Type to search

Bihar election: बयान तो सुने! मतलब बूझे कि नहीं ?

जरुर पढ़ें बड़ी खबर बिहार चुनाव

Bihar election: बयान तो सुने! मतलब बूझे कि नहीं ?

Bihar election
Share on:

लोकतंत्र की जन्मभूमि बिहार(Bihar election )  विकास के हर पैमाने पर पिछड़ा है, लेकिन राजनीति यहां के हवा-पानी में बसा है। अगर आप बिहार के नहीं हैं तो यहां के नेता अपने बयानों के जरिए कितना कुछ बता जाते हैं, इसे समझना आपके लिए शायद बहुत आसान नहीं होगा। आइए आज आपको बिहार की राजनीति के रैपिडेक्स से रूबरू कराते हैं। जो बयान बिहार चुनाव में सामने आ रहे हैं, उनके पीछे क्या सोच क्या काम कर रही है, इसे समझने की कोशिश करते हैं।

1

तेजस्वी क्यों कह रहे हैं कि नीतीश थक गए हैं ?

(117-150 पर बयान है)

 साठ फीसदी से ज्यादा युवा वोटरों वाले बिहार में 31 साल के तेजस्वी 69 साल के नीतीश के खिलाफ अपनी चुनौती को, बिहार की दो सबसे बड़ी पार्टियों आरजेडी और जेडीयू की जंग को यूथ वर्सेज ओल्ड नैरेटिव में तब्दील करना चाहते हैं। आंध्रप्रदेश से झारखंड तक…परंपरागत राजनीति से बेजार, बेसब्र युवाओं को जगन मोहन रेड्डी और हेमंत सोरेन में उम्मीद की रोशनी नजर आई। जगन पर आय से ज्यादा संपत्ति के मामले में सीबीआई की कार्रवाई और हेमंत के पिता शिबू सोरेन पर सांसद रिश्वत कांड जैसे मामलों को जनता ने दरकिनार कर दिया। आरजेडी के परंपरागत मुस्लिम-यादव वोटबैंक का विस्तार कर तेजस्वी रोजगार के लिए बेकरार उस युवा को अपना वोटर बनाना चाहते हैं जो उनकी रैली में भीड़ बन कर शामिल तो हो रहा है, लेकिन जिसके रुख का अभी पता नहीं है।    

2

पहली बार आरजेडी के प्रचार से लालू क्यों गायब हैं?

बीजेपी के बिहार अध्यक्ष संजय जायसवाल मानते हैं कि लालू प्रसाद के जेल में होने को लेकर तेजस्वी शर्मिंदा हैं, और अपने पिता के शासनकाल के जंगलराज वाली छवि से पीछा छुड़ाना चाहते हैं। वहीं जेडीयू कह रही है कि लालू ने संघर्ष कर के  राजनीति में एक मुकाम हासिल किया, तेजस्वी की तो कोई पहचान ही नहीं है। लालू को अपने पोस्टर में शामिल नहीं कर तेजस्वी ने बड़ी भूल की है और इस वजह से सीएम बनने का उनका सपना पूरा नहीं होगा।

हकीकत ये है कि तेजस्वी के लिए लालू ताकत हैं कमजोरी नहीं। आरजेडी का परंपरागत वोटर लालू का वोटर है, तेजस्वी का नहीं। ये वोटबैंक तेजस्वी को विरासत में हासिल हुआ है। इसके लिए उनको लालू का पोस्टर लगाने की जरूरत नहीं। तेजस्वी की नजर इस बार के चुनाव में पहली बार वोट दे रहे, 78 लाख युवाओं पर है, जिसने लालू के शासन के बारे में सिर्फ सुना है और अब तक देखा सिर्फ नीतीश कुमार का पंद्रह साल का शासन है। तेजस्वी के नेतृत्व में आरजेडी में नया नेतृत्व अभी अपनी अलग पहचान बनाने की कोशिश में लगा है, पोस्टर में तेजस्वी के होने और लालू के नहीं होने से इस ट्रांजिशन का सीधा संदेश वोटर तक जा रहा है।

3

नीतीश क्यों आपा खो रहे हैं – बाप से पूछो , मां से पूछो जैसे तल्ख बयान क्यों दे रहे हैं?

नीतीश सात निश्चय पार्ट 2 पर बात करते हैं, तो भीड़ लालू जिंदाबाद करने लगती है। संदेश ये है कि बिहार की जनता अपना नेता किसे स्वीकार करेगी, इस पर अभी वो विचार कर रही है, लेकिन ये करीब-करीब तय नजर आ रहा है, गैर कुरमी ओबीसी से लेकर महादलित तक का उनका वोटबैंक इस चुनाव में ढहता नजर आ रहा है। आरजेडी और एलजेपी तो उनके खिलाफ हैं ही, सहयोगी दल बीजेपी ने जिस तरह एनडीए के बजाय इस बार अपना अलग मेनीफेस्टो जारी किया और एलजेपी को लेकर नरम रुख अपनाया है, उससे नीतीश छले जाने के एहसास से जूझ रहे हैं। नीतीश को अब न सहयोगी दल सुन रहे हैं, न जनता, वो इसलिए सुना रहे हैं… अपना आपा खो रहे हैं। कोरोना, लॉकडाउन और बेरोजगारी के मुश्किल सवालों का जवाब देने के बजाय, बिहार की निडर जनता से  जंगलराज का डर दिखा कर वोट मांगने के अलावा उनके पास कोई मुद्दा नहीं रहा।

4

रालोसपा के उपेंद्र कुशवाहा क्यों शिक्षा पर जोर दे रहे हैं

बिहार में न पंजाब हरियाणा जैसी खेती है, न गुजरात, महाराष्ट्र जैसे उद्योग। यहां गरीब जनता के पास शिक्षा ही वो जरिया है जिसमें अपना सब कुछ झोंक कर यहां के युवा आईआईटी से आईएएस तक के इम्तिहान में अव्वल आते हैं। लिहाजा सारे देश में शायद सिर्फ बिहार में शिक्षा का अपना एक अलग वोट बैंक है, जिस पर केंद्र सरकार के पूर्व शिक्षा राज्य मंत्री उपेंद्र कुशवाहा की नजर है।

http://sh028.global.temp.domains/~hastagkh/bihar-election-2020-opinion-poll-diy/

5

मोदी झारखंड की तरह बिहार में खुद के नाम पर वोट क्यों नहीं मांग रहे?

2015 में जब मोदी का मैजिक लोगों के सर चढ़ कर बोलता था, तब मोदी ने बिहार में तीस रैलियां की थी। देश के किसी प्रधानमंत्री के लिए ये एक रिकार्ड है। फिर भी बिहार ने राज्य चुनाव में मोदी को वोट नहीं दिया। इस बार मोदी बिहार में सिर्फ 12 रैलियां कर रहे हैं। 2015 के मुकाबले इस बार उन्हें सुनने वाली भीड़ भी छोटी है। बीते पांच साल में 18 में 16 राज्य चुनाव हारने के बाद, साफ है बिहार चुनाव में मोदी फैक्टर जैसी कोई चीज नहीं है।   

6

बीजेपी बिहार के मुद्दों पर बात करने की जगह राममंदिर और धारा 370 की बात क्यों कर रही हैं ?

बाकी पार्टियां लूडो खेल रही हैं तो बीजेपी शतरंज….कांग्रेस एक पार्टी है, जबकि बीजेपी एक विचारधारा… राज्य चुनावों को हारने की कीमत पर, अगले दस से बीस साल में, बहुसंख्यकवाद और हिन्दूत्व की विचारधारा को सारे देश में कायम करने की संघ की रणनीति पर चलना बीजेपी की मजबूरी है।  जेएनयू और जामिया में छात्रों पर जुल्म, सीएए, यूएपीए और एनएसए जैसे कानूनों के जरिए बुद्धिजीवियों पर मुकदमे, देश के इतिहास का पुनर्लेखन,  राष्टपिता महात्मा गांधी का अपमान, संविधान की प्रस्तावना से सेकुलर और सोसलिस्ट हटाने की मुहिम इसी रणनीति का हिस्सा है।

इस बार एक ओर नीतीश हैं तो दूसरी ओर उन्हें चुनौती देने वाले तेजस्वी, चिराग और पुष्पम प्रिया जैसे युवा चेहरे हैं, सवाल है क्या बिहार की राजनीति में 1989 के बाद एक बार फिर युवाओं को नेतृत्व मिलने वाला है?

Share on:
Tags:

You Might also Like

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *