नहीं रहे रघुवंश बाबू!

पूर्व केंद्रीय मंत्री (minister) रघुवंश प्रसाद सिंह (raghuvansh prasad singh) का रविवार की दोपहर निधन हो गया। कोरोना पॉजिटिव होने के बाद पहले उनका पटना के एम्स में इलाज किया गया, उसके बाद कुछ ठीक होने पर दिल्ली एम्स (aiims) ले जाया गया था। उनके फेफड़ों में संक्रमण था और दो दिन पहले उनकी हालत बिगड़ गई थी। संक्रमण बढ़ने और सांस लेने में परेशानी होने के बाद उन्हें वेंटिलेटर सपोर्ट पर रखा गया था। उनके निधन पर राष्ट्रपति समेत तमाम गणमान्य लोगों और नेताओं ने शोक जताया है।
पीएम ने भी जताया शोक
पूर्व केंद्रीय मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह (raghuvansh prasad singh) के निधन पर पीएम मोदी ने भी शोक जताया। उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए पीएम ने कहा – रघुवंश बाबू के निधन से बिहार और देश की राजनीति में शून्य पैदा हुआ है। गरीबी को समझने वाले और जमीन से जुड़े शख्स थे रघुवंश प्रसाद सिंह।
संकटमोचक कहे जाते थे रघुवंश (raghuvansh prasad singh) बाबू
रघुवंश प्रसाद सिंह (raghuvansh prasad singh) साल 1977 से लगातार सियासत में रहे। ये लालू प्रसाद यादव के बाद आरजेडी के सबसे प्रमुख नेता और केंद्र की मध्यमार्गी राजनीति के चर्चित चेहरों में से एक थे। वे लालू प्रसाद यादव के करीबी और उनके संकटमोचक माने जाते थे। पार्टी में उनका रुतबा ऐसा था कि उन्हें दूसरा लालू भी माना जाता था। वे लगातार चार बार वैशाली से सांसद रहे। यूपीए की सरकार में मंत्री भी रहे। विपक्ष में रहते हुए वे अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार को घेरने में सबसे आगे रहे।
राजद से हो गया था मोह भंग
लालू प्रसाद के साथ उनके घने रिश्तों की डोर को लालू प्रसाद यादव के दोनों बेटों की राजनीतिक अपरिपक्वता ने तोड़ दिया था। उनके व्यवहार से मर्माहत और क्षुब्ध रघुवंश प्रसाद सिंह (raghuvansh prasad singh) ने हाल ही में लालू प्रसाद यादव को एक चिट्ठी लिखकर 32 साल पुराना रिश्ता तोड़ने का ऐलान कर दिया था। इसके जबाव में लालू ने उनसे कहा था -“आप कहीं नहीं जाएंगे।” लेकिन वक्त ने लालू प्रसाद के इस आग्रह को पूरा होने का मौका नहीं दिया।
रघुवंश प्रसाद सिंह (raghuvansh prasad singh) ने गुरुवार को ही आरजेडी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दिया था और उसके बाद लालू प्रसाद के चिर प्रतिद्वंद्वी एवं बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को खुला पत्र लिखा था जिससे उनके भावी कदमों को लेकर अटकलों का बाजार भी गर्म हो गया। अच्छे और बुरे दोनों ही दौर में आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के साथ चट्टान की तरह खड़े रहने वाले रघुवंश प्रसाद सिंह (raghuvansh prasad singh) की कुछ महीने पहले पार्टी से तब अनबन हो गयी जब, बाहुबली नेता और वैशाली लोकसभा क्षेत्र में उनके प्रतिद्वंद्वी रमा सिंह के आरजेडी में शामिल होने की चर्चा चलने लगी। इसके विरोध में उन्होंने उपाध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। वैसे उन्होंने राजद की प्राथमिक सदस्यता तो नहीं छोड़ी लेकिन वह पार्टी के रोजमर्रा के कामकाज से दूर रहने लगे। रघुवंश बाबू के विरोध के चलते ही इस पर फैसला टाल दिया गया था।

व्यक्तित्व और जीवन
गोयनका कॉलेज में गणित पढ़ाने वाले रघुवंश प्रसाद सिंह ने ही 1974 में बिहार के सीतामढ़ी में छात्रों के आंदोलन को धार देने का काम किया था। जून 1977 में हुए विधानसभा चुनाव में रघुवंश प्रसाद सिंह सीतामढ़ी की बेलसंड सीट से निर्वाचित हुए। उनकी जीत का सिलसिला 1985 तक चलता रहा। 1996 के लोकसभा चुनाव में लालू यादव के कहने पर वैशाली से लोकसभा चुनाव लड़ गए और जीतने में कामयाब रहे। 1999 में जब लालू प्रसाद यादव हार गए तो रघुवंश प्रसाद को दिल्ली में राष्ट्रीय जनता दल के संसदीय दल का अध्यक्ष बनाया गया था।
रघुवंश बाबू मिलनसार, सीधे-सादे, सरल और विनोदी स्वभाव के ज़मीनी नेता थे। जनसेवक, उच्च शिक्षित, लेकिन ठेठ बिहारी देशी भाषा और ईमानदार राजनेता..शुरुआत से ही यही उनकी छवि रही। बतौर ग्रामीण विकास मंत्री रघुवंश प्रसाद की “मनरेगा” जो आज भी ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ है, की रूपरेखा तय करने में उनका योगदान हमेशा याद रखा जाएगा।