Bihar election2020: बिहार में बीजेपी का पहला मुख्यमंत्री
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जिस पार्टी को पिछले चुनाव में सिर्फ दो सीट पर जीत मिले, अगर वो इस बार (Bihar election2020 ) 143 सीटों पर चुनाव लड़े तो आप क्या कहेंगे? यही न …कि राजनीति में महत्वाकांक्षा होनी चाहिए, लेकिन इतनी भी नहीं कि लोग हंसी उड़ाने लगें। अब इस कहानी को आंकड़ों के जरिए समझिए तो बात साफ हो जाएगी कि क्यों चिराग की ताकत उससे कहीं ज्यादा है जितना ज्यादातर राजनीतिक समीक्षक समझते हैं।
2015 एसेंबली चुनाव में एलजेपी को महज दो सीटों पर जीत मिली और कुल वोट का महज 4.8% वोट ही मिला, लेकिन जिन 42 सीटों पर पार्टी ने चुनाव लड़ा था, उनमें से 36 सीटों पर वो दूसरी नंबर पर रही और इन सीटों पर उसे औसतन 28.79% वोट मिला था। ये वोट का इतना बड़ा औसत है, जो सिर्फ नजदीकी मुकाबले में नहीं, बल्कि किसी पार्टी की निश्चित जीत को हार में तब्दील कर सकता है।
चिराग को लगता है कि बिहार(Bihar election2020) में नीतीश कुमार के खिलाफ एंटीइनकमबैंसी फैक्टर है, ऐसे में गठबंधन से अलग होकर जदयू के खिलाफ लड़ने से एलजेपी उन वोटरों तक पहुंच बना सकती है जो नीतीश कुमार और जेडीयू के खिलाफ वोट देने का मन बना चुके हैं। वहीं केंद्र में एलजेपी बीजेपी के साथ है, रामविलास पासवान केंद्र सरकार में अब भी मंत्री हैं। बिहार में बीजेपी के आंतरिक सर्वे से पता चला है कि प्रवासी मजदूरों के पलायन, बेरोजगारी, कोरोना और बाढ़ से मुकाबले में नीतीश सरकार की नाकामी के बावजूद राज्य में मोदी की लोकप्रियता बरकरार है। 16 हजार करोड़ के पैकेज से मोदी की लोकप्रियता में और इजाफा हुआ है।
Bihar election2020: चिराग का गेम-प्लान क्या है?
मणिपुर, जम्मू-कश्मीर और झारखंड में बीजेपी के खिलाफ कैंडिडेट खड़े करने के बाद अब बिहार में बीजेपी के खिलाफ कैंडिडेट नहीं खड़े कर चिराग संदेश दे रहे हैं कि वो नीतीश के खिलाफ हैं लेकिन मोदी के साथ हैं। यानी नीतीश के खिलाफ एंटीइनकमबेंसी का फायदा भी चिराग को और मोदी के पक्ष में प्रोइनकमबैंसी का फायदा भी चिराग को। वो पिता पासवान के नाम पर दलितों का और मोदी के नाम पर सवर्णों के वोटबैंक हासिल करने की हसरत रखते हैं।
Bihar election2020 मेंअगर चिराग दलित वोट अपने साथ खींच पाए तो बीजेपी को फायदा और जेडीयू को नुकसान हो सकता है। कई सीटों पर दलित वोटरों की तादाद पिछले चुनाव में जीत और हार के बीच अंतर से ज्यादा है। लेकिन जेडीयू का वोट कटने का मतलब ये नहीं कि लोजपा के कैंडिडेट उन सीटों पर जीत जाएंगे…इससे फायदा तेजस्वी यादव के विपक्षी गठबंधन को भी हो सकता है। ये रोल कुछ वैसा ही है जैसा बाबू लाल मरांडी की जेवीएम ने झारखंड एसेंबली इलेक्शन में प्ले किया था। बीजेपी को कम से कम छह सीटों पर जीत इसलिए मिली, क्योंकि विरोधी पार्टियों का वोट जेवीएम ने काटा था। वोटिंग के बाद ही तस्वीर साफ हो पाएगी कि चिराग की वजह से जेडीयू को कितना नुकसान हुआ और गठबंधन को कितना फायदा ?
Bihar election2020: क्या चुनाव बाद बिहार को मिलेगा BJP का पहला मुख्यमंत्री ?
चिराग के इस फैसले से बीजेपी और जेडीयू के बीच रिश्ते में भरोसा कम हुआ है। जेडीयू में कई नेता मानते हैं कि दिल्ली में अमित शाह के साथ लंबी बैठक के बाद चिराग का जेडीयू के खिलाफ उम्मीदवार उतारने का ऐलान दरअसल बीजेपी की बिहार में अपना मुख्यमंत्री बनाने की रणनीति का हिस्सा है। उन्हें लगता है कि बीजेपी को उम्मीद है कि इस बार के चुनाव में उसकी सीटें जेडीयू से ज्यादा होंगी, ऐसे में अगर चिराग 2005 में पिता रामविलास की तरह 29 सीटों के आंकड़े के करीब भी आ गए तो बिहार में बीजेपी के पहले मुख्यमंत्री की दावेदारी मजबूत हो जाएगी।
कुछ लोग ये गणित भी पेश कर रहे हैं कि पिछले चुनाव में बीजेपी की जीती हुई सीट में अगर उन सीटों को जोड़ दें जहां पार्टी दूसरे या तीसरे नंबर पर रही थी तो ये संख्या 150 के करीब होती है, इसमें एलजेपी की जीती (02), दूसरे नंबर (36) और तीसरे नंबर (02) की सीटें मिला दें तो ये संख्या 40 के करीब होती है। यानी बेस्ट केस सिनारियो में बीजेपी और एलजेपी साथ मिल कर न सिर्फ आसानी से सरकार बना सकते हैं बल्कि उन्हें नीतीश कुमार और जेडीयू की कोई जरूरत ही नहीं रहेगी।
वहीं रामविलास जिस DM ( Dalit-muslim) कार्ड को कभी चाह कर भी नहीं खेल पाए, वो अगर चिराग खेल पाए तो बिहार की राजनीति में लालू के MY और नीतीश के महादलित-मुस्लिम- गैर यादव ओबीसी कार्ड के विकल्प के तौर पर वो बिहार की सियासत में लंबी पारी खेल सकते हैं।
झारखंड में मधु कोड़ा एक निर्दलीय विधायक होकर मुख्यमंत्री बने। हरियाणा में दस सीट जीत कर दुष्यंत चौटाला डिप्टी सीएम बन गए। अगर चिराग को 25 से 30 सीटें मिल गईं तो राजनीति की कई नामचीन हस्तियां उनसे पूछेंगी कि वो क्या बनना चाहते हैं