बंगाल चुनाव: क्या ममता बचा पाएंगी अपनी सत्ता?

पश्चिम बंगाल में चुनावी बाजी बिछ चुकी है और BJP और TMC के बीच शह और मात का खेल शुरु हो गया है। आगामी चुनावों के मद्देनज़र दोनों ही पार्टियां तमाम सियासी तिकड़मों का इस्तेमाल कर रही हैं। रैलियों, बोलियों और गोलियों के बीच ये चुनाव कम…जंग ज्यादा दिख रही है, जिसमें नियम-कायदों और राजनीति शुचिता से ज्यादा अहम है जीत।
दो दिन पहले गृहमंत्री अमित शाह ने TMC में तोड़फोड़ की थी और ममता बनर्जी (Mamta Banerjee) के करीबी मंत्री रहे सुवेंदु अधिकारी समेत कुल 10 विधायकों और एक सांसद को अपनी पार्टी में शामिल कर लिया था। अब ममता बनर्जी ने अपनी ताकत दिखाई और सोमवार को बीजेपी सांसद सौमित्र खान की पत्नी सुजाता मंडल खान को टीएमसी में शामिल कर लिया। सौमित्र, पश्चिम बंगाल की बिशुनपुर लोकसभा सीट से बीजेपी के टिकट पर सांसद हैं। बताया जा रहा है कि सौमित्र खान और सुजाता के बीच कई दिनों से अनबन चल रही थी। इस घटना के बाद सौमित्र ने उन्हें तलाक का नोटिस भेज दिया है।

ममता बनर्जी (Mamta Banerjee) के सामने चुनौतियां
2019 लोकसभा चुनावों में जब बीजेपी को यहां से 18 सीटों पर जीत मिली, उसके बाद से ही पार्टी का हौसला बढ़ गया और ममता बनर्जी (Mamta Banerjee) की मुसीबतें। लगातार रैलियों और राष्ट्रीय नेताओं के दौरों के जरिए बीजेपी ने हवा बनानी शुरु कर दी और अब बंगाल की राजनीति में उनका दबदबा काफी बढ़ चुका है। लेकिन ममता बनर्जी की चुनौती बाहरी कम, अन्दरुनी ज्यादा है। उनकी अपनी पार्टी में बढ़ता असंतोष और शासन-व्यवस्था को लेकर जनता की नाराजगी..उनकी जीत की राह में ज्यादा बड़ी बाधाएं खड़ी कर रही है। आइये एक-एक कर उन मुद्दों पर डालते हैं नज़र :-

बागियों से खतरा
तृणमूल कांग्रेस में बगावत बढ़ती जा रही है और इसके नेता लगातार पार्टी छोड़कर दूसरी पार्टियों में शामिल हो रहे हैं। पार्टी छोड़नेवाले ज्यादातर नेताओं को ममता (Mamta Banerjee) से नहीं, बल्कि पार्टी के रणनीतिकार प्रशांत किशोर और उनकी कंपनी आई पैक से नाराजगी है। नाराज नेताओं का कहना है कि ये लोग पार्टी को जनता के हिसाब से नहीं, बल्कि कॉर्पोरेट अंदाज में चलाना चाहते हैं और उनकी कार्यशैली कार्यकर्ताओं को रास नहीं आ रही है। वहीं ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी के बढ़ते कद और दखलअंदाजी से भी कई वरिष्ठ नेता खुश नहीं हैं। आपको बता दें कि मिदनापुर क्षेत्र के लगभग 40 से अधिक सीटों पर अधिकारी परिवार का दबदबा है। ऐसे में उनका और ऐसे अन्य नेताओं का पार्टी से अलग होना ममता बनर्जी (Mamta Banerjee) के लिए मुश्किल खड़ा कर सकता है।

वैसे, नेताओं और कार्यकर्ताओं की बढ़ती नाराजगी को भांपते हुए, ममता बनर्जी ने पिछले दिनों कालीघाट में हुई कोर कमेटी की बैठक में प्रशांत किशोर से जवाब-तलब किया। सूत्रों के मुताबिक, बैठक में ममता बनर्जी (Mamta Banerjee) ने पीके से इस मुद्दे पर नाराजगी जताते हुए उनको फौरन स्थिति संभालने का अल्टीमेटम दिया है। इसी का नतीजा है कि अब बीजेपी में तोड़फोड़ की खबरें भी आने लगी हैं।
नुकसान पहुंचाएगा CAA का मुद्दा?
बंगाल में करीब 23 फीसदी आबादी अनुसूचित जाति की है। इनमें सबसे अहम है मटुआ समुदाय, जिसपर बीजेपी और टीएमसी दोनों की ही नजरें टिकी हुई हैं। बता दें कि मटुआ समुदाय के लोग पूर्वी पाकिस्तान से आए लोग हैं, जो लगातार नागरिकता देने की मांग कर रहे है। बीजेपी ने इन्हें नागरिकता कानून (CAA) के तहत नागरिकता देने का वादा किया है। वैसे भी साल 2019 लोकसभा चुनाव में भाजपा को मटुआ समुदाय वाले क्षेत्रों कूचबिहार, जलपाईगुड़ी, विष्णुपुर और बोनगांव में जीत मिली थी।
साल 2010 में मटुआ समुदाय ने ममता बनर्जी (Mamta Banerjee) को अपना मुख्य संरक्षक बनाया था। ममता बनर्जी ने इनके लिए कई काम किये हैं और इस समुदाय के टीएमसी के साथ काफी अच्छे संबंध रहे हैं। लेकिन ममता बनर्जी लगातार CAA के खिलाफ बोलती रही हैं। वहीं अमित शाह ने साफ कहा है कि सत्ता में आने पर CAA को प्रदेश में लागू किया जाएगा। ऐसे में मटुआ समुदाय का वोटबैंक पूरी तरह खिसक कर बीजेपी के पाले में जा सकता है।

ध्रुवीकरण का मिलेगा फायदा?
कई लोगों का मानना है कि ममता (Mamta Banerjee) सरकार मुस्लिमों के हितों का ज्यादा ध्यान रखती है, जबकि हिंदुओं के पक्ष में ममता बनर्जी का रवैया उदासीन होता है। बीजेपी की कोशिश यही है कि बंगाल में हिन्दू वोटों का ध्रुवीकरण हो, फिर चाहे वो CAA-NRC के मुद्दे पर हो, या मुस्लिम तुष्टीकरण के मामले पर। अगर बीजेपी इसी तरह इन मुद्दों को उछालती रही, तो बंगाल में अल्पसंख्यक मतों का धुव्रीकरण हो सकता है। बंगाल में अल्पसंख्यक (मुस्लिम) वोटरों की संख्या 28 प्रतिशत है, और जाहिर तौर पर इसका सीधा फायदा ममता बनर्जी को मिलेगा। लेकिन दूसरी तरफ इसका नुकसान ये है कि अगर इसकी प्रतिक्रिया में बहुसंख्यक (हिंदू) वोटरों का ध्रुवीकरण हुआ, तो यह ममता बनर्जी (Mamta Banerjee) के लिए खतरे की घंटी हो सकती है।
शासन पर भी सवाल
बंगाल में रोजगार की स्थिति भी ठीक नहीं है। हिंदुस्तान मोटर्स, जिसे पश्चिम बंगाल की शान माना जाता था, को बंद कर दिया गया, क्योंकि कंपनी को स्थानीय स्तर पर काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा था। इसकी वजह से हजारों लोग बेरोजगार हो गये। वहीं टाटा नैनो जैसी कई कंपनियों ने बंगाल से इसलिए किनारा कर लिया क्योंकि उन्हें सरकार का समर्थन नहीं मिला। वहीं स्थानीय माफियाओं ने भी उनका टिकना मुश्किल कर दिया।
हाल के कुछ वर्षों में कोलकता, हावड़ा, हुगली, वर्धमान, आसनसोल जैसे कई इलाकों में TMC कार्यकर्ताओं की गुंडागर्दी बढ़ गई है। कोई खुलकर नहीं बोलता, लेकिन दबी जुबान में कई लोगों का कहना है कि पाढ़ा के दादाओं (local Goons) को बंगाल सरकार का संरक्षण हासिल है और जो भी टीएमसी के खिलाफ कुछ बोलता है उसे पाढ़ा के दादा लोग धमकाते हैं।

खस्ता-हाल कानून व्यवस्था
बीजेपी को जिस मुद्दे ने सबसे ज्यादा बढ़त दिलाई, वो थी राज्य की खस्ताहाल कानून-व्यवस्था। बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा (JP Nadda) और राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय (Kailash Vijayvargiya) समेत स्थानीय बीजेपी नेताओं पर हमले हुए, लेकिन प्रशासन ने कोई कार्रवाई नहीं की। केन्द्र ने दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई करनी चाही, तो वहां भी ममता बनर्जी (Mamta Banerjee) ने उन्हें पूरा संरक्षण दिया और उसे केन्द्र बनाम राज्य का मुद्दा बना दिया। इससे ये संदेश गया कि ममता ना सिर्फ दोषी अधिकारियों को बचाती हैं बल्कि उन्हें अपने इशारों पर नचाती हैं। बंगाल में चुनाव के दौरान बूथ कैप्चरिंग, हिंसा, बमबारी, हत्या बेहद आम है और इन पर काबू पाने के लिए पुलिस प्रशासन ने कभी सख्ती नहीं दिखाई। इन सबसे जनता में सरकार की छवि को खासा नुकसान पहुंचा है।

कोरोना काल की परेशानियां
कोरोना महामारी के दौरान बंगाल सरकार का कामकाज संतोषजनक नहीं रहा और इसे लेकर लोगों में काफी नाराजगी है। हालांकि बंगाल में अन्य राज्यों की तुलना में बहुत ज्यादा मामले नहीं मिले, लेकिन इसका कारण ये बताया जाता है कि प्रशासन ने टेस्टिंग ही काफी कम की। वहीं पश्चिम बंगाल में कोरोना से मरनेवालों का आंकड़़ा कई राज्यों से ज्यादा रहा था। आरोपों के मुताबिक केवल सरकारी आंकड़ों में टेस्टिंग की संख्या दिखती है लेकिन जमीनी स्तर पर टेस्टिंग बेहद कम की गई। ममता सरकार को इसकी कीमत भी चुकानी पड़ सकती है।

हालांकि साल 2016 विधानसभा चुनाव में भाजपा को केवल 10.16 प्रतिशत वोट मिले और भाजपा केवल 3 सीटों पर ही सिमट कर रह गई थी, लेकिन 2019 के बाद से परिस्थितियां बदल चुकी हैं। बीजेपी लोकसभा चुनावों में बंगाल की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी और उसके वोटिंग प्रतिशत में खासी बढ़ोतरी हुई है। लेकिन बीजेपी के सामने सबसे बड़ी परेशानी ये है कि उसके पास कोई स्थानीय मुख्यमंत्री चेहरा नहीं है। वहीं उसके ज्यादातर नेता हिंदीभाषी हैं। इसके बावजूद वो ममता बनर्जी जैसी जमीनी स्तर के नेता को चुनौती देने की स्थिति में पहुंच गई है। ऐसे में ममता बनर्जी को अपनी आगे की रणनीति पर गंभीरता से विचार करना होगा और अपने कुनबे को बिखरने से रोकना होगा। अभी उनकी जीत की राह में मुश्किलें जरुर हैं, लेकिन ऐसी नहीं कि रफ्तार ही थम जाए।