कैसे, कहां चूक गये नीतीश?
बिहार चुनाव में मतदान के अंतिम दौर के बाद तमाम एक्जिट पोल आये…और लगभग सभी में तेजस्वी के नेतृत्व में महागठबंधन को बहुमत मिलता दिख रहा है। ऐसे में ये सवाल तो उठता है कि आखिर सत्ता के खेल में राजनीति के धुरंधर खिलाड़ी नीतीश (Nitish Kumar) को, तेजस्वी यादव जैेसे अनुभवहीन खिलाड़ी ने कैसे मात दे दी?
अभी नतीजे सामने नहीं आए हैं, लेकिन ये बात साफ है कि अगर जीत भी गये, तो ये तेजस्वी की जीत नहीं है, बल्कि नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की हार है। तेजस्वी ने कोई कमाल नहीं किया, नीतीश ने ही अपनी कामकाज से जनता का भरोसा खो दिया। आनेवाला चुनाव परिणाम तेजस्वी की उपलब्धियों का नहीं, नीतीश की कमियों का आईना होगा।
सुस्त पड़ गई विकास की रफ्तार
बिहार को करीब से देखने वाले आम लोगों की ये राय है कि नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने शुरुआती दस सालों में जितना काम किया, उसकी तुलना में 2015-2020 का समय केवल बयानबाजी में काट दिया। बिहार में ऐसा नहीं है कि विकास नहीं हुआ। जल-नल, गली-गली का पक्कीकरण हो गया, सड़कें चमक गईं लेकिन कई वादे अधूरे रह गये।
साल 2005 की बात करें तो ग्रामीण इलाकों में 835 किलोमीटर सड़कें पक्की थीं, वहीं नीतीश काल के 15 साल में 95 हज़ार किलोमीटर से अधिक सड़कें बनीं। 6 हज़ार से ज्यादा पुल-पुलियों का निर्माण हुआ। वहीं हाई-वे के मामले में 3826 किलोमीटर सड़कें बनीं। लेकिन बिहार के हर इलाके में सड़कों की हालत एक जैसी नहीं है। NH-107 समेत कई नेशनल हाईवे की हालत खस्ता है।
इसी तरह घर-घर बिजली के अभियान को नीतीश सरकार ने काफी गंभीरता से अमली जामा पहनाया। साल 2005 में जहां 700 मेगावाट बिजली मिलती थी, वहीं 2020 में 5932 मेगावाट बिजली की आपूर्ति होती है। खेती के लिए अलग से फीडर बनाए जा रहे हैं। लेकिन बिजली के साथ जो नई समस्या आई, वो थी बढ़ा हुआ बिल। बिहार में बिजली का दरें उत्तर प्रदेश और दिल्ली से भी ज्यादा हैं।
स्वास्थ्य-सुविधाओं का बुरा हाल
नेशनल हेल्थ सर्वे की रिपोर्ट के मुताबिक बिहार में 24 हजार लोगों पर एक डॉक्टर है जबकि WHO के मुताबिक एक हजार लोगों पर एक डॉक्टर होना चाहिए। स्वास्थ्य मंत्री के मुताबिक 21 हजार डॉक्टरों और पैरामेडिक्स की भर्तियां हुई हैं। और बजट 2005 के 278 करोड़ से बढ़ कर 2020 में 11 हजार करोड़ रुपए हो गया। लेकिन इस पांच गुनी बढ़ोत्तरी के बावजूद आम लोगों को इसका फायदा नहीं मिला।
वैसे, नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के कार्यकाल में डॉक्टरों को समय पर सैलरी मिलने लगी, लेकिन अभी भी 5000 से ज्यादा डॉक्टरों के पोस्ट खाली हैं। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की बदहाली किसी से छिपी नहीं है। PMCH में भी गरीबों के लिए इलाज की अच्छी व्यवस्था नहीं है। गरीबों को मुफ्त दवाई का दावा भी खोखला निकला। ऊपर से कोरोना के समय गरीबों को सबसे ज्यादा परेशानी झेलनी पड़ी।
उम्मीदें जगाईं, पूरी नहीं की
- बिहार सरकार का 75 फीसदी राजस्व केंद्रीय करों में हिस्सेदारी और अनुदान से आता है जो देश में सबसे ज्यादा है।
- बिहार में प्रति व्यक्ति आय 30,617 रुपए है जबकि राष्ट्रीय औसत 92 हजार रुपए का है।
- केंद्र सरकार ने ही प्रदेश की 38 जिलों में 13 को तो पिछड़ा घोषित किया है।
- मैन्युफैक्चरिंग और फैक्ट्रियों की संख्या 2920 है और इसमें चार साल में कोई बदलाव नहीं हुआ है।
- नीतीश ने निवेशकों का सम्मेलन बुलाया, मुकेश अंबानी और रतन टाटा भी पहुंचे। लेकिन सिर्फ वादे हुआ, निवेश नहीं।
- 2012 तक 96,754 करोड़ रुपए की 172 प्रस्तावित योजनाओं में से केवल 15 में महज 700 करोड़ रुपए का निवेश हो पाया।
- बिजली और सड़क की सुविधा होने के बावजूद नीतीश सरकार ना निवेश जुटा पाई ना रोजगार के अवसर बढ़ा पाई।
Nitish Kumar:सुशासन बाबू का कुशासन
- 2018 के NCRB के आंकड़ों के मुताबिक बिहार, किडनैपिंग के मामले में तीसरे पायदान पर है। 2018 में 10 हजार किडनैपिंग केस दर्ज हुए, जो पूरे देश का लगभग 10 प्रतिशत है।
- नीतीश कुमार ने भ्रष्ट अधिकारियों को सबक सिखाने के लिए नया कानून बनाया – बिहार स्पेशल कोर्ट्स एक्ट, 2009। इसके तहत भ्रष्ट अधिकारियों की संपत्ति जब्त करने का अधिकार पुलिस को दिया गया। लेकिन जल्द ही जोश ठंडा पड़ गया।
- पटना में जब कुछ ठेकेदारों के घरों पर विजिलेंस ने छापा मारा, तो सभी सात निश्चय योजना के कार्यक्रमों के ठेकेदार निकले। इसे नीतीश का ड्रीम प्रोजेक्ट कहा जाता है।
- शराबबंदी के बाद एक तरफ गरीबों की परेशानी तो दूसरी तरफ प्रदेश के थानों की कमाई बढ़ गई। आज तीन लाख से ज्यादा लोग इस कानून के तहत जेल जा चुके हैं।
- सृजन घोटाले में सीबीआई ने भागलपुर के डीएम रह चुके केपी रमैया को नामजद किया था। बाद में यही रमैया जेडीयू में शामिल हो गये और 1014 का चुनाव भी लड़ा।
- नीतीश कुमार ने इस बार पूर्व मंत्री मंजू वर्मा को भी टिकट दे दिया, जो 2018 में मुजफ्फरपुर बालिका गृह कांड की आरोपी हैं और जिन्हें पार्टी ने खुद निकाल दिया था।
ये पब्लिक है, सब जानती है!
‘पार्टी विथ डिफरेंस’ के नाम पर जनता का विश्वास जीतने वाले नीतीश कुमार (Nitish Kumar) हाल के वर्षों में खुद भी विश्वसनीय नहीं रह गये थे। नीतीश ने लालू प्रसाद के खिलाफ तीन मुद्दों को उठाया था – क्राइम, करप्शन एंड कम्युनलिज्म। जनता ने इसी उम्मीद पर उन्हें तीन बार सत्ता सौंपी, लेकिन 2012 के बाद से क्राइम भी बढ़ने लगा और करप्शन भी। बाद में ऐसा लगने लगा कि नीतीश बाबू को इस मामले में ना अपनी छवि की परवाह है और ना ही जनता के भरोसे की।
बीजेपी के साथ सरकार बनाकर अपनी धर्म-निरपेक्ष छवि गंवा दी, तो भ्रष्ट -दागी लोगों को संरक्षण देकर ईमानदारी वाली । आम जनता को तरक्की और विकास की उम्मीद दी, और फिर एक-एक कर उसे तोड़ना शुरु कर दिया। कभी कहा, बाढ़ का समाधान नहीं है, तो कभी लैंड-लॉक्ड होने की वजह से प्रदेश में निवेश नहीं ला पाने की दलील दी। हर मुद्दे पर हाथ खड़े करनेवाले इस नेता का साथ छोड़ना जनता की मजबूरी बन गई। इस चुनाव में जनता ने किसी के समर्थन में वोटिंग नहीं की है, नीतीश के विरोध में अपने गुस्से का इजहार किया है।