bihar election: #justiceforsushant का वो सच जो आप नहीं जानते!
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सुशांत सिंह राजपूत की मौत को बिहार चुनाव का मुद्दा बनाया गया, इसको लेकर बिहार बीजेपी ने न भूले हैं, न भूलने देंगे के नारे के साथ कैंपेन चलाया, ये तो आप जानते हैं, लेकिन इस कहानी में कुछ ऐसा है जिसके बारे में शायद आप नहीं जानते।

आप शायद ये नहीं जानते, कि #justiceforsushant के जरिए एक संजीदा और संवेदनशील एक्टर की मौत पर राजनीति की ये पटकथा दस साल पहले 2010 में तैयार हुई थी। तब सुशांत सिनेमा के नहीं टीवी के एक्टर थे।
8मई 2010 को जरा नच के दिखा के सेकेंड सीजन में मस्त कलंदर टीम ने मदर्स डे स्पेशल का एक एपिसोड सुशांत की मां के नाम समर्पित किया था। उस वक्त सुशांत Kis Desh Mein Hai Meraa Dil के प्रीत सिंह जुनेजा की छवि से निकल कर Pavitra Rishta के मानव देशमुख के नए किरदार में एक आदर्श पति और बेटे के तौर पर शोहरत पा रहे थे। Kai Po Che के ईशान भट्ट का बॉलीवुड डेब्यू अभी तीन साल दूर था।

2010 में क्या हुआ था?
2010 में 21 अक्टूबर से 20 नवंबर तक 6 दौर का चुनाव बिहार में हुआ। इस चुनाव के नतीजे बीजेपी के लिए चौंकाने वाले थे।
बिहार एसेंबली चुनाव में बीजेपी
साल | कैंडिडेट | जीत | वोट% कुल | वोट% चुनाव लड़ रही सीटों पर |
2015 | 157 | 53 | 24.42% | 37.48 |
2010 | 102 | 91 | 16.49% | 39.56 |
2005( अक्टूबर-नवंबर) | 102 | 55 | 15.65% | 35.64% |
2000 | 168 | 67 | 14.64% | 28.89% |
2005 के मुकाबले बीजेपी को कुल वोट में महज 0.86 फीसदी के इजाफे से 2010 में लगभग दोगुनी सीट ज्यादा हासिल हुई। पार्टी को 90% सीटों पर जीत हासिल हुई। किसी राज्य चुनाव में बीजेपी के इतिहास में ये सबसे बड़ा विनिंग परसेंटेज है। फार्वर्ड जातियों पर लगाया दांव कामयाब रहा था। अब तक यादव और मुस्लिम आरजेडी के साथ थे, कुरमी और गैर यादव ओबीसी जेडीयू के साथ। आरजेडी और जेडीयू जैसी पार्टियां टिकट बंटवारे में अगड़ी जातियों की बहुलता वाली सीटों पर भी पिछड़ी जाति के कैंडिडेट को टिकट देती थीं, बीजेपी ने अगड़ी जाति की बहुलता वाली सीटों पर उन्हें ज्यादा प्रतिनिधत्व दिया। नतीजा ये हुआ कि इस चुनाव से बीजेपी ने खुद को बिहार में राजपूत, भूमिहार, ब्राह्मण और कायस्थ यानी सारी फारवार्ड जातियों की पार्टी के तौर पर खुद को स्थापित कर लिया। इसी पहचान के साथ बीजेपी ने 2015 के चुनाव में अपने दम पर चुनाव लड़ने का फैसला किया। लेकिन आरजेडी और जेडीयू के साथ होने से हुआ ये कि जहां अगड़ी जातियों बड़ी तादाद में थी, वहां से भी पिछड़ी जाति के उम्मीदवारों ने आरजेडी-जेडीयू के टिकट पर बड़ी जीत हासिल की। इसे 2015 एसेंबली चुनाव में फारवर्ड जातियों के प्रदर्शन के नजरिए से देखिए।
यादव | राजपूत | भूमिहार | ब्राह्मण | कुरमी | कोइरी | मुस्लिम | |
2015 | 61 | 20 | 17 | 11 | 16 | 20 | 24 |
2010 | 39 | 34 | 26 | 16 | 18 | 19 | 19 |
2015 चुनाव में आरजेडी-जेडीयू गठबंधन का नतीजा ये हुआ कि एसेंबली में जहां यादवों की तादाद 39 से बढ़कर 61 और मुस्लिम विधायकों की तादाद 19 से बढ़कर 24 हो गई, वहीं बिहार में फॉरवर्ड की सबसे बड़ी जाति राजपूत के विधायकों की तादाद 34 से घटकर 20 रह गई। इसी तरह की कमी भूमिहार और ब्राह्मणों की तादाद में भी हुई।
BJP | RJD | JDU | CONGRESS | OTH | TOTAL | |
यादव | 06 | 42 | 11 | 02 | 0 | 61 |
राजपूत | 09 | 02 | 06 | 03 | 0 | 20 |
भूमिहार | 09 | 0 | 04 | 03 | 01 | 17 |
बीजेपी ने पाया कि वो चाह कर भी बिहार में खुद से सात गुना ज्यादा बड़े आरजेडी के यादव वोट बैंक में सेंध नहीं लगा सकती। भूमिहार वोट बैंक पर उसका लगभग कब्जा है। साधने की जरूरत फारवर्ड की सबसे बड़ी जाति राजपूतों को थी जिसे मौजूदा 09 से बढ़ा कर 2010 के 34 की ओर ले जाने की जरूरत थी।
इसी रणनीति के तहत सुशांत की मौत के इर्द-गिर्द बिहार की अस्मिता की कहानी बुनी गई।
अगर सुशांत की मौत न हुई होती तो बीजेपी ने एक सुशांत गढ़ लिया होता।
14 जून को सुशांत की मौत के बाद इस मौत को कत्ल बताने के लिए 80 हजार से ज्यादा फर्जी अकाउन्ट तैयार किए गए। #justiceforsushant और #SSR जैसे हैशटैग्स के साथ ईटली, जापान, पोलेंड, स्लोवेनिया, इंडोनेशिया, टर्की, थाइलैंड, रोमानिया और फ्रांस से पोस्ट सोशल मीडिया पर डाले गए। University of Michigan की रिपोर्ट में पाया गया कि
BJP played a role in ramping up conspiracy theories related to the actor’s death. It looked at social media trends, handles, patterns and the tweets of politicians, influencers, journalists and media houses between June 14 (the day Rajput died) and September 12, and found that members of the BJP and pro-BJP handles cranked up the rumour mill, and were behind the troll attacks on the Mumbai police, the Maharashtra government and many Bollywood actors.“The data show an important role played by politicians, especially the BJP, in proposing a ‘murder’ alternative to the ‘suicide’ narrative. There was a real opportunity to address mental health and depression early in news cycle, but the stories quickly devolved to allusive concoctions,”
इस तरह कोरोना के खिलाफ लड़कर 6000 से ज्यादा संक्रमण और 100 से ज्यादा साथियों की जान गंवाने वाली मुंबई पुलिस को, पोस्मार्टम करने वाले कूपर अस्पताल के डाक्टरों और बिहार वर्सेज महाराष्ट्र का नैरेटिव तैयार करने के काम में सरकार समर्थित टीवी चैनलों और सोशल मीडिया इन्फ्लूएंसर्स को लगाया गया।
अपोलो अस्पताल की रिपोर्ट के बाद जस्टिस फॉर सुशांत की आवाज अगर कम हो गई तो सिर्फ इसलिए कि तीन महीने तक कोरोना और लॉकडाउन, जीडीपी और बेरोजगारी के समानांतर नैरेटिव बनाने की योजना तब तक कामयाब हो चुकी थी। ये एक रणनीति थी जिसमें प्रेस से लेकर जांच एजेंसियों और ज्यूडिशियरी सबने अपनी भूमिका बड़ी ईमानदारी और सहजता से निभाई।
इस बार के चुनाव में राजपूत मतदाताओं को साधने की बीजेपी की ये कोशिश अगर कामयाब रही और चुनाव में जीत हासिल होती है तो नित्यानंद राय को भूल जाइए… मार्च 1985 के बाद ये पहला मौका मौका होगा जब बिहार में बीजेपी को पहला और राजपूत जाति को पांचवां सीएम मिलेगा। बिहार में अब तक दीप नारायण सिंह, हरिहर सिंह, सत्येंद्र नारायण सिन्हा और चंद्रशेखर सिंह राजपूत जाति सेे मुख्यमंत्री हो चुके हैं। अगर बीजेपी की सरकार बनती है तो पार्टी का अगला मुख्यमंत्री आरा के सांसद आर के सिंह हो सकते है।
इस कहानी में हमारे और आपके लिए क्या है? राजनीति की इस बिसात में हम और आप बस प्यादे हैं, जिंदा हैं तो रिया, मर गए तो सुशांत