लगातार बढ़ रहे हैं ख़ुदकुशी के मामले!
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क्या आप जानते हैं कि हर साल देश में एक लाख से ज्यादा लोग खुदकुशी (suicide) करते हैं? नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) ने हाल ही में वर्ष 2019 की रिपोर्ट जारी की है। इसके मुताबिक साल 2019 में पूरे देश में आत्महत्या के 1,39,123 मामले दर्ज हुए हैं, जो कि साल 2018 की तुलना में करीब 0.2% ज्यादा हैं। खुदकुशी के मामलों में महाराष्ट्र सबसे आगे है, जिसके बाद तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश और कर्नाटक का नंबर है। गंभीर बात ये है कि छोटे राज्यों, जैसे – छत्तीसगढ़, हरियाणा और झारखंड…में भी खुदकुशी करनेवालों की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही है।

जैसा कि आंकड़ों से स्पष्ट है, 13.6% के साथ आत्महत्या के मामलों में महाराष्ट्र(18916) सबसे आगे है। इसके साथ तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश और कर्नाटक को मिला दें, तो देश के आधे से अधिक खुदकुशी के मामले इन्हीं पांच राज्यों से आये हैं। ये सभी विकसित राज्यों में गिने जाते हैं, जहां की… शिक्षा, प्रति व्यक्ति आय और रोजगार का स्तर अन्य राज्यों से बेहतर है। फिर भी आत्महत्या के इतने मामलों का आना चिंताजनक है।

क्या है आत्महत्या की मुख्य वजह?
NCRB के आंकड़ों के मुताबिक आत्महत्या की सबसे बड़ी वजह रही है पारिवारिक परेशानियां। खुदकुशी करनेवालों में 32 फीसदी से ज्यादा लोगों ने पारिवारिक समस्याओं से तंग आकर अपनी जान ले ली। इसके बाद दूसरी बड़ी वजह है बीमारी, जिसकी वजह से करीब 17 फीसदी लोगों ने खुदकुशी कर ली। ये आंकड़े बताते हैं कि परिवारों का बिखरना, नौकरी के लिए दूर जाना और परिवार की जिम्मेदारियां अकेले निभाना आसान नहीं रहा है। छोटे परिवारों में तनाव दूर करने का, भावनात्मक सहयोग का वो माहौल नहीं रहता, जो बड़े परिवारों में होता है। साथ ही आधुनिक जिंदगी की भागमभाग और महंगाई के बीच परिवार की सभी जरुरतें पूरी करने की जद्दोजहद आम आदमी की जान ले रही है।

दूसरी ओर इससे ये भी पता चलता है कि गंभीर बीमारियों के मामले में देश की स्वास्थ्य व्यवस्था ऐसी है कि इलाज कराने के बजाए लोग खुदकुशी करना ज्यादा पसंद करते हैं। आम तौर पर कैंसर जैसी बीमारियों में इतना खर्चा होता है कि घर के किसी सदस्य का इलाज कराने में पूरा परिवार बर्बाद हो जाता है। सरकारी अस्पतालों का इतना बुरा हाल है, कि मध्य वर्ग वहां जाना नहीं चाहता…और निजी अस्पतालों में इलाज कराने में परिवार की हालत खराब हो जाती है।
कौन से वर्ग पर सबसे ज्यादा असर?

अगर आत्महत्या करनेवालों को उनके काम के हिसाब से बांटा जाए, तो सबसे ज्यादा संख्या में रोज कमाने-खाने वाले गरीब या निम्न मध्यवर्गीय लोग ही जान दे रहे हैं। आंकड़ों के मुताबिक आत्महत्या करनेवालों में करीब एक-चौथाई (23.4%) लोग ऐसे हैं, जो दैनिक मजदूरी करते हैं। इनकी ना तो इतनी कमाई होती है कि किसी शहर में अपने परिवार को बेहतर जिंदगी दे सकें, और ना ही इतनी बचत होती है कि बीमारी में अपना इलाज करा सकें। ये आंकड़े साल 2019 के हैं, जब कोरोना काल के आंकड़े आएंगे…तो स्थिति की कल्पना ही की जा सकती है।

अच्छी नहीं झारखंड की हालत
झारखंड की हालत भी कुछ अच्छी नहीं है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की वर्ष 2019 की रिपोर्ट के मुताबिक झारखंड में 1646 लोगों ने विभिन्न कारणों से आत्महत्या की। साल 2018 की तुलना में इन आंकड़ों में 25% की बढ़ोतरी हुई है। सबसे ज्यादा चिंता की बात ये है कि ये संख्या पड़ोसी राज्य बिहार से ढाई गुना से भी ज्यादा है। बिहार में गरीबी, अशिक्षा और बाढ़ जैसी समस्याओं के बावजूद आत्महत्या करनेवालों की संख्या महज 642 है, जो कुल आंकड़े का 0.5 फीसदी है। जबकि झारखंड में ये देश में आत्महत्या की हुई घटनाओं का करीब 4.4 फीसदी है।
और एक बात…
वर्ष 2019 में सड़क हादसों में 2019 में 4289 लोगों की जान चली गयी है। इनमें 4.8 फीसदी की मौत हाइवे पर 13.9 फीसदी की मौत ओवरटेक करने के दौरान हुई। इन आंकड़ों को आत्महत्या के साथ इसलिए जोड़ दिया है, क्योंकि आप चाहे मानें या ना मानें…. लेकिन सड़क पर तेज रफ्तार में गाड़ी चलाना और बेवजह ओवरटेक करना एक तरह से खुदकुशी ही है।