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वैक्सीन विवाद: जान जरुरी है या धर्म?

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वैक्सीन विवाद: जान जरुरी है या धर्म?

corona vaccine and religion
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कोरोना वैक्सीन (vaccine) का मुद्दा अब धर्म से भी जुड़ता जा रहा है। हाल ही में मुंबई में इस्लामिक संगठनों की एक बैठक हुई, जिसमें कोरोना वैक्सीन के इस्तेमाल को लेकर चर्चा की गई। ऑल इंडिया सुन्नी जमीयत ए उलेमा और रजा अकादमी समेत 9 मुस्लिम संगठनों ने फैसला लिया कि चीन से आनेवाली वैक्सीन का इस्तेमाल मुस्लिम नहीं करेंगे। उन्होंने सरकार से भी आग्रह किया कि चीनी वैक्सीन को भारत में नहीं मंगवाया जाए।

दरअसल, अक्टूबर में इंडोनेशिया के कुछ डिप्लोमैट्स और मुस्लिम धर्मगुरु चीन गए थे। वे इंडोनेशिया के नागरिकों के लिए वैक्सीन (vaccine) की डील करने गए थे। तब धर्मगुरुओं ने ऐसी वैक्सीन लेने से इनकार कर दिया, जिसमें पोर्क जिलेटिन का इस्तेमाल किया गया हो। इसके बाद से दुनिया भर में वैक्सीन के खिलाफ आवाज उठने लगी और इसे धर्म-विरुद्ध करार दिया जाने लगा। तब से आज तक कोरोना के वैक्सीन को लेकर शंकाओं और विरोध का दौर जारी है।

(प्रतीकात्मक तस्वीर)

चीनी vaccine से क्या है आपत्ति?

मुस्लिम संगठनों का कहना है कि चीनी वैक्सीन (vaccine) में सूअर की चर्बी हो सकती है, जो उनके लिए हराम है। वैसे चीन की कोरोना वैक्सीन में सुअर की चर्बी है या नहीं, इस बारे में अभी तक आधिकारिक तौर पर कोई जानकारी नहीं है। लेकिन मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, चीनी कंपनियों ने अपनी वैक्सीन में पोर्क जिलेटिन का इस्तेमाल किया है।

लेकिन चीनी वैक्सीन का यूएई, ब्रूनई समेत कई मुस्लिम देशों में ट्रायल चल रहा है। पड़ोसी देश पाकिस्तान में चीनी कंपनी कैनसिनो बायोलॉजिक्स वैक्सीन के अंतिम स्टेज के क्लीनिकल ट्रायल्स चल रहे हैं। साथ ही कई मुस्लिम देशों में इमरजेंसी यूज के तहत चीनी वैक्सीन (vaccine) लगाए जा रहे हैं। वहीं तमाम विवाद के बीच UAE ने साफ कह दिया है कि अगर किसी वैक्सीन (vaccine) में सुअर की चर्बी है भी, तो भी उसे कोई आपत्ति नहीं है क्योंकि लोगों की जान बचाना ज्यादा जरूरी है। 

वैक्सीन से क्यों है आपत्ति?

कुछ मुस्लिम संगठनों ने तर्क दिया है कि कोरोना वैक्सीन इस्लामिक उसूलों के खिलाफ है। कुछ अन्य मुस्लिम संगठनों का कहना है कि वैक्सीन में अगर पॉर्क (सुअर की चर्बी) जिलेटिन होगी, तो उसे इस्लाम में हराम माना जाएगा और वे ऐसै वैक्सीन नहीं ले सकते। दरअसल, इस्लाम में सुअर को खाना या उसका किसी भी तरह से उपभोग करना पूरी तरह से हराम (प्रतिबंधित) है। यही वजह है कि इस्लाम के अनुयायियों के मन में इस वैक्सीन को लेकर कई शंकाएं घर कर गई हैं।

क्यों होता है जिलेटिन का इस्तेमाल?

अगर वैक्सीन बनने की प्रक्रिया को समझें तो उसमें जिलेटिन डलता है, जो किसी भी वैक्सीन (vaccine) में स्टेबलाइज़र का काम करता है। ये जिलेटिन ज्यादातर सुअर की चर्बी से ही बनता है। टीकों अथवा दवाओं के निर्माण में इसी पोर्क जिलेटिन का इस्तेमाल होता है। कई कंपनियों का मानना है कि इसके इस्तेमाल से वैक्सीन का स्टोरेज सुरक्षित और असरदार होता है।

इसलिए दुनिया भर में टीकों (vaccine) के भंडारण और ढुलाई के दौरान उनकी सुरक्षा और असर को बनाए रखने के लिये पॉर्क जिलेटिन का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल होता है। वैसे कुछ कंपनियां सुअर के मांस के बिना भी टीका विकसित कर चुकी हैं। जैसे – स्विटजरलैंड की दवा कंपनी ‘नोवार्टिस’ ने सुअर का मांस इस्तेमाल किए बिना मैनिंजाइटिस टीका तैयार किया था। वहीं सऊदी अरब और मलेशिया स्थित कंपनी एजे फार्मा भी ऐसा ही टीका बनाने की कोशिश कर रही हैं।

(प्रतीकात्मक तस्वीर)

क्या धर्म के खिलाफ है vaccine?

कुछ मुस्लिम संगठन वैक्सीन (vaccine) का विरोध कर रहे हैं तो कुछ समर्थन भी कर रहे हैं। इनका मानना है कि उनका धर्म जान बचाने की हिमायत करता है और दवा के रुप में कुछ भी लेने से परहेज नहीं करना चाहिए।

  • संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) की सर्वोच्च इस्लामिक संस्था ‘यूएई फतवा काउंसिल’ ने कोरोना वायरस टीकों में पोर्क (सुअर के मांस) जिलेटिन का इस्तेमाल होने पर भी इसे मुसलमानों के लिये जायज करार दिया है। यूएई के बाद बहरीन ने भी चीनी वैक्सीन को मंजूरी दे दी है।
  • फतवा काउंसिल के अध्यक्ष शेख अब्दुल्ला बिन बय्या ने कहा कि अगर कोई और विकल्प नहीं है तो कोरोना वायरस टीकों को इस्लामी पाबंदियों से अलग रखा जा सकता है क्योंकि पहली प्राथमिकता ‘मनुष्य का जीवन बचाना है।’ काउंसिल ने कहा कि इस मामले में पोर्क-जिलेटिन को दवा के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है। इसे खाना नहीं है बल्कि इंजेक्शन के तौर पर लिया जाना है।  
  • लखनऊ में मौलाना सैफ अब्बास (शिया धर्मगुरु) का कहना है कि जो चीज इस्लाम में हराम है, वह नॉर्मल तौर पर हराम है। लेकिन अगर कोई इमरजेंसी है तो, उसके लिए जो भी दवा बनेगी और जिस चीज से दवा बनेगी, उसके लिए इस्लाम हमें इजाजत देता है।
  • मौलाना सुफियान निजामी (सुन्नी धर्मगुरु एवं प्रवक्ता, दारुल-उलूम-फरंगी महल) के मुताबिक ‘जो भी मुसलमान इस्लाम धर्म को मानते हैं और उसका पालन करते हैं, उनको इस्लाम धर्म की इस बात को भी मानना पड़ेगा, जिसमें कहा गया है कि जान की हिफाजत करना, उसे बचाना सबसे पहली प्राथमिकता है। अगर जान बचाने के लिए कोई ऐसी दवा बनकर आती है, जिसमें गैर इस्लामी चीजें मिली हैं तो भी उसका सेवन करना चाहिए।

और भी धर्मों में हो रहा विरोध

कैथोलिक ईसाइयों में भी वैक्सीन को लेकर कई तरह की आशंकाएं हैं। इनकी चिंता कोरोना वैक्सीन में अबॉर्शन से प्राप्त सेल के इस्तेमाल को लेकर है। कई यूरोपीय देशों से ऐसी खबरें आई थी कि वैक्सीन में गर्भस्थ शिशुओं के सेल का इस्तेमाल किया गया है। कैथोलिक धर्म में गर्भपात को बहुत बड़ा पाप माना जाता है। अमेरिका के दो बिशप ने कहा था कि वैक्सीन बनाने की प्रक्रिया अनैतिक है। इस वजह से वे वैक्सीन नहीं लगवाएंगे।

इसके बावजूद वेटिकन के प्रमुख पोप फ्रांसिस ने कोरोना वैक्सीन को मंजूरी दी है। पोप ने बयान जारी कर कहा था कि खास परिस्थिति को देखते हुए लोगों को कोरोना वैक्सीन की मंजूरी दी गई है। ऐसे में किसी भी वैक्सीन को, चाहे उसमें गर्भ से प्राप्त सेल हों या नहीं, कैथोलिक लोगों को लेना आवश्यक है।

यहूदी समुदाय के लोगों में भी वैक्सी के इस्तेमाल को लेकर आशंका है क्योंकि ये भी सुअर के मांस से बने उत्पादों को धार्मिक रूप से अपवित्र मानते हैं। इस बारे में इजराइल की रब्बानी संगठन ‘जोहर’ के अध्यक्ष का कहना है कि यहूदी कानूनों के अनुसार सुअर का मांस खाना या इसका इस्तेमाल करना तभी जायज है जब इसके बिना काम न चले। उन्होंने कहा कि अगर इसे इंजेक्शन के तौर पर लिया जाए तो कोई दिक्कत नहीं है।

(Photo by JUSTIN TALLIS / AFP)

भारत में क्या है स्थिति?

तमाम विवाद के बीच कुछ वैक्सीन कंपनियों ने इस बारे में सफाई दी है। फाइजर, मॉडर्ना और एस्ट्राजेनेका ने दावा किया है कि उनके कोविड-19 टीकों में सुअर के मांस से बने उत्पादों का इस्तेमाल नहीं किया गया है। इसका मतलब ये है कि सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया (SII) में बन रही एस्ट्राजेनेका और ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की वैक्सीन पोर्क-फ्री होगी। भारत के लिए ये राहत भरी खबर है। वहीं देश में इमरजेंसी अप्रूवल मांग रही फाइजर की वैक्सीन में भी पोर्क का इस्तेमाल नहीं हुआ है।

लेकिन दिक्कत ये है कि बाकी वैक्सीन कंपनियों ने इस बारे में ज्यादा जानकारी नहीं दी है। जैसे वैक्सीन डेवलप करने में लगी भारत बायोटेक, जायडस कैडिला समेत अन्य कंपनियों ने भी यह नहीं बताया है कि उनकी वैक्सीन में पोर्क जिलेटिन का इस्तेमाल होगा या नहीं। दूसरी ओर देश में जैन, वैष्णव और कई अन्य धार्मिक समुदाय भी हैं जो किसी भी तरह के मांस से परहेज करते हैं। संयोग से अभी तक किसी हिन्दू संगठन ने वैक्सीन का विरोध नहीं किया है। लेकिन सरकार को उनकी भावनाओं का भी ख्याल रखना होगा।

Shailendra

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