बैंक बिकता है बोलो खरीदोगे ?
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न्यूज एजेंसी रॉयटर में Aftab Ahmed और Nupur Anand के हवाले से छपी खबर में बताया गया है कि सरकार PSU बैंकों की तादाद मौजूदा 12 से घटा कर 5 करने पर विचार कर रही है। इससे पहले जब बैंकों की तादाद 27 से घटा कर 12 की गई थी, तब घाटे में चल रहे बैंकों का मुनाफे में चल रहे बैंकों से विलय किया गया था। इस बार सरकार इन बैंकों में अपने मेजोरिटी शेयर बेच कर इन बैंकों का निजीकरण करना चाहती है। ये बैंक हैं
- बैंक ऑफ इंडिया
- सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया
- इंडियन ओवरसीज बैंक
- यूको बैंक
- बैंक ऑफ महाराष्ट्र
- पंजाब एंड सिंध बैंक
निजीकरण की इस नई मुहिम के बाद PSU बैंकों की तादाद घटकर 5 रह जाएगी।
इस फैसले की वजह क्या है?
सरकार को खर्च के लिए रकम चाहिए। बैंकों के शेयर बेच कर सरकार इस कमी को पूरा करना चाहती है।
Narasimham committee और PJ Nayak committee बैंकों की तादाद कम करने का सुझाव पहले भी दे चुके हैं
सरकार ने बैंकों के शेयर बेचने के लिए कोई तारीख अभी तय नहीं की है। कैबिनेट की इजाजत मिलने और फैसले के लागू होने में अभी वक्त लग सकता है। लेकिन रॉयटर को ये सूचना दे कर सरकार ने एक तरह से इशारा कर दिया है कि वो इस बारे में अपनी राय बना चुकी है।
क्या इस फैसले के लिए ये सही वक्त है?
आशंका है कि PSU बैंकों का NPA जो सितंबर 2019 में 9.1% यानी $124.38 बिलियन था, कोरोना की वजह से बढ़ कर दो गुना यानी कुल पूंजी का 18% हो सकता है। बैंकों को इस बढ़े NPA से बचाने के लिए सरकार को कम से कम $20 बिलियन देना पड़ सकता है।
बैंकों की परेशानी क्या है?
राजनीतिक दबाव कम हो
PSU बैंकों का NPA इसलिए बढ़ रहा है, क्योंकि उन पर चहेते बिजनेस घरानों को बगैर कोलैटरल सिक्योरिटी के कर्ज देने का दबाव डाला जाता है, और फिर उस कर्ज को NPA करार दे दिया जाता है। बैंकों की तादाद 12 हो या 4, अगर फोन पर लोन वाली व्यवस्था कायम रही तो सरकारी बैंकों की सेहत कभी नहीं सुधरेगी।
कॉरपोरेट गवर्नेंस पर काम हो
सरकार बैंकों में सुधार करना भी चाहती है और इन पर अपना नियंत्रण भी खोना नहीं चाहती। अब PSU बैंकों में एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर की तादाद बढ़ाकर 4 कर दी गई है, इसके अलावा टॉप टायर मैनेजमेंट में चीफ जेनरल मैनेजर को शामिल कर PSB को और ज्यादा टॉप हेवी कर दिया गया है। खास बात ये कि ऐसा करते हुए सरकार ने इनका रोल डिफाइन नहीं किया है।
ज्यादातर PSB में डायरेक्टर लेवल की कई वैकेंसी है। छह में से दो बड़े बैंकों में चेयरमैन नहीं हैं। बीते चार साल में कभी भी PSB बैंकों में officers’ and workmen’s directors की नियुक्ति नहीं हुई। पंजाब नेशनल बैंक में 15 की जगह अभी सिर्फ 8 डायरेक्टर हैं। यही हाल बैंक ऑफ इंडिया और इंडियन बैंक का है।

रिजर्व बैंक का निर्देश है कि बैंकों के बोर्ड की स्वायत्तता के लिए स्वतंत्र डायरेक्टर्स की मेजोरिटी हो, लेकिन चार ED, दो RBI मेंबर और दो कर्मचारियों के प्रतिनिधि के बाद स्वतंत्र डायरेक्टर की भूमिका एक कंसल्टेंट से ज्यदा कुछ रह नहीं जाती।
रिजर्व बैंक की सलाह है कि risk management, compliance, internal audit और vigilance का अलग मुखिया हो जो ED से एक रैंक कम हो और सीधे बैंक के बोर्ड को रिपोर्ट करे। अब हमारे देश में ऐसी स्थिति की कल्पना करना भी मुश्किल है जहां एक एग्जिक्यूटिव अपने बैंक के ED और MD को बाइपास कर सीधा बोर्ड को रिपोर्ट करे।
VRS और विलय के बाद सरप्लस स्टाफ को हटाने की सरकारी नीति का नतीजा ये हुआ है कि बैंकों में हाई क्वालिटी सीनियर मैनेजमेंट की भारी किल्लत हो गई है।
समाधान क्या है ?
बैंकों में ED और MD स्तर के अफसरों की सैलरी के 40 से 50% हिस्से को उनके काम-काज के मूल्यांकन और बैंक के सालाना नतीजे के आधार पर incentivize किया जाए।
कर्ज देने में नेताओं का दबाव, गरीबों को बैंकिंग व्यवस्था से जोडऩे की सरकारी मुहिम के तहत कम मुनाफा वाले क्षेत्र में काम करने की बाध्यता, और कारोबारी फैसले लेने में स्वायत्तता की वजह से सरकारी बैंक बैलेंस शीट में कमजोर नजर आते हैं। बीती तिमाही की बात करें तो जहां निजी बैंकों को 5,457 करोड़ का मुनाफा हुआ वहीं PSU बैंकों को 5,973.2 करोड़ का नुकसान।
Percy Mistry Committee ने स्वीडेन, सिंगापुर, ब्रिटेन और साउथ कोरिया की तर्ज पर बैंकिंग, कैपिटल मार्केट, इन्श्योरेंस, पेन्शन और डिराइवेटिव के लिए unified regulatory architecture का सुझाव दिया है।
जर्मनी, इटली और साउथ अफ्रीका की तर्ज पर credit risk insurance की व्यवस्था लागू की जाए।
CIBILयानी Credit Information Bureau India Ltd पुराने तौर-तरीके से काम कर रहा है। Credit Information Services Act of 2005 लागू कर नई एजेंसियों को मौका दिया जाए। कंपीटिशन बढ़ेगा तो क्रेडिट हिस्ट्री की रिपोर्टिंग भी ज्यादा बेहतर होगी।
क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों से जुड़ा बड़ा सुधार जरूरी है। अभी रिजर्व बैंक ने क्रेडिट रेटिंग एजेंसी के तौर पर Fitch, Standard’s and Poor (S&P) और Moody’s को मान्यता दी है। बैंक इनकी क्रेडिट रेटिंग रिपोर्ट लेते हैं, लेकिन इन्हें कोई भुगतान नहीं करते, इसी तरह ये एजेंसी भी मुफ्त में इनसे रेटिंग लेने वालों को अपनी जवाबदेही कबूल कर रिपोर्ट नहीं देती। होना ये चाहिए कि कोई बैंक रेटिंग एजेंसी से काम ले तो उनको भुगतान करे और अगर इनकी रेटिंग गलत साबित हो तो बैंक उनसे सवाल कर पाए।