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NDA को बहुमत मिला, तो होंगे दो-दो उपमुख्यमंत्री!

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NDA को बहुमत मिला, तो होंगे दो-दो उपमुख्यमंत्री!

If NDA wins, there may be two deputy CM
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नीतीश कुमार की घटती लोकप्रियता, एलजेपी के बागी तेवर, पीएम मोदी की ज्यादातर रैलियां उत्तर बिहार में करना… साफ संकेत दे रहे हैं कि बीजेपी के अंदरखाने में कहीं ना कहीं कुछ पक रहा है। बीजेपी के नेताओं को भरोसा होता जा रहा है कि इस बार उन्हें ज्यादा सीटें मिल सकती हैं और इसलिए चुनाव परिणाम के बाद के परिदृश्य की अभी से तैयारी शुरु हो गई है। सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक अगर एनडीए (NDA) दुबारा सत्ता में आया, तो इस बार एक नहीं दो-दो उपमुख्यमंत्री बनाए जा सकते हैं।

क्यूं बन रही है ऐसी संभावना?

दरअसल, कई बड़े राज्यों में चुनाव हारने के बाद बीजेपी ने बिहार में कोई जोखिम नहीं उठाने का फैसला किया। इसलिए पार्टी ने चुनाव से पहले ही एक आंतरिक सर्वे कराया। इस सर्वे में पार्टी के महासचिव, एमएलसी और प्रदेश उपाध्यक्षों समेत 90 लोगों की टीम शामिल थी। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, सर्वे 25 से 28 अगस्त के बीच किये गये इस सर्वे के जरिए पार्टी ने तीन दिनों तक मंडल स्तर तक जाकर जानकारी इकट्ठा की। इस आंतरिक सर्वे में यह बात सामने आई कि बिहार में 15 साल से सत्ता के शीर्ष पर बैठे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ इस बार एंटी-इनकंबेंसी फैक्टर काफी अधिक है।

सर्वे रिपोर्ट के अनुसार बीजेपी बिहार में सबसे बड़े दल के रूप में उभर सकती है…. और यह बिहार में पहली बार होगा। इसलिए कहीं ना कहीं दायित्व भी बढ़ाया जाएगा। इसी के तहत दो उपमुख्यमंत्री बनाए जाने पर सहमति बनाने की तैयारी चल रही है। कहा ये जा रहा है कि इसमें सुशील कुमार मोदी के अलावा एक सवर्ण जाति के नेता को प्रतिनिधित्व दिया जाएगा। सुशील मोदी वैश्य समाज से आते हैं और ये बीजेपी का सबसे बड़ा  वोट बैंक है। इसके बाद पार्टी का दूसरा सबसे बड़ा समर्थक वर्ग सवर्णों का है। इस चुनाव में महागठबंधन ने भी सवर्णों को अपने पाले में लेने के लिए ऐड़ी-चोटी का जोर लगा रखा है। ऐसे में बीजेपी भी अपने इस वोट बैंक खोना नहीं चाहेगी और एक सवर्ण जाति के उपमुख्यमंत्री को शपथ दिलाई जा सकती है।

कौन होगा दूसरा उपमुख्यमंत्री?

एक उपमुख्यमंत्री पद के लिए सुशील मोदी का नाम तो तय ही है…दूसरे के लिए जद्दोजहद जारी है। फिलहाल बिहार से एक ही बड़े चेहरे का नाम सामने आ रहा है…और वो हैं बीजेपी के फायर ब्रांड नेता और पीएम मोदी व अमित शाह खेमे के सबसे चहेते, केन्द्रीय मंत्री गिरिराज सिंह। गिरिराज सिंह पहले भी बिहार की एनडीए (NDA) सरकार में मंत्री रह चुके हैं।

इससे दो बातें होंगी। एक तो सवर्ण खुश होंगे, दूसरी ओर मंत्रीमंडल में भी बैंलेंस बना रहेगा। हाल के दिनों में बीजेपी के शीर्ष पॉलिटिक्स के बारे में ये बात जगजाहिर है कि जब भी कहीं पार्टी मजबूती से उभरती है, तो इसकी कमान… पीएम मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के भरोसेमंद लोगों के हाथों में ही सौंपी जाती है। चाहे वो हरियाणा के मुख्यमंत्री के तौर पर खट्टर को आगे करना हो या महाराष्ट्र में देवेन्द्र फडणवीस जैसे युवा नेता को कमान सौंपना, फैसले के वक्त पीएम और अमित शाह से नजदीकी ही काम आती है।

गिरिराज सिंह की पीएम मोदी से निकटता की बानगी पिछले दिनों दूसरे चरण के चुनाव प्रचार के दौरान समस्तीपुर में दिखी। यहां की जनसभा में नीतीश के साथ मंच साझा करते पीएम मोदी और गिरिराज सिंह आपस में बात करते दिखे। फिर पीएम मोदी ने गिरिराज की पीठ भी थपथपायी। अमूमन जब पीएम मोदी सार्वजनिक मंच पर बैठे होते हैं तो किसी को दूर से अपने पास बुलाकर बात नहीं करते हैं। इसलिए पार्टी के लोग इसे गिरिराज सिंह के लिए सकारात्मक संकेत के तौर पर देख रहे हैं।

केन्द्रीय मंत्री क्यों बनेगा उपमुख्यमंत्री?

अब सबसे बड़ा सवाल ये कि गिरीराज सिंह आखिर केन्द्रीय मंत्रीमंडल छोड़ कर बिहार में उपमुख्यमंत्री पद के लिए क्यों तैयार होंगे? केन्द्रीय मंत्री का पद अपने आप में कुछ कम नहीं। पहली बार जब केन्द्र में एनडीए की सरकार बनी, तभी गिरिराज सिंह केन्द्रीय राज्यमंत्री बनाये गए थे। दुबारा सरकार बनी तो उन्हें प्रमोट कर केन्द्रीय मंत्री बनाया गया। ऐसे में अंदाजा ये लगाया जा रहा है कि बिहार बीजेपी को मजबूती देने और नया लीडरशिप तैयार करने के लिए गिरिराज सिंह को वापस बिहार में बुलाया जाएगा।

हमने इस संबंध में बिहार के कुछ बड़े बीजेपी नेताओं से बात की। उन्होंने इस संभावना से इनकार भी नहीं किया और कहा कि ये सब कहना अभी जल्दबाजी होगी। राजनीतिक परिस्थितियों के अनुसार कब क्या होगा…ये बात कम से कम बीजेपी में कोई शीर्ष नेता भी नहीं बता सकता है। वैसे, आपको ये भी बता दें कि इसबार केन्द्रीय मंत्री गिरिराज सिंह खुद कह चुके हैं कि जनसंख्या नियंत्रण कानून बनाना मेरा एकमात्र मिशन है। उसमें सफल हो जाऊं, तो फिर मैं चुनावी राजनीति में हिस्सा नहीं लूंगा। यानि शायद अगली बार गिरिराज सिंह लोकसभा चुनाव भी ना लड़ें। इसलिए उनके बिहार की राजनीति में शामिल होने की संभावना को बन रही है।

एक तीर से कई शिकार

  1. बीजेपी नेता गिरिराज सिंह को बिहार के सवर्ण के तौर पर बड़ा नाम है। दूर-दूर तक इस कद का कोई लीडर भी नहीं है। ऐसे में सवर्ण खास कर भूमिहार जाति के प्रभावशाली नेताओं को खुश किया जा सकेगा।
  2. सवर्ण उपमुख्यमंत्री की मौजूदगी बीजेपी के लिए आगे की राजनीति में भी सहायक सिद्ध होगी।
  3. गिरिराज सिंह बेगूसराय से सांसद हैं। यहां से पूरा उत्तर बिहार यानि मिथिलांचल, सीमांचल, कोसी, अंग क्षेत्र सहित इससे सटे इलाके में भाजपा की स्थिति और मजबूत होगी। इन इलाकों के लीडर को लंबे अर्से से बिहार की सत्ता में इतना बड़ा दायित्व नहीं मिल पाया है।
  4. यदि गिरिराज सिंह को इतना बड़ा दायित्व मिलता है तो इलाके में बीजेपी कार्यकर्ताओं का भी मनोबल बढ़ेगा और जनता के बीच भाजपा को लेकर अन्य जातियों की भी गोलबंदी मजबूती से हो सकेगी।
  5. अंतिम और महत्वपूर्ण तथ्य ये कि गिरिराज सिंह के उपमुख्यमंत्री बनाए जाने से नीतीश पर नजर और दबाव बनाए रखना आसान होगा। साथ ही नीतीश का विकल्प तलाशने यानि बीजेपी का अगला मुख्यमंत्री का चेहरा (संभवतः नित्यानंद राय) तय करने में भी आसानी होगी।  

अटकलबाजी या राजनीतिक हक़ीकत?

बीजेपी नेता गिरिराज सिंह हिन्दू सम्राट के रूप में भी फेमस हैं। बिहार में इस वक्त पीएम मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के चहेते और नीतीश कुमार को दबाव में रखने वाला कोई लीडर है तो वो गिरिराज सिंह ही हैं। ऐसे में इन्हें प्रोजेक्ट करने की तैयारी लगभग हो चुकी है, सिर्फ चुनाव के नतीजों का इंतज़ार है। वैसे, ये सब सिर्फ संभावनाएं हैं और राजनीति में कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी…लेकिन संभावनाओं पर ही तो राजनीति चलती है ।

Story by: मंजुल मंजरी, पटना

Shailendra

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