संभावनाओं का खेल है राजनीति!
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बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद अब नई सरकार के गठन को लेकर राजनीति (politics) शुरु हो गई है। एनडीए ने भले ही बहुमत का आँकड़ा पार कर लिया हो, लेकिन महागठबंधन भी इस जादुई आंकड़े से ज्यादा दूर नहीं है। रिजल्ट आने के बाद तेजस्वी यादव ने एक दिन तो नेता-जनता से दूरी बनाये रखी, लेकिन अगले ही दिन हार के सदमे से उबर कर फिर से सक्रिय हो गये। आरजेडी के नेताओं को उम्मीद है कि थोड़ी कोशिश की जाए, तो 8-10 विधायकों का समर्थन हासिल किया जा सकता है। यानी कुर्सी का खेल अभी बाकी है।

क्या कहता है गणित?
एनडीए के दो मुख्य घटक हैं, जिसमें फिलहाल तोड़-फोड़ मुश्किल है। ये हैं बीजेपी और जदयू और इनके विधायकों की कुल संख्या बनती है – 117 (74+43)। इसके अलावा इस गठबंधन में जीतनराम मांझी की पार्टी HAM और मुकेश सहनी की VIP भी शामिल थी, जिनके कुल 8 विधायक जीते हैं। इस तरह एनडीए गठबंधन ने 125 का आंकड़ा हासिल कर लिया और सरकार बनाने की स्थिति में है। दिक्कत ये है कि ये दोनों पार्टियां सरकार बनाने में अपनी अहमियत समझने लगी हैं, और इसलिए इनकी मांगें और उम्मीदें दोनों बढ़ने लगी हैं। ऐसे में अगर नीतीश कुमार इन्हें संतुष्ट नहीं कर पाए, तो ये कभी भी पाला बदल सकते हैं। इनकी विचारधारा या राजनीतिक इतिहास भी ऐसा ही रहा है, जिसमें पार्टी बदलना कोई बड़ी बात नहीं।
दूसरी तरफ आरजेडी, कांग्रेस और वामदलों का गठबंधन है, जिनके विधायकों की कुल संख्या बनती है – 110 (75+19+16)। इन्हें सांसद असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के 5 विधायकों समेत बहुजन समाज पार्टी के भी एक विधायक का समर्थन मिल सकता है। यानी महागठबंधन भी 116 विधायकों के साथ सरकार बनाने से कुछ ही कदम दूर है। वैसे तो कांग्रेस ने नीतीश कुमार को भी तेजस्वी यादव के साथ आने का ऑफर दिया है, लेकिन ये संभव नहीं दिखता। ऐसे में इनकी निगाहें भी वीआईपी और हम के 8 विधायकों पर है। इनका साथ मिल गया, तो तेजस्वी यादव आसानी से 122 का जादुई आंकड़ा हासिल कर मुख्यमंत्री बन सकते हैं।

क्या हैं ताज़ा हालात?
बिहार चुनाव में जीत के बाद, शुक्रवार को मुख्यमंत्री आवास पर NDA नेताओं की बैठक हुई, जिसमें NDA के तमाम घटक दलों के बड़े नेता और विधायक शामिल हुए। इनमें BJP की ओर से सुशील मोदी, नित्यानंद राय और संजय जायसवाल जबकि VIP की तरफ से मुकेश सहनी मीटिंग में आए। वहीं, जीतन राम मांझी ने पहले ही अपने चारों विधायकों के साथ सीएम नीतीश कुमार से मुलाकात कर उन्हें अपना समर्थन पत्र सौंप दिया है। शुक्रवार को एकमात्र निर्दलीय विधायक सुमित सिंह ने भी नीतीश कुमार से मुलाकात की और NDA की जीत के लिए उन्हें बधाई भी दी। माना जा रहा है कि सुमित सिंह NDA सरकार को बतौर निर्दलीय विधायक समर्थन दे सकते हैं। चकई से जीते सुमित सिंह नीतीश सरकार के ही पूर्व मंत्री नरेंद्र सिंह के बेटे हैं।
अभी हार नहीं मानी है!
तेजस्वी यादव ने ना तो अभी हार मानी है और ना ही उम्मीद छोड़ी है। महागठबंधन के नेता अपने दो पूर्व सहयोगियों से संपर्क में है जो फिलहाल NDA का हिस्सा बन गये हैं और किंगमेकर की भूमिका में हैं। अखबारों में छपी खबरों के मुताबिक आरजेडी मुकेश सहनी की विकासशील इन्सान पार्टी और पूर्व सीएम जीतन राम मांझी के हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा से लगातार संपर्क में हैं। सूत्रों के मुताबिक तेजस्वी ने भी इन दोनों नेताओं को उपमुख्यमंत्री पद का ऑफर दिया है। वहीं सांसद असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM से भी बातचीत चल रही है।

कहां फंसेगा पेंच?
एनडीए की परेशानी ये है कि जीत के बाद मुकेश सहनी की वीआईपी और जीतन मांझी की हम पार्टी…दोनों की मांगें बढ़ गई हैं। अब दोनों कैबिनेट में अपने लिए डिप्टी सीएम पद की मांग कर रहे हैं। आपको बता दें कि मुकेश सहनी बीजेपी कोटे से और जीतन मांझी जेडीयू कोटे से चुनाव में उतरे थे। वैसे, चुनाव से पहले दोनों ही पार्टियां आरजेडी के साथ थीं, लेकिन सीट शेयरिंग में मनमुताबिक सीटें ना मिलने की वजह से इन्होंने महागठबंधन से नाता तोड़ लिया और एनडीए में शामिल हो गये। अब दोनों की मांगों को एनडीए कितना मानती है और इस पर इनकी प्रतिक्रिया क्या होती है, उसी से आगे की सियासत तय होगी।
कौन बनेगा उपमुख्यमंत्री?
बिहार में छोटे भाई की भूमिका निभा रही बीजेपी के लिए भी ज्यादा सीटें जीतने के बावजूद उसी भूमिका में रहना मुश्किल लग रहा है। पार्टी के कई वरिष्ठ नेता नीतीश कुमार की कार्यशैली से खुश नहीं हैं। ऐसे में बीजेपी भी चाहेगी कि सत्ता में उसकी हिस्सेदारी बढ़े। वहीं इस बात की भी काफी चर्चा है कि इस बार सुशील मोदी की जगह पार्टी के दलित चेहरे कामेश्वर चौपाल को उपमुख्यमंत्री बनाया जा सकता है। कामेश्वर चौपाल संघ की भी पसंद हैं और ये वही हैं, जिन्होंने राम मंदिर निर्माण के लिए नींव की पहली ईंट रखी थी।

अब सवाल ये है कि नीतीश कुमार अपनी सरकार बनाने के लिए कितने लोगों को उपमुख्यमंत्री का पद देंगे? तीन-तीन उपमुख्यमंत्री तो बन नहीं सकते, और बन भी गये तो इन्हें संभालना मुश्किल होगा। क्योंकि कोई भी एक नाराज हुआ, या महागठबंधन के पाले में चला गया, तो सरकार गिर जाएगी। ऐसी हालत में नीतीश अगर मुख्यमंत्री नहीं बनना चाहते तो कोई हैरत की बात नहीं। भला कौन ऐसी सरकार को चलाना चाहेगा, जिसके तीन-तीन रिमोट कंट्रोल हो, और कभी भी…कोई भी किसी लालच या नाराजगी की वजह से सरकार का स्विच ही ऑफ कर दे?
कैसी होगी भविष्य की राजनीति (politics)?
इतना तो तय है कि इस बार के चुनाव परिणामों ने बिहार में एक अस्थिर सरकार की बुनियाद डाल दी है। जनता ने ना एनडीए पर भरोसा किया ना महागठबंधन पर और ऊपर से VIP, HAM और AIMIM जैसी छोटी पार्टियों के हाथ में सत्ता की चाभी सौंप दी। अब बिहार में महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश जैसे हालात बनने के साफ आसार दिख रहे हैं। वैसे भी 4-5 सीटें जीतने वाली पार्टी के विधायकों को खरीदने में ना ज्यादा खर्च होगा, ना दलबदल कानून आड़े आएगा। (राजस्थान में विधायकों को 20-25 करोड़ रुपये का ऑफर मिलने की बात सामने आई थी)। इसमें ना तेजस्वी पीछे रहेंगे ना नीतीश कुमार।

कुल मिलाकर बिहार में सरकार किसी भी बने, उसके ढंग से चलने के आसार कम ही हैं। आनेवाले 5 सालों में सरकार का ध्यान, जनता के विकास से ज्यादा अपनी सरकार को बचाने और सहयोगियों को संतुष्ट करने पर ज्यादा रहेगा। दूसरी तरफ विपक्ष में बैठे लोग हमेशा इस ताक में रहेंगे कि कैसे विधायकों को अपने पाले में लाया जाए। जैसे-जैसे ऑफर बढ़ते जाएंगे, विधायकों का मन और रेट भी बढ़ता जाएगा। जनता का क्या होगा, ये बताने की जरुरत नहीं है।
फिलहाल 15 नवंबर को एनडीए विधायक दल की बैठ होगी, जिसमें नेता चुने जाने पर विचार होगा। उधर, विपक्षी गठबंधन भी एनडीए के अंदर हो रही गतिविधियों पर नजर बनाये हुए है। दोनों ही गुट एक-दूसरे के विधायकों से संपर्क कर रहे हैं, लेकिन पूछे जाने पर सिरे से खारिज कर देते हैं। ज्यादा कुरेदो, तो जवाब होता है…क्या कहें, राजनीति (politics) तो संभावनाओं का खेल है।