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#Covid vaccine: सबसे बड़े मुनाफे की ये कहानी शायद आप नहीं जानते

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#Covid vaccine: सबसे बड़े मुनाफे की ये कहानी शायद आप नहीं जानते

#Covid vaccine
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अभी दुनिया में सबसे बड़ा कारोबार वैक्सीन(#Covid vaccine) का कारोबार है।

फाइजर और मॉडर्ना, सनोफी और जॉनसन …कमा नहीं रही, ड़ॉलर और यूरो बटोर रही हैं, वैक्सीन कंपनियां अब सिर्फ वैक्सीन नहीं, पूरा पैकेज सेल कर रही हैं, इसमें वैक्सीन है, लॉजिस्टिक्स है, कोल्ड चेन है, लास्ट माइल डिलीवरी है ….और सबसे बड़ी बात ये सारी कमाई टैक्स फ्री है, लीगल लायबिलिटी फ्री है।अकेले Oxford -AstraZeneca वैक्सीन के लिए सीरम इंस्टीट्यूट को भारत सरकार से 80 हजार करोड़ रुपये मिलने की उम्मीद है। अकूत मुनाफे के इस कारोबार में वैक्सीन कंपनियां जहां ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाने पर जोर दे रही हैं, वहीं वो वैक्सीन पहले पाने की रेस में शामिल देशों से ये करार भी कर रही हैं कि अगर इन वैक्सीन से किसी को किसी तरह का साइड इफेक्ट हुआ जिसमें जान जाना भी शामिल है तो इसकी जिम्मेदारी इन कंपनियों की नहीं होगी।

ऑस्ट्रेलिया की सरकार ने ऐलान किया है कि उसने AstraZeneca और Seqirus के साथ indemnity against liability ( क्षतिपूर्ति नहीं देने ) का करार किया है।अमेरिका और यूरोपियन यूनियन की सरकारों ने भी इसी तरह का करार Pfizer  और Moderna  के साथ किया है। देखादेखी इसी तरह की मांग सीरम इंस्टीट्यूट जैसी भारतीय कंपनियां भी कर रही हैं। कानून के इतिहास में इस तरह का blanket immunity law पहले कभी पारित नहीं किया गया है और दवा या वैक्सीन कंपनियों के लाभ के लिए तो ये यकीनन पहली बार है। ये इसलिए भी खास है क्योंकि पहली बार बगैर लाइसेंस के सिर्फ इमरजेंसी इस्तेमाल की इजाजत के नाम पर दुनिया की बड़ी आबादी को कोरोना की वैक्सीन दिए जाने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। अमेरिकी हेल्थ सेक्रेटरी Alex Azar  ने  invoked the Public Readiness and Emergency Preparedness Act. इसके तहत 2024 तक वैक्सीन के साइड इफेक्ट को लेकर कंपनियों पर हरजाने का मुकदमा नहीं चलाया जा सकता। फाइजर की कोरोना वैक्सीन महज 8 महीने में तैयार हुई और इसके इमरजेंसी इस्तेमाल की इजाजत भी मिल गई। इसके पहले मंप्स की वैक्सीन को चार साल में लाइसेंस के साथ इस्तेमाल की इजाजत 1967 में मिली थी। अब कोरोना वैक्सीन बनाने वाली कंपनियां कह रही हैं कि हमने आपकी जरूरत के लिए कम वक्त में कम टेस्टिंग के साथ वैक्सीन तैयार की है, अगर आप इसे चाहते हैं तो हमें मुनाफा भी कमाने दें और संभावित मुकदमे से भी बचाएं। हाल ही में Pew Research Center के सर्वे में पता चला कि जल्दबाजी में तैयार होने की वजह से अमेरिका में दस में चार लोगों को कोरोना की वैक्सीन पर भरोसा नहीं है और वो वैक्सीन नहीं लेना चाहते। अमेरिका के मुकाबले भारत में ये कहीं ज्यादा बड़ा सवाल है ..क्योंकि

  1. अमेरिका और यूरोप में वैक्सीन कंपनियों की जगह सरकार क्षतिपूर्ति देती है। PREP Act के Countermeasures Injury Compensation Program (CICP) तहत अमेरिकी सरकार वैक्सीन की वजह से होने वाली मौत पर  $370,376 यानी करीब 2.5 करोड़ देगी।
  2.  फाइजर और मॉडर्ना जिन्हें 95% तक प्रभावी माना जा रहा है शायद हमें नहीं मिलेगा। सीरम इंस्टीट्यूट, भारत बायोटेक, जायडस कैडिला और रुसी स्पुतनिक वैक्सीन को 60 से 70% तक ही प्रभावी माना जा रहा है। 135 करोड़ आबादी वाले देश में वैक्सीन के प्रभावी होने में 30 %का मार्जिन बहुत ज्यादा है।  

यूरोपियन यूनियन ने वैक्सीन्स के लिए दो टायर व्यवस्था अपनाई है। इसके तहत यूरोप में AstraZeneca की वैक्सीन $2.92 प्रति डोज की दर से खरीदी जा रही है और सरकार हर तरह के साइड इफेक्ट की कीमत चुकाएगी, दूसरी तरह Sanofi जैसी कंपनियां हैं जिन्हें प्रति डोज 10 euros की कीमत मिल रही है, लेकिन उन्हें कोई लीगल इम्यूनिटी नहीं मिलेगी। वहीं गमालया इंस्टीट्यूट की वैक्सीन को बड़ा बाजार दिलाने के लिए रुस की सरकार लीगल लायबिलिटी चुकाने का वायदा कर रही है। हम ये जानते हैं कि अब तक दुनिया में कोई वैक्सीन नहीं बनी जो 100% सुरक्षित हो। साइंस की सलाह ये है कि वैक्सीन लेने में जितना खतरा है, उससे कहीं ज्यादा फायदा है। ये भी कहा जा रहा है कि अब तक जो भी साइड इफेक्ट सामने आए हैं वो महज बुखार लगाने, चक्कर आने जैसे मामूली वाकये ही हैं। लेकिन ये भी तो हो सकता है कि इसके कुछ साइड इफेक्ट काफी बाद में नजर आएं, इसी वजह से तो अब तक हर वैक्सीन का सालों साल ट्रायल किया जाता था। हम दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आबादी हैं और कोरोना से दूसरा सबसे ज्यादा संक्रमित देश… हमारी सरकार वैक्सीन कंपनियों से जो भी करार करने वाली है, उसका असर बहुत बड़ा होने वाला है।

Shailendra

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