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Arnab: दीवानी, फौजदारी और अरनब

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Arnab: दीवानी, फौजदारी और अरनब

Arnab
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जार्ज ऑरवेल के उपन्यास एनिमल फॉर्म में कहा गया है- सभी जानवर बराबर हैं, लेकिन कुछ जानवर दूसरों से ज्यादा बराबर हैं

लोकतंत्र में प्रजा ही राजा है। विधायिका के कानून और अदालत के फैसलों की सबसे बड़ी कसौटी ये है कि उनमें आम जनता को अपना अक्स दिखाई दे। ऐसे वक्त में जबकि एक मुख्यमंत्री सुप्रीम कोर्ट के एक जज पर अपनी सरकार को गिराने का इल्जाम लगाता है और अटार्नी जनरल कहते हैं कि इससे अदालत की अवमानना नहीं होती, वहीं एक स्टैंड अप कॉमेडियन के  ट्वीट्स पर अदालत की अवमानना की कार्रवाई शुरू करने की इजाजत दे दी जाती है। Contempt of court पर वरिष्ठ वकील Sriram Panchu, का कहना है

“Power (of the Supreme Court) comes not from Articles 32 or 226 but from the public esteem and regard in which you are held, and that proceeds from the extent you act as our constitutional protector. In direct proportion. Sans that, there are only trappings.”

इमरजेंसी को सही ठहराने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के 43 साल बाद एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट को लेकर बड़ी बहस देश में शुरू हो गई है। अरनब गोस्वामी को बेल और स्टेन स्वामी को जेल क्यों की बहस में सरकार भी शामिल हो गई है।

कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने सुप्रीम कोर्ट की आलोचना पर नाराजगी जताई है। संविधान दिवस (26 नवंबर) के मौके पर उन्होंने कहा

परेशान करने वाली एक प्रवृत्ति देखने को मिल रही है। कुछ लोगों का दृष्टिकोण है कि किसी विशेष मामले में क्या फैसला होना चाहिए। इसके बाद अखबारों में विमर्श शुरू हो जाता है और सोशल मीडिया पर अभियान चलाया जाता है कि किस तरह का फैसला होना चाहिए। बहुत विनम्रता से मैं कहना चाहूंगा कि निर्मम तरीके से न्यायपालिका की आलोचना करना पूरी तरह अस्वीकार्य है।

कानून मंत्री का इशारा किस ओर है ?

अरनब गोस्वामी को सुप्रीम कोर्ट से हफ्ते भर में अंतरिम जमानत मिलने के बाद देश के कई मशहूर पत्रकारों और पूर्व जजों ने कड़ी टिप्पणी की। स्टेन स्वामी, वरवर रॉव और केरल के सिद्दीकी कप्पन समेत सीएए का विरोध करने वाले छात्रों और सामाजिक कार्यकर्ताओं की मिसाल दी गई, जिनके लिए अदालत का रुख बेहद कठोर रहा है। उदार फैसलों के लिए मशहूर जस्टिस चंद्रचूड़ के फैसले को लेकर सबसे सख्त राय इंडियन एक्सप्रेस में पत्रकार भानु प्रताप मेहता ने रखी। उन्होंने अदालत की हालिया कार्रवाइयों को  judicial barbarism  करार दिया।

1. भानु प्रताप मेहता का इंडियन एक्सप्रेस में लेख

 2. सत्या हिन्दी डॉट कॉम पर इस लेख का हिन्दी अनुवाद

अरनब(Arnab) मामले में ऐसा क्या हुआ है?

अब तक हमारे देश में दीवानी और फौजदारी मामले आते थे, अब एक तीसरी कैटेगरी आई है वो है अरनब के मामले।

  1. आत्महत्या के लिए मजबूर करने के मामले में अरनब गोस्वामी को सुप्रीम कोर्ट ने छुट्टी के दिन सुनवाई कर जमानत तो दी ही, इसके साथ ही हाईकोर्ट को कड़ी फटकार भी लगाई है। दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस एपी शाह का कहना है कि अरनब ने 226 के तहत अंतरिम जमानत का आवेदन दिया था। इन मामलों में पहले लोअर कोर्ट जाने की परंपरा है, अदालत ने उन्हें लोअर कोर्ट में अपील करने के लिए कह कर स्थापित परंपरा का पालन ही किया है। हाईकोर्ट ने चार दिन के अंदर निचली अदालत को इस मामले में फैसला सुनाने का आदेश दिया जिसे जस्टिस शाह अभूतपूर्व  निर्देश मानते हैं।
  2. अरनब ने एक साथ सेशंस कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में अंतरिम जमानत के लिए अपील दायर की। इस तरह उन्होंने एक साथ देश की सबसे निचली अदालत और सबसे बड़ी अदालत में अपील दायर की। सुप्रीम कोर्ट का स्पस्ट निर्देश है कि ऊपर की अदालत में अपील दायर करने से पहले फऱियादी को एफिडेविट देना होता है कि उसने इस मामले में किसी और कोर्ट में कोई अपील दायर नहीं की है। इस मामले में लोअर कोर्ट में गए बगैर हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक में इस मामले में महज एक हफ्ते में सुनवाई हुई और फरियादी को राहत मिल गई।
  3.  कोरोना की वजह से सुप्रीम कोर्ट में मुश्किल से एक तिहाई जज ही सुनवाई कर रहे हैं, जिस वजह से कई जरूरी मुकदमों की सुनवाई नहीं हो पा रही, लेकिन अरनब के लिए छुट्टी के दिन अदालत बैठी।
  4.  अरनब की अपील में 9 खामियां थीं-जैसे वकालतनामा पर उनके दस्तखत नहीं थे। आम तौर पर गलतियां पाए जाने पर जब तक सुधार न हो, तब तक केस की तारीख नहीं मिलनती। लेकिन गलतियों को दरकिनार कर रजिस्ट्री ने इसे अगले दिन के लिए लिस्ट में शामिल कर लिया। सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष दुष्यंत दवे ने इस पर एतराज करते हुए सेक्रेटरी जनरल को एक खत भी लिखा।
  5.  अरनब पर पालघर में साधुओं की हत्या और सोनिया गांधी पर चले प्रोग्राम को लेकर मुंबई पुलिस की कार्रवाई पर बंबई हाईकोर्ट ने रोक लगा दी। अब सुप्रीम कोर्ट में मुंबई पुलिस के वकील ने सवाल रखा है कि क्या कोर्ट पुलिस के जांच करने के अधिकार पर रोक लगा सकती है?
  6. TRP मामले में मुंबई पुलिस ने FIR में अरनब को आरोपी बनाया, पूछताछ में सहयोग नहीं करने की वजह से चार्जशीट में अरनब वांटेड हैं। मुंबई हाईकोर्ट ने उन्हें इस चार्जशीट को अदालत में चुनौती देने की इजाजत दे दी है। बगैर एक दिन भी गिरफ्तार हुए क्या इससे पहले किसी आरोपी को इतनी राहत मिलने का कोई मामला आपको याद है?
  7.  इतना ही नहीं, रिपब्लिक टीवी पर टीआरपी केस को लेकर रोजाना चल रहे प्रोग्राम पर मुंबई पुलिस के वकील कपिल सिब्बल ने रोक लगाने की मांग की तो अदालत ने इस वास्ते उन्हें आवेदन देने को कहा। वहीं रिपब्लिक टीवी के वकील ने कहा  

The court too agreed with Ponda, who said he would “sincerely convey’’ Sibal’s oral request to his client.

कुछ इसी तरह का मामला कंगना रनौत का है।

कंगना रनौत के आपत्तिजनक ट्वीट्स को लेकर जब उन पर मुकदमा दर्ज किया गया तो राहत के लिए कंगना बंबई हाईकोर्ट गईं। हाईकोर्ट ने मुंबई पुलिस को फटकार लगाते हुए पूछा

इस मुकदमे में धारा 124 ए क्यों लगाई गई?  ‘अगर कोई व्यक्ति सरकार के विचार से सहमत नहीं है, तो क्या उसे राजद्रोह मान लिया जाएगा?’

इस अंग्रेजी कानून की महात्मा गांधी ने कड़ी आलोचना की थी। उन्होंने इसे नागरिकों की आजादी का दमन करने वाला कानून कहा था। आजादी के बाद ये कानून खत्म नहीं हुआ, लेकिन इसका इस्तेमाल बहुत कम होता था। केदारनाथ सिंह बनाम बिहार स्टेट मुकदमे में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था

‘भले ही कठोर शब्द कहे गए हों, लेकिन अगर वो हिंसा नहीं भड़काते हैं तो राजद्रोह का मुकदमा नहीं बनता।

लेकिन बीते छह सालों में राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ इस धारा का बार-बार इस्तेमाल हुआ है। 2014 में 124 ए के 47, 2015 में 30, 2016 में 35, 2017 में 51, 2018 में 70 केस दर्ज हुए। 2019 में सीएए के खिलाफ छात्रों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के खिलाफ तीन हजार से ज्यादा मामले दर्ज किए गए। लेकिन इनमें से एक भी मामले पर देश की किसी अदालत ने राज्य की पुलिस से ये नहीं पूछा कि आपने इस धारा का इस्तेमाल क्यों किया ?  सवाल है क्या ये महज इत्तेफाक है कि नागरिक स्वतंत्रता को लेकर अदालत की चिंता तब ज्यादा नजर आती है जब मामला एक खास पार्टी के समर्थक का होता है?  

लोकतंत्र में विरोध की आवाज और बौद्धिक बहस की अपनी अहमियत है। जैसे अरनब मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले से हुआ ये है कि क्योंकि सुप्रीम कोर्ट का हर फैसला देश के सभी लोअर और हाईकोर्ट के लिए नजीर होता है। लिहाजा इसी फैसले को आधार बनाकर बेंगलुरू हाई कोर्ट ने Power TV  के एडिटर Rakesh Shetty को जमानत दे दी।

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