वैक्सीन पर सियासत
कोरोना से इंसानियत की इस बेहद मुश्किल जंग में अगर एक चीज से बचा जा सकता था और बचा जाना चाहिए था तो वो है राजनीति। अब वही हो रहा है, या कम से कम ऐसी आशंका जताई जा रही है।
पहले शुरुआत अमेरिका से
अमेरिका में दुनिया की 4% आबादी है, लेकिन दुनिया भर के कुल कोरोना मामलों में से 23% यहीं हैं। एक ओर कोरोना का संकट है तो दूसरी ओर 3 नवंबर को अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव होने हैं। Operation Warp Speed के तहत अमेरिका की कोशिश है दुनिया में सबसे पहले कोरोना वैक्सीन हासिल करने और अपने नागरिकों को मुफ्त में इसे जल्द से जल्द मुहैया कराने की। इसके तहत अब तक के इतिहास में पहली बार अमेरिकी सरकार ने मॉडर्ना, फाइजर, आस्ट्राजेनेका, सनोफी-जीएसके सहित कई दवा कंपनियों को वैक्सीन की पहली खेप रिजर्व रखने के एडवांस के तौर पर दस बिलियन$ से ज्यादा रकम दी है। इसके बाद भी वैक्सीन चुनाव के पहले अक्टूबर में हासिल करने का लक्ष्य पूरा होने की संभावना नहीं है। उम्मीद है कि दिसंबर के आखिर या जनवरी की शुरूआत में अमेरिका में वैक्सीन उपलब्ध होगा।लेकिन करोड़ों वैक्सीन हफ्ते दो हफ्ते में तो बन नहीं सकती, लिहाजा कंपनियां पहली बार क्लिनिकल ट्रायल के नतीजे का इंतजार किए बगैर प्रोडक्शन शुरू कर रही हैं। ट्रायल के नतीजे अच्छे रहे तो मुनाफा कंपनियों को और अगर वैक्सीन रिजेक्ट हो गया तो नुकसान एडवांस रकम देने वाली सरकार का।
ये संभावना जताई जा रही है कि अमेरिका में इमरजेंसी अप्रूवल के तहत फ्रंटलाइन हेल्थ वर्कर्स को 3नवंबर के पहले वैक्सीन दी जा सकती है। इलेक्शन सर्वे में बाइडेन से पिछड़ते नजर आ रहे ट्रंप इस वैक्सीन को जीत की गारंटी के तौर पर देख रहे हैं।
वैक्सीन को जल्दबाजी में देना क्या सही है?
आम तौर पर ये माना जाता है कि किसी वैक्सीन को जारी करने से पहले जितना ज्यादा से ज्यादा टेस्ट किया जा सके, उतना ही ज्यादा उसके सेफ और इफेक्टिव होने की संभावना होती है। क्लिनिकल ट्रायल के डाटा को सरकार ज्यों का त्यों नहीं मान लेती। वो किसी सक्षम एजेंसी से दोबारा जांच करवा कर नतीजे का मिलान करती है। दवा के मुकाबले सरकार वैक्सीन के मामले में कई गुना ज्यादा सावधानी बरतती है। क्योंकि दवा तो डाक्टर के कहने पर सीमित मात्रा में कुछ ही लोगों को एक वक्त दी जाती है, लेकिन वैक्सीन एक साथ लाखों करोड़ो लोगों को दी जाती है। लिहाजा इसके सेफ और इफेक्टिव होने का पैमाना काफी सख्त रखा जाता है।
अमेरिका में कोरोना वैक्सीन को इजाजत देने वाले शख्स हैं FDA के Commissioner Dr. Stephen Hahn.. American Medical Association को दिए ऑनलाइन इंटरव्यू में डॉ.हान ने कहा कि इस वास्ते 22 अक्टूबर को होने वाली बैठक में हम वैक्सीन की इमरजेंसी एप्रूवल दे सकते हैं।
“We would consider using an emergency use authorization if we felt that the risks associated with the vaccine were much lower than the risks of not having a vaccine.
Dr. Stephen Hahn, Commissioner FDA
डॉ. हान इसके पहले एंटी मलेरियल ड्रग हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन की इमरजेंसी एप्रूवल दे चुके हैं, जिसे WHO और अमेरिकी FDA ने बाद में रद्द कर दिया।
अमेरिका मे कई साइंटिस्ट इस बात पर चिंता का इजहार कर चुके हैं कि जो वैक्सीन एक ही वक्त में करीब-करीब एक साथ 30 करोड़ लोगों को दी जानी है क्या उसके लिए सुरक्षा के मापदंड को कम करना सही होगा ? दूसरी ओर व्हाइट हाउस का कहना है कि ट्रायल के नतीजे के लिए अप्रैल या मई तक का हम इंतजार करें और इस बीच हालत बद से बदतर होने दें, क्या ये सही होगा?
ब्रिटेन में क्या हो रहा है?
अमेरिकी सरकार की तर्ज पर ब्रिटेन की सरकार ने भी आस्ट्राजेनेका को 10 करोड़ वैक्सीन डोज की एडवांस में कीमत दे दी है। ये तब है जबकि फेज वन क्लिनिकल ट्रायल में 70% से ज्यादा लोगों में वैक्सीन के साइड इफेक्ट्स मिले हैं। वायरोलॉजिस्ट्स का कहना है कि ये साइड इफेक्ट फीवर, हेडेक जैसे आसानी से काबू में करने लायक असर हैं। रिस्क-बेनेफिट अनुपात में इतना रिस्क लेने के लिए हमें तैयार होना होगा।
रूस में क्या हो रहा है?
रुस की Gamaleya National Research Center का दावा है कि अगले दस दिन में वो वैक्सीन मुहैया करा देगी।
अमेरिका से आगे निकलने की होड़ में रूस ने अपने वैक्सीन के ह्यूमन ट्रायल के आंकड़े the lancet या british medical journal जैसे रिसर्च जरनल में पब्लिश तक नहीं किया, जो वैक्सीन की सेफ्टी और इफेक्टिवनेस की स्वतंत्र जांच के लिए जरूरी माना जाता है। इसके अलावा केजीबी पर मॉडर्ना और ऑक्सफोर्ड की टेस्ट रिपोर्ट हैक करने का इल्जाम भी लगा। सवाल है अगर आपके पास अपना सही वैक्सीन है तो दूसरे की रिसर्च चोरी करने की जरूरत आपको क्यों पड़ रही है?
एक अनुमान के मुताबिक अगस्त के आखिर या सितंबर की शुरूआत में रुस में चार से पांच करोड़ लोगों को Gam-Covid-Vac Lyo वैक्सीन का टीका दिया जाएगा। सवाल है सिर्फ दूसरों से वाह-वाही के लिए अपने देश के नागरिकों की जिन्दगी के साथ खिलवाड़ करना राजनीति नहीं तो और क्या है ?
चीन में क्या हो रहा है ?
रुस की तरह चीन में भी वैक्सीन के बनने का काम बेहद खुफिया तरीके से हो रहा है। चीनी कंपनियों में सबसे आगे साइनोवैक है जो सितंबर में अपनी वैक्सीन की क्लिनिकल ट्रायल बांग्लादेश के नागरिकों पर करने वाली है। चीन पर भी वैक्सीन रिसर्च की जासूसी का इल्जाम है, लेकिन शी जिनपिंग के राष्ट्रवादी नेतृत्व ने वैक्सीन की तलाश को हम अमेरिका से बेहतर हैं की रेस में तब्दील कर दिया है।
भारत में क्या हो रहा है?
DGCI यानी ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ़ इंडिया ने सीरम इंस्टीट्यूट में बन रहे, ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी की कोवीशील्ड वैक्सीन के दूसरे और तीसरे ह्यूमन क्लीनिकल ट्रायल को मंज़ूरी दे दी है। जानकारों के मुताबिक हमारे देश में शायद ये पहली बार है जब SEC यानी सब्जेक्ट एक्सपर्ट कमेटी ने फेज2 और फेज3 के एक साथ क्लिनिकल ट्रायल को मंजूरी दी है।
ये ऐसे वक्त हुआ है जबकि हमारे यहां लगातार 6 दिन से रोजाना संक्रमण का आंकड़ा पचास हजार के पार आ रहा है।
सवाल है सही वक्त पर सही निर्णय लेने का दावा कर रही सरकार का ये कदम क्या जल्दबाजी में लिया गया माना जाना चाहिए?