इश्क होता नहीं सभी के लिए- बिहार में इलेक्शन वाला लव
पहले-पहल वे बोलती हैं तो फूल झरते हैं।
शुरू-शुरू में जब उनकी नज़रें उठती हैं तो हवाएँ भी दम साध लेती हैं।
फिर?
फिर और ज़रूरी काम आ जाते हैं।
और फिर कई सारे ग़ैरज़रूरी मसले भी उतने ही गंभीर हो उठते हैं।
सहज होकर वे कितनी मामूली हो उठती हैं।( सुदीप्ति की कविता- प्रेमिकाएं-1- सौजन्य – सदानीरा )
बिहार की राजनीति को समझना है तो प्यार से समझिए…
जेडीयू को बीजेपी से प्यार है…लव एट फर्स्ट साइट वाला नहीं, ये प्रैक्टिकल वाला लव है, इसमें तपिश तो है… कशिश नहीं है… स्पर्श की लालसा है… नजर मिलने का रोमांच नहीं है, वॉर्म है… चार्म नहीं है
बीजेपी के पास पूंजी है, लेकिन नीतीश के पास अब मजदूरों की कुंजी नहीं है
अमित शाह दिल्ली में बैठ कर बिहार में रैली करते हैं … और बोलते-बोलते बोल जाते हैं, नीतीश कुमार कच्चे हैं…
पक्के रिश्ते के कच्चे धागे की ओर चिराग पासवान पहले ही ये कह कर इशारा कर चुके हैं कि बिहार चुनाव में एनडीए की कमान बीजेपी के पास है……मतलब ये कि बिहार में NDA के घटक दलों के बीच नेतृत्व और सीटों पर फैसला सबसे बड़ी पार्टी जेडीयू नहीं, राज्य की तीसरी बड़ी पार्टी बीजेपी करेगी। उधर नीतीश मोहब्बत की पुरानी यादों के सहारे जी रहे हैं, उनकी दिली तमन्ना है कि राज्य में 2010 वाले फार्मूले पर बात हो, लेकिन कोई पूछे तो बताएं ….
तेरे बिना जिन्दगी से कोई शिकवा तो नहीं… के एहसास से उबरने के बाद आरजेडी को अब महबूबा से ज्यादा मोहल्ले वालों पर भरोसा है
जेडीयू 115 से 71 होकर भी सरकार, और हम 22 से 80 पहुंच कर भी बेकार …
प्रेम में जेडीयू जितनी ही तृप्त, आरजेडी की तृष्णा उतनी ही तेज
अमित शाह की रैली शुरू होने के छह घंटे पहले आरजेडी ने थाली पीट कर किया विरोध का इजहार
अब राजनीति को राजनीति के नजरिए से समझिए
कोरोना संकट है, लेकिन इतना बड़ा नहीं, कि बिहार में पार्टियां राजनीति न करें
आरजेडी दफ्तर के बाहर तेजस्वी यादव ने 29 मई को जारी एडीजी के उस खत का पोस्टर बना दिया जिसमें उन्होंने आशंका जताई थी कि जिन मजदूरों की नौकरी छिन गई वो अपराध में शामिल हो सकते हैं। मजदूरों के बिहार वापसी का विरोध कर पहले ही बैकफुट पर खेल रही जेडीयू पर तेजस्वी अब मजदूरों के साथ विश्वासघात करने का इल्जाम लगा रहे हैं।
आरजेडी का पोस्टर वीरचंद पटेल मार्ग के दफ्तर के बाहर, तेजस्वी ने खुद लगाया, जवाब में ये दिखाने के लिए कि राज्य के पहले नंबर की पार्टी आरजेडी, राज्य की दूसरे नंबर की पार्टी जेडीयू के सामने कहीं है ही नहीं..जवाबी पोस्टर अनाम शख्स की ओर से इनकमटैक्स गोलंबर और डाकबंगला जैसे शहर के सबसे अहम ठिकानों पर लगाया गया। इस पोस्टर में लालू प्रसाद, शहाबुद्दीन और राजबल्लभ यादव को थाली बजाते दिखाया गया है। पोस्टर पर लिखा है-
“कैदी बजा रहा थाली, जनता बजाओ ताली”.
पाटलिपुत्र के प्रांगण में अगर पोस्टर वॉर so yesterday था, तो अमित शाह की डिजीटल रैली back from the future का फील लेकर आई। करोडों के खर्च के पीछे ‘जनसंपर्क का संस्कार’ था जिसे कोरोना संकट में भी बीजेपी भूली नहीं है। बूथ स्तरीय कार्यकर्ताओं को लाइव भाषण सुनाने के लिए राज्य में 10,000 बड़ी एलईडी स्क्रीन और 50,000 से ज्यादा स्मार्ट टीवी लगाए गए थे। शाह ने ऐलान किया कि इस डिजीटल रैली का चुनाव से कोई संबंध नहीं है।
हम लालटेन राज से एलईडी युग में, लूट एंड ऑर्डर से लॉ एंड ऑर्डर, लाठी राज से कानून राज तक, जंगलराज से जनता राज तक, बाहुबल से विकास बल तक, चारा घोटाले से डीबीटी तक आए हैं।
कई मसले ऐसे थे जिन्हें 70 साल में किसी ने नहीं छुआ था लेकिन 5 अगस्त को मोदी सरकार ने आर्टिकल 370 और 35ए हटाकर कश्मीर को भारत का हिस्सा बना दिया. मोदी सरकार ने ट्रिपल तलाक बिल लाकर तीन तलाक को तलाक देने का काम किया है।
बिहार सरकार ने भी कोरोना पीड़ितों के लिए काम करने कोई कसर नहीं छोड़ी है। लगभग 21 लाख लाभार्थी के खाते में 210 करोड़ रुपये भेजा। राशन कार्ड धारियों के खाते में 1110 करोड़ रुपये भेजा। सामाजिक सुरक्षा पेंशनर के खाते में 1070 करोड़ भेजा। राज्य के बाहर फंसे भारतीयों के खाते में 203 करोड़ रुपये भेजा। जब तक कोरोना से युद्ध चल रहा है सेवा ही हमारा संगठन है। बिहार में चुनाव है। मुझे भरोसा है कि नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए की दो तिहाई बहुमत वाली सरकार बनेगी।
अमित शाह की ऑनलाइन रैली
इस तरह की गैर चुनावी… जनसंपर्क… के जरिए फेसबुक,ट्वीटर, यूट्यूब और टीवी चैनल्स पर करीब 39 लाख इम्प्रेशन का दावा किया गया है।
नीतीश प्रसन्न हैं, शाह ने बिहार का नेत़ृत्व उन्हें सौंपा है, वो शायद नहीं जानते यही गलतफहमी झारखंड में रघुवरदास को भी थी। सिवाय उनके, पार्टी में सबको पता था कि अगर अबकी सरकार बनी तो सीएम अर्जुन मुंडा बनेंगे। दास को पार्टी में अपनी हैसियत का एहसास चुनाव बाद तब हुआ जब बाकी नेताओं को सोफे पर बिठाया गया और उन्हें प्लास्टिक की कुरसी पर। नीतीश शायद भूल गए हैं, लेकिन बीजेपी को अतीत की कई घटनाएं याद हैं। चुनाव जैसे-जैसे करीब आएगा, अभी कई चिराग सामने आएंगे।
नेता पुराना होता जाता है, भाषा नई होती जाती है
पलकों के उठने-गिरने से दिन-रात होते हैं।
हथेली के ज़रा-से स्पर्श से गले में हवा के बड़े घूँट सूखने लगते हैं।
फिर (?)
फिर वे रहती तो ‘वही’ हैं,
पर वो ‘चार्म’ ख़त्म हो जाता।
स्निग्धता रोमांच नहीं पैदा करती।
लालसाएँ नए स्पर्श की बाट जोहने लगती हैं।
परिचित हो वे कितनी सुलभ हो उठती हैं।
( सुदीप्ति की कविता- प्रेमिकाएं-2- सौजन्य – सदानीरा )