क्या बिहार चुनाव में बेरोजगारी का मुद्दा तेजस्वी का मास्टरस्ट्रोक है ?
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लोकसभा चुनाव में करारी शिकस्त के चंद महीने बाद हेमंत सोरेन झारखंड में बीजेपी को शिकस्त देने में इसलिए कामयाब हो पाए क्योंकि वक्त पर इम्तिहान लेने के उनके वायदे से राज्य का युवा उनका मुरीद हो गया।

दिल्ली में केजरीवाल ने ये समझा कि अर्थशास्त्री चाहे जो कहें, लेकिन गरीब और मिडल क्लास को सस्ती बिजली, मुफ्त पानी और बस यात्रा से उनके महीने के बजट पर वाकई फर्क पड़ता है।

मतलब ये कि …चुनाव में कौन पार्टी जीतेगी, इसका अनुमान आप इस तरह लगा सकते हैं कि चुनावी बहस का एजेंडा कौन पार्टी सेट कर रही है।
तेजस्वी यादव ने सरकार बनने के बाद कैबिनेट की पहली बैठक में ब दस लाख नौकरी देने का चुनावी वायदा किया तो जेडीयू ने उनकी हंसी ये कह कर उड़ाई कि इसके लिए पैसा कहां से लाओगे, जेल से( पिता लालू पर निशाना) कि नोट छापोगे? डिप्टी सीएम सुशील मोदी ने दस लाख नौकरियों पर होने वाला खर्च तक जोड़ लिया और सवाल उठाया कि साठ हजार करोड़ रुपये आएंगे कहां से ? लेकिन तेजस्वी की रैलियों में कोरोना का डर भूल कर जब लाखों की भीड़ खास कर युवा नजर आने लगे और नीतीश की रैली में लालू प्रसाद जिंदाबाद के नारे लगने लगे तो बीजेपी को बेचैनी हो गई। ये बेचैनी ऐसी थी कि बीजेपी ने एनडीए का नहीं अपना मेनीफेस्टो जारी किया और इसमें तेजस्वी के दस लाख सरकारी नौकरी के जवाब में 19 लाख रोजगार देने का वायदा किया गया। कांग्रेस ने घोषणापत्र में युवाओं को 1500 रुपया बेरोजगारी भत्ता देने का वायदा किया है।
मतलब ये कि बिहार(Bihar) चुनाव में नैरेटिव न मोदी सेट कर रहे हैं न नीतीश …यहां तेजस्वी एक बात रखते हैं और बाकी की पार्टियां पीछे-पीछे दौड़ कर उसी एजेंडे पर अपनी राय रखती नजर आ रही हैं।
बिहार(Bihar) में रोजगार किस तरह बड़ा मुद्दा है, इसे आप सिर्फ देख नहीं नेहा राठौड़ को सुन कर भी समझ सकते हैं।
राउर छउड़ा तो पढ़े ला विदेस जाए के
हमरा नन्हका के जुड़े न किताब भाई जी
नौकरी क्यों बिहार चुनाव का सबसे बड़ा मुद्दा है ?
देश में सबसे ज्यादा 46% बेरोजगारी बिहार में है। नीतीश सरकार चाह कर भी 15 साल पहले की सरकार को इस वास्ते कसूरवार करार नहीं दे पा रही। कोरोना, लॉकडाउन और बाढ़ से ये मुद्दा और बड़ा बन गया है।
16 सितंबर को श्रम मंत्री संतोष गंगवार ने राज्य सभा को बताया कि लॉकडाउन के दौरान एक करोड़ से ज्यादा प्रवासी मजदूर अपने गांव लौट गए, लेकिन उसके पास ये आंकड़ा नहीं है कि कोरोना की वजह से देश में कितने लोगों की नौकरियां चली गईं। CMIE की रिपोर्ट में दावा किया गया कि सिर्फ अप्रैल के महीने में लॉकडाउन की वजह से 12 करोड़ से ज्यादा लोगों की नौकरियां खत्म हो गईं। 18 अगस्त को ILO-ADB Report में बताया गया कि कोरोना की वजह से 41 लाख युवाओं की नौकरी छिन गई। CMIE की रिपोर्ट है कि देश में तीन में एक यानी 66 लाख पेशेवरों (white-collar professionals) की नौकरी कोरोना ने छीन ली है।
देखा जाए तो …रोजगार हर चुनाव में बड़ा मुद्दा रहा है। 2014 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी ने हर साल दो करोड़ नौकरी देने का वायदा कर ही नैरेटिव सेट करने में कामयाबी हासिल की थी।
बिहार चुनाव अगर रोजगार का रण बनता नजर आ रहा है, तो इसका मतलब है नवंबर के शुरू में नीतीश की विदाई और महीने के आखिर तक लालू की रिहाई तय है।