OTT पर छा रही है crime की कहानी
नॉवेल ‘गॉडफादर ‘के लेखक मारियो पुज़ो ने लिखा था – Behind every great fortune, there is a crime.
हमारे देश में ऐसे कई लोग मिल जाएंगे, जिन्हें इस कैटेगरी में रखा जा सकता है। ये लोग राजनीति, प्रशासन, अपराध (crime), व्यापार और यहां तक कि धार्मिक जगत के लोग भी हो सकते हैं। ऐसे ही एक कहानी पर आधारित है वेब सीरीज (web series) ‘आश्रम’। जाने-माने फिल्म निर्देशक प्रकाश झा (prakash jha) की ये पेशकश हाल ही में ओटीटी प्लेटफॉर्म (OTT platform) पर रिलीज हुई है, और बहुत जल्द दर्शकों में पॉपुलर हो गई है।
एमएक्स प्लेयर ने अपने इंस्टाग्राम पर एक पोस्टर जारी किया है, जिसमें बताया गया है कि मात्र पांच दिन में ही वेब सीरीज़ को 100 मिलियन व्यूज़ मिल गए हैं। यानी पांच दिनों में 10 करोड़ दर्शकों ने इसे देखा। आपको बता दें कि नेटफ्लिक्स के सबसे पॉपुलर वेब सीरीज मनी हाइस्ट और एक्सट्रैक्शन को भी इतना जबरदस्त रिस्पॉन्स नहीं मिला था। तो आखिर इस सीरीज में ऐसा क्या है, जो दर्शकों को इतना ज्यादा पसंद आ रहा है?
क्या है इस crime सीरीज का प्लॉट?
आश्रम की कहानी जानने के लिए आपको थोड़ा पीछे जाना पड़ेगा, क्योंकि इसकी कहानी एक सच्ची घटना से इतनी मिलती-जुलती है, कि पूरा प्लॉट फिल्मी कम, असली ज्यादा लगता है।
- साल 2002 में एक साध्वी ने तत्कालीन पीएम अटल बिहारी वाजपेयी को एक पत्र लिखा, जिसमें डेरा सच्चा सौदे के प्रमुख गुरमीत सिंह राम रहीम पर यौन शोषण का आरोप लगाया गया था। मामले को गंभीरता से लेते हुए केन्द्र सरकार ने इस मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी।
- जांच के दौरान इस महिला ने CBI कोर्ट में बताया कि 28 अगस्त, 1999 की रात बाबा ने माफी देने के लिए उसे अपनी गुफा में बुलाया और जान से मारने की धमकी देकर उसके साथ रेप किया। जब महिला ने अपने भाई को इस बारे में बताया, तो वो अपनी बहन के साथ डेरा छोड़कर चला गया। बाद में उसकी हत्या हो गई।
- सिरसा के सांध्य दैनिक ‘पूरा सच’ के संपादक रामचंद्र छत्रपति ने गुरमीत राम रहीम के डेरे में हुए बलात्कार केस की खबर भी छापी थी। इस खबर छपने के कुछ दिनों बाद उनकी गोली मारकर हत्या कर दी गई। सीबीआई जांच में इस हत्या के लिए बाबा राम रहीम को दोषी माना गया था।
- 2010 में हंसराज चौहान (पूर्व डेरा साधु) ने पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर राम रहीम पर पर डेरा के 400 साधुओं को नपुंसक बनाने का आरोप लगाया था। चौहान का कहना था कि राम रहीम के कहने पर डेरा के चिकित्सकों की टीम द्वारा साधुओं को नपुंसक बनाया जाता है।
- डेरा सच्चा सौदा की जमीन में सैंकड़ों अस्थियों और नरकंकालों के दफन होने का भी खुलासा हुआ था। प्रशासन की सख्ती के बाद डेरा प्रबंधन ने दफन किये गये सिर्फ 350 लोगों की सूची दी। जबकि डेरा सच्चा सौदा के प्रबंधकों ने पुलिस पूछताछ में डेरे की जमीन में 500 से 600 लोगों के शव दफन होने की बात मानी थी।
जब आप ‘आश्रम’ देखेंगे, तो ये सारी घटनाएं आपको थोड़ी-बहुत नाटकीयता के साथ दिखाई देंगी और आपको साफ लगेगा कि इसकी पूरी कहानी अखबारों में छपे इन्हीं तथ्यों के आसपास घूमती है। शायद यही वजह है कि लोगों को इसकी कहानी अपने आस-पास से जुड़ी और वास्तविक लग रही है और इसलिए पसंद आ रही है। एक क्राइम (crime) स्टोरी को इतनी तफ़सील से भला कौन-सा न्यूज चैनल दिखा सकता है?
कैसी है एक्टिंग?
बाबा निराला के रोल में बॉबी देओल को देखकर हैरत होती है, क्योंकि बाबाओं से आम तौर पर किसी बुजुर्ग की छवि उभरती है। लेकिन ये बाबा ना सिर्फ जवान हैं बल्कि शानदार व्यक्तित्व के मालिक भी। निर्देशक के चयन के पीछे ये भी तथ्य हो सकता है कि बाबा राम रहीम ने भी सिर्फ 23 साल की उम्र में डेरा सच्चा सौदा की गद्दी संभाल ली थी। बाबा के उदार चरित्र और भोलेपन वाले भाव को तो बॉबी देओल ने अच्छी तरह व्यक्त किया है, लेकिन उनके क्रूर और दुष्ट स्वरुप में भी वो मासूम नजर आए हैं। यहां बॉबी देओल कैरेक्टर के साथ रंग बदलते नहीं दिखते।
बाकी कलाकारों में इंस्पेक्टर उजागर सिंह के रोल में दर्शन कुमार ने अच्छा काम किया है, जबकि बाबा निराला के राइट हैंड भूपा स्वामी के रोल में चंदन रॉय सान्याल भी जमे हैं। बाबा के बाद पूरी सीरीज में पम्मी व उसके भाई का किरदार छाया हुआ है। इसे अदित पोहणकर और फिल्म ‘छिछोरे’ फेम तुषार पांडे ने शानदार ढंग से निभाया है। प्रकाश झा ने बाकी कलाकारों को भी उभरने और अपनी प्रतिभा दिखाने का मौका दिया है। यानी एक्टिंग के मामले में कोई कमी नहीं निकाली जा सकती।
कैसा है निर्देशन?
प्रकाश झा जैसे निर्देशक…जिन्हें सामाजिक और राजनीतिक पृष्ठभूमि पर कहानियां पेश करने में महारत हासिल है….जब इस तरह की कहानी लेकर आते हैं तो समझा जा सकता है..कि उसका ट्रीटमेंट भी कितना रियलिस्टिक होगा। आश्रम में कई ऐसे छोटे-बड़े सीन हैं जो इस तर्क को सही साबित करते हैं। सीधे शब्दों में कहा जाए तो इस तरह के मुद्दों को पेश करने में प्रकाश झा (prakash jha) की काबिलियत साफ झलकती है।
लेकिन कसी हुई स्क्रिप्ट के साथ फिल्में बनाने वाले इस निर्देशक ने अपने वेब सीरीज के साथ थोड़ी छूट ले ली है और कई जगहों पर सीन बेवजह लंबा खींच दिया गया है। चार-पांच मिनट के कई सीन ऐसे हैं, जिन्हें डेढ़-दो मिनटों में ही असरदार ढंग से दिखाया जा सकता था। खास तौर पर भावनात्मक प्रसंग अपनी लंबाई की वजह से बोझिल लगते हैं। वहीं सस्पेंस के साथ कहानी का आगे बढ़ना और सही जगह पर ब्रेक लेना…..इस वेब सीरीज को रोचक बनाता है।
क्यों मिल रहे हैं इतने व्यूज?
बात सिर्फ प्रस्तुति की नहीं है, इसकी लागत की भी है। आम तौर पर ज्यादातर ओटीटी प्लेटफॉर्म (OTT platform) जैसे नेटफ्लिक्स, अमेज़न प्राइम वीडियो आदि के शो देखने के लिए दर्शकों को महंगा सब्सक्रिप्शन लेना पड़ता है। लेकिन एमएक्स प्लेयर सब्सक्रिप्शन फ्री है। इस वजह से इस वेब सीरीज को देखना आसान है। अब मुफ्त में प्रकाश झा (prakash jha) का शो देखने को मिले, तो भला कौन पीछे रहेगा?
खास बात ये है कि आश्रम की कहानी अभी अधूरी है और जल्द ही इसका दूसरा सीजन आनेवाला है। जाहिर है दर्शकों को उसका बेसब्री से इंतज़ार है और ऐसे में व्यूवरशिप के मामले में अगला सीजन इससे भी बड़े रिकॉर्ड कायम कर सकता है।