7 वजह(Bihar Election 2020) : क्यों तेजस्वी होंगे बिहार के अगले सीएम?
टीवी चैनल कुछ कहें, ओपिनियन पोल जो बताएं, ये साफ नजर आ रहा है कि बिहार की जनता ने मन बना लिया है, उसने कह दिया है …तेजस्वी भव:
क्यों इस चुनाव में तेजस्वी की जीत तय है….
वजह 1(Bihar Election 2020): अभूतपूर्व भीड़
तेजस्वी न मोदी हैं न नीतीश…लेकिन जिस तरह उन्हें सुनने रैलियों में भीड़ जुट रही है उसको लेकर लोगों का कहना है कि उन्होंने राज्य के किसी नेता के लिए ऐसी भीड़ पहले कभी नहीं देखी है।
पालीगंज की ये तस्वीर इसलिए भी अहम है कि 1951 से 1990 तक इस सीट की पहचान कांग्रेस के कद्दावर नेता रामलखन सिंह यादव से रही है। 2015 में आरजेडी ने बीजेपी से ये सीट छीन ली। इस बार आरजेडी के सीटिंग विधायक जयवर्धन यादव को जेडीयू ने टिकट दिया है और तेजस्वी यहां CPI ML के संदीप सौरव का प्रचार कर रहे हैं। इस सीट का रिजल्ट क्या होगा ये आज आप लिख कर रख सकते हैं।
तेजस्वी के लिए जनता खास कर युवाओं की ऐसी भीड़ उनकी रैलियों में बार-बार नजर आने में जो संदेश छिपा है उसे जेडीयू-बीजेपी नजरअंदाज नहीं कर सकते।
वजह2(Bihar Election 2020): बिहार को कॉन्फिडेंस पसंद है
बिहार की राजनीति में हमेशा से ओजस्वी वक्ता छाए रहे हैं। यहां जो प्रेस से डर गया …वो अपने घर गया। अगर आपको सवालों से डर लगता है तो आप दिल्ली पर तो शासन कर सकते हैं, लेकिन पटना पर नहीं। 31 साल के नौसिखिया तेजस्वी 6 बार बिहार के मुख्यमंत्री रहे 69 साल के नीतीश को अमेरिकी प्रेसीडेंशियल डिबेट की तर्ज पर बहस के लिए चुनौती देते हैं और नीतीश चुप्पी साध लेते हैं। 55% युवा वोटरों वाले राज्य बिहार में इसका क्या संदेश जा रहा है, सोच कर देखिए।
वजह3(Bihar Election 2020): गवर्नेंस का मुद्दा
कोरोना, लॉकडाऊन और बाढ़ की समस्या से बिहार सरकार जिस तरह निबटी है, उसको लेकर लोगों में गहरी नाराजगी है। कोरोना से निबटने में हर राज्य सरकार को परेशानी हुई है, लेकिन बिहार में अस्पतालों से लेकर आइसोलेशन और क्वारंटीन सेंटर में जिस बदहाली को टीवी चैनलों में बार-बार दिखाया गया, अखबारों में सुर्खियां बनी, उससे सरकार और प्रशासन की छवि जरूर धूमिल हुई।
यूपी में योगी सरकार ने राजस्थान में फंसे लोगों को लाने के लिए बड़ी तादाद में बसें भेजीं, झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार ने स्टेशनों पर प्रवासी मजदूरों का फूलों से स्वागत किया और उनको घर पहुंचाने की पूरी व्यवस्था की, जबकि बिहार में लोग अगर किसी तरह मुंबई से पटना तक पहुंच भी गए तो यहां अपने गांव जाने के लिए भूखे बेहाल गरीब मजदूरों पर पुलिस ने जम कर लाठियां भांजी। बाढ़ बिहार में हर साल की कहानी है, लेकिन इस बार राहत और पुनर्वास में जिस तरह की ढिलाई देखने को मिली, उससे उत्तर बिहार के उन इलाकों में भी विधायकों से लोगों की नाराजगी सामने आ रही है, जो अब तक एनडीए के गढ़ माने जाते थे। 23 मई को नीतीश कुमार ने वादा किया कि प्रवासी मजदूरों को अपने गांव में ही काम मिलेगा, उन्हें दूसरे राज्य नहीं जाना होगा। अपने गांव लौटे प्रवासी मजदूरों के लिए केंद्र सरकार ने GKRA- Garib Kalyan Rojgar Abhiyan के तहत बिहार को 17 हजार करोड़ दिए। नीतीश सरकार इसमें से 10 हजार करोड़ ही खर्च कर पाई।जहां लोगों को इस योजना का कोई लाभ नहीं मिला, उसमें खगड़िया का वो तेलिहर गांव भी शामिल है जहां प्रधानमंत्री ने 20 जून को वीडियो कान्फ्रेन्सिंग के जरिए इस अभियान की शुरूआत की थी।
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वजह4((Bihar Election 2020)): जाति का गणित
आरजेडी को यकीन है कि चुनाव में राज्य की 30% आबादी ( 16% मुस्लिम, 14% यादव) यादव (58 टिकट) और मुस्लिम समुदाय(17) का वोट उसे थोक में मिलेगा। इस बार आरजेडी की नई कोशिश अपनी कमजोरी को ताकत में तब्दील करने की है। 2015 में आरजेडी ने ईबीसी को 04 और फॉरवार्ड को 02 टिकट ही दिए थे, इस बार ये आंकड़ा है 24 और 12…
वजह5((Bihar Election 2020)): सरकार से नाराज हैं किसान
आम तौर पर एक प्रेशर ग्रुप अपनी मांग रखता है तब जाकर सरकार उस पर कानून बनाती है। लेकिन हमारे यहां केंद्र की बीजेपी सरकार का अपना ही स्वैग है। किसानों पर तीन तरह के कानून उसने पारित पहले करा लिए, इसके फायदे समझाना शुरू अब किया है और ऐसा लगता नहीं कि किसान अब तक सरकार की सोच के कायल हुए हैं। आप उन्हें दोष भी नहीं दे सकते…नोटबंदी से देशबंदी तक तमाम बड़े फैसले ये सरकार बगैर किसी से पूछे करती आई है।तो अब हो ये रहा है कि देश में किसानों के 250 से ज्यादा संगठनों की संस्था AIKSCC- All-India Kisan Sangharsh Coordination Committee ने ऐलान किया है कि वो बिहार चुनाव में एनडीए के खिलाफ कैंपेन करेगी। इसके पहले देश में मजदूरों के तमाम संगठन जिनमें आरएसएस समर्थित भारतीय मजदूर संघ भी शामिल है, किसानी कानून का विरोध कर चुके हैं। अब तक ऐसी किसी पार्टी के कहीं भी चुनाव जीतने का इतिहास नहीं है जिसका देश के सभी किसान और मजदूर संगठन ने विरोध किया हो।
वजह 6((Bihar Election 2020)): सुशांत सिंह राजपूत की मौत पर सियासत
बीजेपी ने सुशांत सिंह राजपूत की मौत को बिहारी अस्मिता से जोड़ कर चुनावी मुहिम चलाया। अब इस मुहिम का हाल ये है कि सुशांत के घर यानी सहरसा में उनके भाई नीरज कुमार बब्लू तक के लिए सुशांत की मौत चुनावी मुद्दा नहीं है। एम्स की रिपोर्ट आने के बाद बिहार में किसी बड़े नेता ने इस मुद्दे पर कुछ नहीं कहा है।
वजह 7((Bihar Election 2020)): पुष्पम प्रिया का आगमन
लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से तालीम लेकर एक लड़की बिहार आती है, मार्च के महीने में बिहार के कई अखबारों में फुल पेज के एड देती है और दावा करती है कि वो प्लूरल्स पार्टी से है और बिहार का मुख्यमंत्री बनना चाहती है। परंपरा और जाति की रूढियों में जकड़े बिहार में राजनीति भी अब तक परंपरागत ही रही है। पुष्पम के 31 कैंडिडेट्स पर जनता को भरोसा हो या न हो, ये तय है कि उसका आना ये बताता है कि आज का बेसब्र युवा बिहार को बदलता देखना चाहता है और ये जिम्मेदारी वो बड़ों-बूढ़ों पर छोड़ने के लिए तैयार नहीं , अब वो खुद ये जिम्मेदारी लेना चाहता है। इसमें जो संदेश छिपा है…वो खुद के कोरोनाग्रस्त होने की बात जनता से छिपाने वाले नीतीश कुमार क्या समझ रहे हैं?