बारुद के ढेर पर किसान आंदोलन
किसान आंदोलन ( #FarmersProtest ) को लेकर अमेरिका के वाशिंगटन में खालिस्तानी समर्थकों ने राष्ट्रपिता की मूर्ति का अनादर किया। कुछ दिन पहले इंगलैंड में भी किसान समर्थकों की रैली में खालिस्तान के समर्थन में झंडे लहराए गए थे। दिल्ली बार्डर पर किसानों के प्रदर्शन में भी खालिस्तान समर्थन के इक्का-दुक्का वाकये सामने आए थे। राष्ट्रीय सुरक्षा के मद्देनजर ये बड़ी चिंता का सबब है।
कृषि कानून को लेकर ये अकेली चिंता नहीं है।
विपक्ष इस कानून को रद्द करने की मांग को लेकर राष्ट्रपति को ज्ञापन सौंप चुका है
शिरोमणि अकाली दल के बाद हरियाणा मे दुष्यंत चौटाला पर भी सरकार से अलग होने के लिए किसानों का भारी दबाव है
इसी मामले में कनाडा के पीएम और ब्रिटेन के कई सांसदों का बयान सामने आ चुका है।
पच्चीस हजार सैनिक युद्ध में अदम्य वीरता के लिए मिले मेडल वापस कर रहे हैं
बिजेंदर सिंह सहित कई नामचीन खिलाड़ियों ने सरकारी अवार्ड वापसी का ऐलान किया है
किसान संगठनों की ओर से दायर अपील के बाद सुप्रीम कोर्ट इस कानून की जल्द ही समीक्षा करने वाला है
किसानों की जिंदगी बेहतर करने के संकल्प से लाया गया कानून किसानों को ही नागवार गुजर रहा है, उनका इल्जाम है कि सरकार कुछ बड़े घरानों को फायदा पहुंचाने के लिए ये कानून लाई है। नोटबंदी, देश बंदी, जीएसटी, सीएए…बीजेपी के बनाए कई कानूनों पर काफी विवाद रहा है, लेकिन कृषि कानून को लाते ही सरकार जिस तरह बेबस, लाचार नजर आने लगी है, वो बीते छह साल में पहले कभी नहीं लगा था। ये साफ है कि सरकार ने कानून लाने में जल्दबाजी की। ऐसी कोई आपदा नहीं थी जिसके लिए सरकार का अध्यादेश के जरिए कानून बनाना जरूरी था, इसके बाद इसे जिस तरह संसद में खास कर राज्यसभा में पारित कराया गया, वो संसदीय इतिहास का एक अध्याय ही बन गया। जिस तरह किसानों के साथ बातचीत में सरकार संशोधन का प्रस्ताव लेकर आई, उससे साफ हो गया कि इस कानून में कई ऐसी खामियां रह गई, जिससे कारोबारियों के दबाव में होने के किसानों के इल्जाम को बल मिला है।
किसान कानून में कई खामियां अब सामने आ गई हैं जिन्हें सरकार संशोधन से दूर करना चाहती है
- 1-एक देश एक बाजार के नाम पर सरकार ने दो मंडिया बना दीं। एक जो पहले से है, दूसरी नई मंडी जहां न रजिस्ट्रेशन की जरूरत है न टैक्स की चिंता, जहां होने वाले करार, कीमत, खरीद या लेन-देन की कोई जानकारी सरकार के पास नहीं होगी
- 2- पुरानी मंडियों में एमएसपी, नई मंडियों में बाजार तय करेगा अनाज की कीमत क्या हो?
- 3- कांट्रैक्ट को लेकर विवाद हुआ तो किसान के पास अदालत जाने का अख्तियार नहीं
- 4- कृषि उत्पादों का बाजार बनाना एक बात है, लेकिन इस नाम पर सरकार ने जमाखोरी को कानूनी मान्यता दे दी
जिस तरह टीवी चैनलों पर किसानों को अड़ियल, जिद्दी और सरकार विरोधी बना कर पेश किया गया है, उसने किसानों को और कड़ा रुख अख्तियार करने को बाध्य किया है। उन्हें लग रहा है कि सरकार के कहने पर मीडिया उन्हें देश के दुश्मन की तरह पेश कर रहा है। बात करने से बात बन सकती थी, लेकिन बातचीत के कामयाब होने के लिए जो भरोसा जरूरी है, वो किसानों को सरकार पर नहीं है।
27 सितंबर को राष्ट्रपति ने कृषि कानूनों को मंजूरी दी। सितंबर से नवंबर के बीच देश के सबसे बड़े रिटेलर रिलायंस रिटेल ने फंड रेजिंग कार्यवाही के तहत अपनी 10.09% इक्विटी Silver Lake Partners और General Atlantic जैसे नौ ग्लोबल इन्वेस्टर्स को बेच कर 47,265 करोड़ हासिल किए। इस तरह अब कंपनी का नेट वर्थ करीब पांच लाख करोड़ हो गया, जो 2015 में महज 16169 करोड़ था।
रिलायंस रिटेल का रिवेन्यू ( करोड़ में )
साल | राजस्व ( करोड़ में ) |
2015 | 16169 |
2016 | 18418 |
2017 | 26473 |
2018 | 51501 |
2019 | 130566 |
स्रोत:
हमारा मासूम मीडिया सोचता है –क्या किसान अखबार पढ़ते हैं? अगर पढ़ते भी हों तो क्या वो नेता-अफसर-कारपोरेट कनेक्शन की बारीकियां समझ सकते हैं?