत होती रहे, इसके लिए मिलकर काम करें.’ । अगर पीएम मोदी इसे लेकर सचमुच गंभीर हैं तो ये बात उन्हें बीजेपी-आरएसएस के सम्मेलन में भी कहनी चाहिए, क्योंकि ‘एक भारत’ के लिए दोनों पक्षों को अपनी-अपनी नफरत और आशंकाएं छोड़नी पड़ेगी।