क्या BSNL को सरकार से बचाया जा सकता है ?
कैसेट, वीसीआर, एसटीडी बूथ और अंबेसेडर कार की तरह लगता है BSNL का वक्त भी पूरा हो गया है।
सरकारी कंपनियां बहुत ढीठ होती हैं, वो कंपीटिशन से नहीं मरतीं, उन्हें मारना पड़ता है
जब केंद्र सरकार ने BSNL के लिए 70हजार करोड़ की योजना बनाई तो लगा कि शायद ये कंपनी बच जाएगी। लेकिन ये भ्रम था।
क्या कोई सोच भी सकता है कि सरकार चाहती है कि BSNL 4G सेवा नहीं शुरू करे ?
23 मार्च को BSNL ने देश भर में पचास हजार से ज्यादा साइटों पर 4G की सुविधा देने के लिए ₹9,000 करोड़ का ठेका निकाला।
टेंडर की टेंशन
- जिओ, एयरटेल और वोडाफोन चार साल से 4G सेवा दे रहे हैं, BSNL इसकी शुरूआत करना चाहता है। 2G और 3G सेवा देने वाली देश की अकेली टेलीकॉम कंपनी रह गई है BSNL
- पहले ये वॉयस बाजार से बाहर कर दी गई और अब कोशिश है डाटा की दुनिया से भी विदा हो जाए BSNL
- 15 अप्रैल को Telecom Equipment and Services Export Promotion Council (TEPC) ने सीधा प्रधानमंत्री कार्यालय को खत लिखकर इल्जाम लगाया कि BSNL का टेंडर मेक इन इंडिया के खिलाफ है। इसे रद्द किया जाए।
नतीजा क्या हुआ ?
TEPC का खत मिलते ही कॉमर्स मिनिस्ट्री हरकत में आ गई। BSNL को फिर से टेंडर जारी करने का आदेश हुआ।
TEPC क्या है ?
देश में टेलीकॉम की जरूरतों का सामान बनाने वाली कंपनियां जैसे Tejas Networks, Sterlite, HFCL और Vihaan Networks का संगठन है। संगठन का आरोप है कि BSNL ने ऐसा टेंडर निकाला है जिसमें सिर्फ मल्टी नेशनल कंपनियां ही बोली लगा सकती हैं।
और ये मेक इन इंडिया के खिलाफ है। हुआवे की मिसाल देते हुए इनका कहना है कि विदेशी कंपनियां अपने इक्विपमेंट के जरिए हमारी जासूसी कर सकती हैं।
सवाल है जब एयरटेल इसी तरह का करीब 7 हजार करोड़ का टेंडर फिनलैंड की नोकिया को देता है, तब क्या मेक इन इंडिया को नुकसान नहीं पहुंचता….स्नूपिंग नहीं होती ? ये उच्चतम आदर्श के मानक BSNL पर ही क्यों लागू किए जाते हैं?
मार्च 2007 में BSNL का रिवेन्यू ₹40,000 करोड़ था, अब आधे से ज्यादा लोगों को VRS देने के बाद भी कंपनीं सैलरी देने की स्थिति में नहीं है।
11 दिसंबर 2008 को जब देश में पहली बार 3G सेवा की शुरूआत हुई तो सरकार ने इसके लिए MTNL को चुना। लेकिन जब 10 अप्रैल 2012 को देश में 4G की शुरूआत हुई तो इसका श्रेय गया एयरटेल को जिसने कोलकाता में इसकी शुरूआत की। फिर कहानी बदली सितंबर 2016 में जिओ की लान्चिंग से। सिर्फ तीन साल में जिओ सबको पछाड़ कर देश की नंबर वन टेलीकॉम कंपनी बन गई है।
इसे इस तरह समझें कि रविशंकर प्रसाद के शासन में वही अहमियत जिओ को हासिल है, जो कपिल सिब्बल के शासनकाल में एयरटेल को हासिल थी।
इस तरह हुआ ये कि 3G सेवा में शुरूआत करने वाली सरकारी कंपनियां जैसे MTNL और BSNL कहीं पीछे रह गईं और प्राइवेट कंपनियां जैसे एयरटेल, एयरसेल, वोडाफोन और जिओ को बारी-बारी से 4G लाइसेंस और स्पेक्ट्रम आवंटित कर दिए गए। BSNL 4G लाइसेंस पाने वाली देश की आखिरी कंपनी हुई।
लाइसेंस तो BSNL को मिल गया लेकिन देश के तमाम अहम टेलीकॉम रिजन जैसे महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, तमिलनाडु, कोलकाता में सरकार ने BSNL को अभी हाल तक स्पेक्ट्रम एलॉट नहीं किए गए । अब जब सरकार ने स्पेक्ट्रम एलॉट कर दिया तब 4Gके इक्विपमेंट खरीदने में बाधा खड़ी की जा रही है।
नतीजा ये है कि जनता को4G मोबाइल सेवा देने से तो BSNL बाहर हो ही गया एक बहुत बड़ा बाजार देश की रक्षा और आंतरिक सुरक्षा से जुड़े सरकारी सेवा (Video camera surveillance, Traffic management, Home land security) का भी था जिसमें वो शिरकत तक नहीं कर पाई।
इसके साथ ही सरकार ने BSNL को मजबूर किया कि जहां-जहां BSNL के पास स्पेक्ट्रम नहीं है वहां सेवा देने के लिए BSNL, जिओ के साथ सर्विस एग्रीमेंट करे।
बीते करीब चार सालों में देश का 2G और 3 G यूजर बेस सिवाय जम्मू कश्मीर के करीब-करीब खत्म ही हो चुका है। अब जमाना 4 G से आगे 5 G की ओर बढ़ रहा है, वहीं BSNL केरल और कर्नाटक में पायलट बेसिस पर 4G सर्विस टेस्ट ही कर रही है। कुछ तो गड़बड़ है दया ! पता करो!