बिहार चुनाव: मुद्दा बदला, हवा बदली!
कहते हैं बिहार राजनीति की प्रयोगशाला ही नहीं, पाठशाला भी है। अगर आपको राजनीति का ककहरा सीखना हो तो बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar election) पर नजर रखिये। आप देखेंगे, किस तरह रोज एक से बढ़कर एक दांव चले जा रहे हैं…और सामनेवाले की चाल के मुताबिक आक्रमण और बचाव के नये-नये पैंतरे अपनाये जा रहे हैं। पहले चरण में हुए करीब 54 फीसदी मतदान के बाद, ये बात भी बिल्कुल साफ हो गई है कि बिहार में ना तो सत्ता-परिवर्तन की लहर है ना समर्थन की हवा। और इसलिए नीतीश के नेतृत्व वाली एनडीए और तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाले महागठबंधन में कांटे की टक्कर होने जा रही है।
मोदी ने बदला मंत्र
बिहार चुनाव (Bihar election) के पहले चरण में एनडीए ने विकास, राम मंदिर, तीन तलाक जैसे मुद्दे उठाये, तो राहुल गांधी ने पीएम मोदी और तेजस्वी यादव ने रोजगार को मुद्दा बनाया। पहले चरण का मतदान होते-होते एनडीए को ये बात समझ में आ गई कि तेजस्वी का रोजगार वाला मुद्दा उनके राष्ट्रीय मुद्दों पर हावी है। इसलिए दूसरे चरण के प्रचार में पीएम मोदी ने तुरंत पैंतरा बदला और ‘जंगलराज के युवराज’ का एक नया नारा उछाल दिया। अब बीजेपी के तमाम नेता इसी को जोर-शोर से उठा रहे हैं। चुनावी रैलियों में बीजेपी के स्टार प्रचारक योगी आदित्यनाथ ने भी अपने भाषण को इसी के इर्द-गिर्द रखा।
कितना कारगर था तेजस्वी का मास्टर स्ट्रोक?
दरअसल तेजस्वी ने रोजगार के जिस मुद्दे को उठाया था, वो बिहार के लोगों की सबसे कमजोर नस है। आज तक कोई भी मुख्यमंत्री ना रोजगार दे पाया, ना उद्योग लगा पाया और ना ही पलायन रोक पाया। कोरोना के बाद वापस लौटे प्रवासी मजदूर दुबारा उसी स्थिति में लौट कर नहीं जाना चाहते और ना ही उनके बाल-बच्चे या परिवार के लोग ऐसा चाहते हैं। इसलिए तेजस्वी यादव के दिखाये सपने में उन्हें उम्मीद दिखी। यही वजह है कि तेजस्वी यादव की जनसभाओं में युवाओं की अच्छी-खासी भीड़ जुट रही है।
बिहार चुनाव (Bihar election) के दौरान उछले इस मुद्दे में इतना दम था कि जहां महागठबंधन ने 10 लाख सरकारी नौकरी देने का वादा किया तो बीजेपी ने 19 लाख रोजगार का वादा किया। यहां तक कि कांग्रेस ने भी अलग से साढ़े तीन लाख लोगों को काम देने का वादा किया। तेजस्वी के इस चुनावी वादे ने, शुरुआती दौर में बढ़त हासिल करती दिखी एनडीए की हवा खराब कर दी और तेजस्वी यादव का ग्राफ बराबरी पर पहुंच गया।
Bihar election: एनडीए ने फौरन बदली रणनीति
इससे पहले तक नीतीश तेजस्वी को अपने आसपास भी नहीं मान रहे थे। उनका फोकस आरजेडी से ज्यादा एलजेपी को मैनेज करने पर था। बीजेपी भी तेजस्वी को गंभीरता से नहीं ले रही थी। लेकिन जल्द ही उन्हें एहसास हो गया कि तेजस्वी यादव धीरे-धीरे लोकप्रिय होते जा रहे हैं और नीतीश कुमार को कड़ी टक्कर दे सकते हैं। इसके साथ ही उनकी रणनीति बदल गई।
इसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार में जो तीन सभाएं कीं, उनमें उन्होंने सरकार की उपलब्धियों से ज्यादा जंगलराज का जिक्र किया। दरभंगा, मुजफ्फरपुर और अंत में पटना में जनसभा को संबोधित करते हुए उन्होंने जो कहा, उस पर जरा गौर कीजिए –
- कोरोना महामारी के समय में जंगलराज वाले सत्ता में आ जाएं, तो यह बिहार के लोगों पर दोहरी मार होगी।
- जंगलराज के युवराज आ जाएं तो महामारी से निपटने के लिए जो पैसे दिये जा रहे हैं उसका क्या होगा, यह बिहार की जनता उनके पुराने ट्रैक रिकॉर्ड के आधार पर अच्छी तरह से जानती है।
- वह दल जो बिहार के उद्योगों को बंद करने के लिए बदनाम हैं, जिनसे निवेशक कोसों दूर भागते हैं, वह लोग बिहार के लोगों को विकास के वायदे कर रहे हैं।
- सरकारी नौकरी तो छोड़िए, इन लोगों के आने का मतलब है, नौकरी देने वाली निजी कंपनियां भी बिहार से नौ दो ग्यारह हो जायेंगी।
- यदि जंगलराज वाले लोग सत्ता में आ गए तो फिर से बिहार अपहरण का बाजार बन जाएगा। यह बीमार हो जाएगा।
- अटकाने, भटकाने और लटकाने वालों से बिहार को बचाएं। ये बिहार को बीमार बना देंगे। इसके बाद विकास के काम को आगे बढ़ाना असंभव हो जाएगा।
- वो दल जिन्होंने बिहार को अराजकता दी, कुशासन दिया वो फिर मौका खोज रहे हैं। जिन्होंने बिहार के नौजवानों को गरीबी और पलायन दिया, सिर्फ अपने परिवार को हजारों करोड़ का मालिक बना दिया, वो फिर मौका चाहते हैं।
- जो जंगलराज की परंपरा से आए हैं, उन्हें बिहार की जनता सबक सिखाएगी।
इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि एनडीए, तेजस्वी यादव को कितनी गंभीरता से ले रही है।
क्या बीजेपी-जदयू को मिलेगा फायदा?
बिहार की राजनीति पर नजर रखनेवालों के मुताबिक पीएम मोदी का तेजस्वी यादव के खिलाफ खुलकर बोलना मायने रखता है। विपक्ष के तमाम दावों के बावजूद देश में पीएम मोदी की लोकप्रियता में कोई कमी नहीं आई है और उनकी सभाओं में काफी भीड़ जुट रही है। दूसरी बात ये है कि बिहार चुनाव (bihar election) में मोदी मुद्दा नहीं हैं, नीतीश और उनकी सरकार हैं। इसलिए जब पीएम मोदी आनेवाले भयावह कुशासन की बात कहते हैं, तो लोगों को इसका विश्वास हो या ना हो, उनके मन में आशंकाएं जरुर खड़ी हो जाती हैं।
दूसरी ओर तेजस्वी यादव के पास भी इसका कोई जवाब नहीं है। एक तरफ लालू प्रसाद भ्रष्टाचार के मामले में जेल में बंद हैं तो दूसरी तरफ तेजस्वी और तेज प्रताप की संपत्ति को लेकर जदयू और बीजेपी के नेता लगातार सवाल उठाते रहे हैं। वहीं लोग लालूराज को भी भूले नहीं हैं। हो सकता है उन्हें नीतीश सरकार से शिकायत हो, लेकिन इसकी वजह से वो फिर से लालू राज लाने को सहमत हों, ऐसा नहीं लगता। कुल मिलाकर इस नारे ने तेजस्वी के बढ़ते चुनावी अभियान (bihar election) में ब्रेक लगा दी है।
सारा खेल डर का है!
बिहार में दोनों ही गठबंधनों के पास जनता को देने के लिए ‘डर’ के सिवा कुछ नहीं है। महागठबंधन ये डर दिखा रहा है कि फिर किसी को रोजगार नहीं मिलेगा, तो एनडीए जंगलराज का डर दिखा रहा है। परेशानी ये है कि बिहार की गरीब-पीड़ित जनता किसी को भी चुने, उनके ‘डर’ के सच होने की आशंका तो बनी रहेगी। बिहार का शायद ही कोई समझदार मतदाता होगा, जो ये यकीन कर ले कि तेजस्वी यादव सत्ता में आते ही 10 लाख लोगों को सरकारी नौकरियां थमा देंगे। इतनी नौकरियां होतीं…तो नीतीश क्या इसे खाली रखते? क्या उनके समर्थकों और सजातीय लोगों की संख्या कम है? और क्या तेजस्वी यादव भ्रष्टाचार और अपराध-मुक्त सरकार बना लेंगे…और चला लेंगे?
दरअसल बिहार को हमेशा से एक ईमानदार नेता की जरुरत रही है, जो उसे कभी मिला नहीं। लालू प्रसाद ने उम्मीद तोड़ी, तो नीतीश पर भरोसा किया…अब नीतीश भी उसी रंग में रंग गये..तो जनता क्या करे? अब किसे चुने? फिलहाल यहां सत्ता हासिल करने की होड़ है, वादों के झुनझुनों का शोर है और जनता के सामने संकट घनघोर है।