Type to search

Biharelection2020:ये हारे तो सब हारे

जरुर पढ़ें बिहार चुनाव

Biharelection2020:ये हारे तो सब हारे

Bihar election 2020
Share on:

हमारे देश की राजनीति का सबसे बड़ा ओपन सीक्रेट ये है कि, इलेक्शन के नजरिए से बीजेपी और मोदी के लिए बिहार सबसे बड़ी चिंता… सबसे बड़ी चुनौती रहा है। बिहार हिन्दी पट्टी का अकेला राज्य है जहां बीते चुनाव में सबसे ज्यादा वोट शेयर (25%) के बावजूद बीजेपी पहली या दूसरी नहीं, तीसरे नंबर की पार्टी है। केंद्र में 6 साल की सत्ता के बावजूद हकीकत यही है कि बिहार(Biharelection2020) में बीजेपी के पास कोई सीएम कैंडिडेट तक नहीं है। सुशील मोदी, संजय जायसवाल पार्टी में हैं तो जरूर, लेकिन उनका कद वैसा नहीं है जैसा आरजेडी में लालू या जेडीयू में नीतीश का है। सच तो ये है कि बीजेपी के ज्यादातर मौजूदा नेता अगर पार्टी छोड़ दें या निकाल दिए जाएं तो शायद चुनाव में अपनी सीट भी नहीं बचा सकते।

बिहार आते ही जैसे बीजेपी का कान्फिडेंस खत्म हो जाता है। किष्किंघा नरेश बाली की तरह जेडीयू के सामने आते ही बीजेपी की शक्ति जैसे घट कर आधी हो जाती है। मुख्यमंत्री और जेडीयू नेता के तौर पर नीतीश का करियर ढलान पर है, वहीं प्रधानमंत्री का दूसरा कार्यकाल शुरू हुए भी अभी एक साल ही बीता है, लेकिन फिर भी जूनियर पार्टनर का टैग बीजेपी हटा नहीं पा रही। पार्टी को परेशानी शिवसेना से भी रही है और अकाली दल से भी, लेकिन जेडीयू के साथ रिश्ता अलग ही लेवल का है। ये एक्स के साथ सेक्स वाली फिलींग है, हो या न हो, बाद में पछताना तय है।

  Biharelection2020 में जीत के लिए बीजेपी इस कदर बेचैन है, कि…  5 जनवरी 2017 को पटना में स्टेज साथ शेयर करने और शराबबंदी के फैसले की तारीफ के बाद… पहली बार प्रधानमंत्री मोदी नीतीश कुमार के साथ इलेक्शन रैली करने को राजी हो गए हैं, वही नीतीश कुमार जिन्होंने एसेंबली चुनाव के चंद महीने पहले, जून 2010 में बीजेपी की नेशनल एक्जिक्यूटिव की पटना में बैठक के बाद सभी नेताओं को डिनर पर अपने घर बुलाया, सिवाय गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के..और फिर अखबार में एड आने के बाद… जले पर नमक छिड़कने की तरह, वो डिनर भी कैंसल कर दिया। इसके बावजूद खून के आंसू पी कर, वो एसेंबली चुनाव बीजेपी ने जेडीयू के साथ लड़ा। तीन साल बाद फिर जून के महीने में 16 जून 2013 को जैसी ही बीजेपी ने नरेंद्र मोदी को पीएम कैंडिडेट घोषित किया, बिहार में नीतीश ने बीजेपी के साथ रिश्ता तोड़ लिया। 2014 में मोदी की प्रचंड जीत से नीतीश इतने आहत हुए कि उन्होंन सीएम का पद छोड़ दिया और थोड़े वक्त के लिए जीतन राम मांझी को सीएम बना दिया। लेकिन सब भूल..तीन साल से बीजेपी-जेडीय का कभी दूर कभी पास वाला गठबंधन अब भी कायम है… और दस साल बाद …बीजेपी और जेडीयू चुनाव फिर एक साथ लड़ रहे हैं…ये जानते हुए कि बिहार में कोरोना, लॉकडाउन, बाढ़ और बेरोजगारी के अलावा जेडीयू के खिलाफ 15 साल की जबरदस्त एंटीइनकमबैंसी भी है।

प्रधानमंत्री ने गलवान घाटी में शहीद होने वाले बिहार रेजीमेंट के 16 जवानों के शौर्य की प्रशंसा की, जेडीयू कोटे से राज्यसभा के डिप्टी स्पीकर बने हरिवंश नारायण सिंह के बहाने बिहार में लोकतंत्र की मजबूत जड़ों की सराहना की। सुशांत सिंह की मौत मुंबई में हुई लेकिन बिहार सरकार की सलाह पर केंद्र सरकार ने सीबीआई जांच का आदेश दिया। दरभंगा में एम्स की स्थापना का आदेश दिया। बिहार से महाराष्ट्र के बीच किसान स्पेशल पार्सल ट्रेन अगस्त में शुरू किया गया। राम मंदिर ट्रस्ट में बिहार के कामेश्वर चौपाल को शामिल किया गया। भूमि पूजन कार्यक्रम में जय श्री राम की जगह जय सिया राम का उद्घोष शायद इसलिए हुआ…क्योंकि माता सीता बिहार के मिथिला में बेटी मानी जाती हैं।

लोग ध्यान दे रहे हैं कि प्रधानमंत्री सिर्फ 16 हजार करोड़ का पैकेज बिहार को नहीं दे रहे, वो अब तक तीन वर्चुअल रैली कर चुके और सात करने वाले हैं। इन वर्चुअल रैलियों में प्रधानमंत्री ने कई छोटी परियोजनाओं का उद्घाटन भी किया है। क्या आप इसके पहले कल्पना कर सकते थे कि देश का प्रधानमंत्री किसी स्टेट के सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट का उद्घाटन करे ?

बीजेपी बिहार जीतने को किस कदर बेकरार है, इसका पता पार्टी की ओर से उठाए जा रहे मुद्दों से भी मिलता है। पहले पार्टी ने सुशांत की मौत को मुद्दा बनाया, एम्स की रिपोर्ट के बाद ये मुद्दा ठंडा हो गया तो केंद्रीय गृहराज्य मंत्री ने कह दिया कि आरजेडी जीत गई तो सारे आतंकवादी बिहार में पनाह लेने लगेंगे। इसके बाद पार्टी ने जिन्ना का मुद्दा उठा दिया। बंगाल चुनाव से पहले सोशल मीडिया पर  NRC को भी मुददा बनाने की कोशिश हो रही है।

बीते पांच साल में बीजेपी 18 में से 16 राज्य चुनाव हारी है। बीजेपी को लगता था कि धारा 370, CAA, राम मंदिर, ट्रिपल तलाक का फायदा उसे राज्यों के चुनावों में होगा, लेकिन ये हुआ नहीं।  यूपी अकेला राज्य है जहां पार्टी को जनता ने भरपूर समर्थन दिया, हरियाणा में दुष्यंत चौटाला की कृपा से पार्टी जरूर सत्ता में लौटी है, लेकिन इसे जीत नहीं कहा जा सकता। कर्नाटक, बिहार और मध्य प्रदेश में हारने के बावजूद बीजेपी का शासन जरूर है, लेकिन  झारखंड और दिल्ली के बाद बिहार में अगर बीजेपी हार जाती है तो इससे बड़ा संदेश जाएगा कि बीजेपी केंद्र की वो पार्टी है जिसे करीब-करीब हर राज्य की जनता ने चुनाव में नकार दिया है। इस बार चुनाव में नीतीश कुमार नहीं नरेंद्र मोदी की साख दांव पर लगी है।

ये हारे तो सब हारे।

Share on:
Tags:

You Might also Like

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *