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#CairnEnergy: परदेस वाले पंच-परमेश्वर

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#CairnEnergy: परदेस वाले पंच-परमेश्वर

#CairnEnergy
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हर देश की सरकार स्वदेशी कंपनी के हित के लिए काम करती है, लेकिन हमारी सरकार इस काम को अलग ही स्तर तक ले जाती है। मिसाल तीन कंपनियों का है। अभी दुनिया की नंबर1 ई कॉमर्स कंपनी amazon , ब्रिटिश टेलीकॉम कंपनी Vodafone और ब्रिटिश तेल कंपनी #Cairn Energy भारत में अपने काम-काज को लेकर भारत से बाहर International Arbitration Centre में मुकदमे लड़ रही हैं। ये इत्तेफाक ही होगा कि ये तीनों कंपनियां भारत के एक बड़े कारोबारी घराने की प्रतिद्वंद्वी हैं। हमारी सरकार ने इन से हुए विवाद को लेकर बस चार काम किए

  1. 2012 के बजट में टैक्स कोड में बदलाव कर 1962 के बाद हुए सभी M&A deals  पर टैक्स लगाने का हक हासिल कर लिया। इससे सरकार को 2007 में Vodafone के Hutchison Whampoa के 67% शेयर की  $11-billion में की गई खरीद पर 2012 में टैक्स लगाने का अधिकार मिल गया। वोडाफोन पर 7,990 करोड़ का कैपिटल गेन्स टैक्स लगाया गया जो सूद और जुरमाने के साथ 22,100 करोड़ हो गया।
  2. 20 जनवरी 2012 को सुप्रीम कोर्ट ने इस टैक्स को ये कहते हुए रद्द कर दिया कि… India had no territorial jurisdiction if non-residents transfer such assets indirectly
  3. मार्च में सुप्रीम कोर्ट के आदेश को रद्द करने वाला कानून संसद ने पारित किया
  4. ब्रिटेन और नीदरलैंड समेत 70 से ज्यादा देशों के साथ हुए उन करारों को रद्द कर दिया, जिसके तहत उन देशों की कंपनियों के भारत में निवेश की रक्षा की गारंटी 1994 से शुरू हुए BIT –bilateral investment treaty- के तहत दी जा रही थी

वोडाफोन ने Netherlands-India Bilateral Investment Treaty का हवाला देते हुए सिंगापुर में arbitration tribunal में अपील की। सितंबर में tribunal ने भारत सरकार के दावे को खारिज कर दिया। ट्रिब्यूनल ने कहा

India’s “conduct in respect of the imposition” of tax demand on Vodafone “notwithstanding the Supreme Court judgement is in breach of the guarantee of fair and equitable treatment” in the bilateral investment protection treaty.

इसी तरह का मामला Cairn Energy का है। 2006-07 में Cairn UK ने Cairn India Holdings के शेयर Cairn India को ट्रांसफर किए। इनकमटैक्स के मुताबिक इस कदम से Cairn UK को  24,503.5 करोड़ कै कैपिटल गेन हुआ।  लिहाजा कंपनी पर 10,247 करोड़ का टैक्स लगाया गया। हेग में International Court of Justice ने कहा

the Cairn tax issue is not a tax dispute, but a tax related investment dispute. Hence, it falls under its jurisdiction. India’s demand in past taxes was in breach of fair treatment under a bilateral investment protection pact

इस आदेश में पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली के यूपीए काल के retrospective tax amendments को ‘tax terrorism’ करार देने और international disputes में ट्रिब्यूनल के आदेश को मानने और उनक खिलाफ अपील नहीं करने की वचनबद्धता का हवाला भी दिया गया है।

वोडाफोन हो या केयर्न…बड़ी तस्वीर ये है कि व्यापारिक करार के मामले में भारत में काम कर रही विदेशी कंपनियों को भारत सरकार और भारतीय अदालतों पर रत्ती भर भी भरोसा नहीं है। सरकार जब चाहे कानून बदल देती है और अदालतें सालों साल सुनवाई नहीं करती। नतीजा ये है कि सिंगापुर, लंदन, हेग से लेकर यूएई में ताजा बने दुबई और अबुधाबी के आर्बिट्रेशन सेंटर में भारत में काम कर रही विदेशी कंपनियों के मामलों की भरमार हो गई है। अकेले  Singapore International Arbitration Centre की बात करें तो यहां भारत से आए मामले पांच सौ के करीब हैं, जबकि इस सूची में बाकी के नौ देशों के मिल कर भी दो सौ के आंकड़े तक नहीं पहुंचते।

भारत से जुड़े मामले इस लिए भी विदेशी अदालतों में जा रहे हैं, क्योंकि हम विदेशी वकील और लॉ फर्म को भारत में मुकदमे लड़ने की इजाजत नहीं देते। नतीजा वो देश यही नियम हम पर भी लागू करते हैं। ऐसे में विदेशी कंपनियों के लिए सिवाय सिंगापुर या लंदन जैसे इंटरनेशनल आर्बिट्रेशन सेंटर जाने के और कोई रास्ता बचता ही नहीं है। और ऐसा नहीं है कि सिर्फ विदेशी कंपनियां ही ऐसा कर रही हैं। जब 2017 में भारत सरकार ने रिलायंस पर अवैध तरीके से ज्यादा तेल और गैस निकालने के मामले में $1.6 बिलियन का दावा किया तो रिलायंस ने सिंगापुर में अपील की। रिलायंस जीत गई और 14 हजार करोड़ सरकार को चुकाने की जगह उसे $8m का हरजाना मिला। सिंगापुर में ही अमेजन को अक्टूबर में राहत मिली जब वहां के आर्बट्रेशन सेंटर ने फ्यूचर ग्रुप को खरीदने के रिलायंस के सौदे को रद्द कर दिया। इस फैसले के खिलाफ फ्यूचर ग्रुप ने दिल्ली हाईकोर्ट में अपील की और अमेजन पर इक्कीसवीं शती की ईस्ट इंडिया कंपनी की तरह व्यवहार करने का इल्जाम लगाया। जाहिर है इन सब चीजों का असर विदेशी निवेशकों पर पड़ना लाजिमी है।

द इकोनामिस्ट ने रिसर्च ग्रुप Daksh के हवाले से बताया है कि दिल्ली और मुंबई के हाईकोर्ट में व्यापार के मामले औसतन तीन साल में निबटारे के करीब आते हैं। वहीं दावा ये भी है कि मुंबई हाईकोर्ट में कुछ मामले तो 1960 के दशक से लंबित हैं।


ऐसे वक्त में जबकि भारत खुद को चीन के मुकाबिल बेहतर निवेश विकल्प के तौर पर पेश कर रहा है, वोडाफोन, केयर्न और अमेजन के मामलों से साफ है कि भारत को टैक्स की निश्चितता और व्यापारिक विवादों के निपटारे में अभी बहुत काम करना बाकी है।

बीते 18 मई को सरकार ने Finance Act, 2020 के Section 128 को नोटिफाई किया। GST Act के Section 140 में बदलाव को सरकार ने 1 जुलाई 2017 से प्रभावी कर दिया है। GST में पीछे की तारीख से किए गए बदलाव की ये अकेली घटना नहीं है। साफ है कि टैक्स व्यवस्था में निश्चितता और पारदर्शिता की तलाश हमें नहीं है।    

http://sh028.global.temp.domains/~hastagkh/cairn-energy-india-lost-the-tax-case-in-tribunal/
Shailendra

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