‘गंदी महक’ से गई लोगों की जान?
आंध्र प्रदेश का विजाग गैस लीक मामला तो आपको याद ही होगा। विशाखापट्टनम में 7 मई की सुबह एलजी पॉलिमर फैक्ट्री से स्टाइरीन गैस लीक होने की वजह से 12 लोगों की मौत हुई थी और करीब 5 किलोमीटर के दायरे में 1000 से ज्यादा लोग प्रभावित हुए थे। इनमें से कई लोग अब भी अस्पताल में भर्ती हैं। स्थानीय लोगों और मजदूरों के विरोध के बाद राज्य सरकार ने इस घटना की जांच के लिए एक उच्च-स्तरीय जांच समिति भी गठित की थी। इस बड़े और बिल्कुल साफ मामले में भी पुलिस की जांच और रवैया चौंकानेवाला है।
घटना के बाद इसकी एफआईआर (FIR) गोपालपट्टनम पुलिस थाने में दर्ज हुई थी। इस एफआईआर को दर्ज करने के दौरान पुलिस की लापरवाही हैरान करनेवाली है। आईये आपको बताते हैं क्या-क्या लिखा है इस एफआईआर में
- एफआईआर में न तो कंपनी का नाम है न ही कंपनी के किसी जिम्मेदार शख्स का।
- प्राथमिकी के मुताबिक कारखाने से ‘कुछ धुआं’ निकला। उसकी गंध बुरी थी और इस गंध ने लोगों की जान ले ली। यानी पुलिस को पता ही नहीं कि ये जहरीली गैस थी, और इसका नाम क्या था। जबकि सुबह से ही सभी मीडिया चैनलों पर ये जानकारी आ रही थी।
- प्राथमिकी के मुताबिक ‘गंदी महक से लोगों की जान खतरे में पड़ गई। डर के कारण, सभी ग्रामीण घरों से भाग गए। घटना में, 5 व्यक्तियों की मौत हो गई और बाकी लोगों को अस्पताल में भर्ती कराया गया।’ पुलिस ने सिर्फ 5 लोगों के मरने की बात दर्ज किया, जबकि घटना के कुछ ही घंटों में 10 लोगों की मौत हो चुकी थी।
- एफआईआर में स्टाइरीन गैस का उल्लेख नहीं किया गया है, जबकि वहां मौजूद पुलिस अधिकारियों ने खुद इसकी जानकारी दी थी।
- अगले दिन फिर उसी प्लांट से गैस लीक हो रही थी, जिसे काबू में करने के लिए के बाद आसपास के गांव खाली कराये गये। लेकिन एफआईआर में इसका कोई जिक्र नहीं है।
- जो धाराएं लगाई गई हैं, वो हैं – धारा 278 (स्वास्थ्य के लिए माहौल को हानिकारक बनाना), 284 (जहरीले पदार्थ के संबंध में लापरवाहीपूर्ण आचरण), 285 (खतरे में डालने वाली वस्तु के साथ किसी भी तरह का काम) और 304-II (ज्ञान पूर्वक ऐसा कार्य करना, जिसके मृत्यु का कारण बनने की संभावना हो)
क्या हुई थी लापरवाही?
- विशाखापट्टनम फैक्ट्रीज के संयुक्त मुख्य निरीक्षक जे शिव शंकर रेड्डी के मुताबिक लॉकडाउन के बाद फैक्ट्री को फिर से खोलने की जिम्मेदारी एलजी पॉलिमर के महाप्रबंधक और संचालन निदेशक, पीपी चंद्र मोहन राव की थी। लेकिन वह 6-7 मई की रात को कारखाने में मौजूद नहीं थे।
- हादसे के वक्त फैक्ट्री में कोई भी वरिष्ठ प्रबंधक मौजूद नहीं था। उस समय कारखाने में 24 लोग थे, जिनमें से आधे ठेके पर काम करने वाले थे। कुछ इंजीनियर भी थे, लेकिन उनके पास स्थिति को संभालने का कोई अनुभव नहीं था।
- एलजी पॉलिमर ने अपनी तरफ से ना तो कोई जांच की ना किसी पर कार्रवाई। 9 मई को भी सिर्फ इस घटना से प्रभावित लोगों के प्रति संवेदना और क्षमा याचना का बयान जारी किया। कंपनी ने अभी तक किसी मुआवजे की बात नहीं की है।
क्या कर रही है राज्य सरकार?
- इस घटना की जांच के लिए, राज्य सरकार ने विशेष मुख्य सचिव (पर्यावरण और वन) नीरभ कुमार प्रसाद और चार अन्य लोगों की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया है। समिति के सदस्य भारतीय पेट्रोलियम संस्थान के निदेशकों और एनडीआरएफ विशेषज्ञों की मदद ले रहे हैं।
- विशाखापट्टनम के पुलिस आयुक्त राजीव कुमार मीणा के एक सवाल के जबाव में कहा कि अगर एफआईआर में किसी का नाम नहीं है, तो भी जांच के दौरान फैक्टरी चलाने में जिम्मेदार प्रत्येक व्यक्ति की भूमिका का पता लगाया जाएगा। उच्चस्तरीय समिति और विशेषज्ञ समिति भी वरिष्ठ प्रबंधकों की भूमिका की जांच कर रही है।
- आंध्र प्रदेश की हाईकोर्ट ने भी इस मामले में राज्य व केन्द्र सरकार को नोटिस जारी किया है और पूछा है कि मानवीय निवास के बीच इस प्लांट को परिचालन करने की अनुमति कैसे दी गई? कोर्ट ने आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट बार एसोसिएशन के प्रेसिडेंट को इस मामले में निष्पक्ष सलाहकार नियुक्त किया है।
सवाल ये है कि इस मामले में पुलिस कंपनी के अधिकारियों की तरफ क्यों दिख रही है? ना तो कोई गिरफ्तारी हुई है, ना उसके अधिकारियों को जवाब देने के लिए बुलाया गया है। जांच समिति अपनी सुविधा के हिसाब से काम कर रही है और पुलिस उनकी जांच के नतीजे आने का इंतजार। कंपनी गैस रिसाव की बात तो मानती है, लेकिन ना तो मारे गये लोगों को कोई मुआवजा देने को तैयार है और ना ही बीमार हुए लोगों के इलाज का खर्च उठाने को। आखिर प्रशासन, पुलिस, सरकार….सब के सब हाथ बांधे तमाशा क्यों देख रहे हैं? क्या सिर्फ इसलिए कि मारे गये सभी मजदूर हैं, कमजोर हैं, कुछ दिनों में आंसू पोंछकर चुप हो जानेवाले हैं ? या कोई और वजह है जिसने सरकार के, प्रशासन के, पुलिस के हाथ बांध रखे हैं?