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कितनी जिंदगियां हुई ‘लॉकडाउन’?

जरुर पढ़ें बड़ी खबर संपादकीय

कितनी जिंदगियां हुई ‘लॉकडाउन’?

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झारखंड सरकार ने देश भर में लॉकडॉउन में फंसे झारखंड वासियों के आंकड़े जारी किए हैं।

श्रम विभाग को टोल फ्री नंबर पर मदद के लिए आए कॉल – 33,155

इन कॉल्स के जरिए जिन लोगों के लॉकडाउन में फंसे होने की सूचना आई    9,50,539

इनमें मजदूरों कितने हैं   6,41,205

देश भर में कितने ठिकानों पर फंसे हैं झारखंड वासी 14,207

कितने ठिकानों पर सिर्फ झारखंड के मजदूर फंसे हैं 13,731

अगर हम थोड़ी देर के लिए मान लें कि झारखंड एक छोटा भारत है तो ये आंकड़े हमें क्या बताते हैं। झारखंड में देश की कुल आबादी में से 2.5% लोग रहते हैं। झारखंड के जरिए अगर हम देश भर में लॉकडाउन की परेशानी का अनुमान लगाते हैं तो हर आंकड़े को 40 से गुना करना होगा।

अब लॉकडाउन को लेकर क्या तस्वीर सामने आती है वो देखिए

देश भर में मदद के लिए गुहार लगाते लोग – 33155x 40        = 13,26200 ( लगभग 13 लाख)

 लॉकडाउन में फंसे  लोग –    9,50,539×40=3,80,21,560  ( लगभग 3.8 करोड़)

देश में कुल कितने मजदूर मुसीबत में   6,41,205×40= 2,56,48,200 ( लगभग 2.5 करोड़)

देश भर में कितने ठिकानों पर फंसे अलग-अलग राज्यों के लोग = 14207×40= 5,68,280 ( लगभग 5.7 लाख ठिकाने)

देश भर में कितने ठिकानों पर सिर्फ मजदूर फंसे हैं 13,731×40= 5,49,240( लगभग 5.5 लाख ठिकाने)

अब ये समझने की कोशिश करते हैं कि झारखंड का आंकड़ा सारे देश के लिए किस हद तक सही साबित हो सकता है।

1986-87 में देश में बढ़ती आबादी के संकट को लेकर प्रधानमंत्री राजीव गांधी को भेजे एक पेज की अपनी रपट में आशीष बोस ने  BIMARU राज्यों की अवधारणा दी थी। बिहार     ( इसमें झारखंड भी शामिल करें), मध्यप्रदेश, राजस्थान और यूपी में देश की कुल आबादी का 42% और गरीबों का 50% से ज्यादा हिस्सा रहता है। मुंबई, अहमदाबाद, सूरत, दिल्ली और नोएडा से जिन लोगों के पलायन की बात सामने आई, उनमें से अधिकतर मामले इन्हीं राज्यों से आए हैं। सैकड़ों किमी पैदल चल कर घर पहुंचने से पहले दम तोड़ने वालों में करीब-करीब सारे मामले इन्हीं राज्यों से जुड़े हैं। रास्ते में ये कितनी बार थक कर निढाल हुए होंगे, लेकिन किसी ने न रोटी दी न आसरा । ट्वीटर और फेसबुक पर हम जितना नजर आते हैं असलियत में, उससे हम  कहीं ज्यादा बेरहम हैं।

बीमारू राज्यों के हिसाब से अगर इन आंकड़ों का मिलान किया जाए और कुल आंकड़ों का  40% निकालें तो जो तस्वीर बनती है वो ये कि लॉकडाउन की वजह से देश में कम से कम  1.58 करोड़ लोग बहुत बड़ी मुसीबत में आ गए हैं, इनमें 1 करोड़ तो दिहाड़ी मजदूर ही हैं।

हो सकता है कि प्रभावित लोगों की तादाद इससे काफी कम हो। झारखंड सरकार ने जिस तरह आंकड़े जारी किए हैं, उसी तरह देश की और राज्य सरकारें भी कर रही होंगी। अगर उन सभी आंकड़ों को मिलाया जाए तो जरूर मुसीबतजदा लोगों की तादाद को लेकर  साफ तस्वीर उभर कर सामने आएगी। सवाल है ICMR जिस तरह रोज देश भर में कोरोना जांच  के आंकड़े जारी करता है,क्या हमारा श्रम मंत्रालय उस तरह लॉकडाउन में फंसे लोगों के कुल आंकड़े इकट्ठा नहीं कर सकता ?

झारखंड जो देश के 28 राज्यों में प्रति व्यकित आय के मामले में 26वें नंबर पर है, आज अपने सीमित संसाधनों से राहत कैम्पों में 2,47,662 प्रवासी मजदूरों को खाना खिला रहा है। यहां स्वंयेसवी संस्थाओं की टीमें 38,73,332 लोगों को खाना खिला रही हैं। इससे लॉकडाउन की भयावहता का पता चलता है।

एक ओर अपने गांव जाने की जिद ठाने लाखों लोग हैं, दूसरी तरफ तमाम कोशिशों के बावजूद हर जरूरतमंद की मदद कर पाने में असहाय महसूस कर रही राज्य सरकारें हैं और इन्हें कोरोना कैरियर करार दे चुका देश का मीडिया है। कोरोना ने समाज में एक नया अछूत पैदा किया है। इस पर चिंतन करें न करें, चिंता तो कीजिए। नहीं तो जितनी जानें कोरोना लेगा, उससे कहीं ज्यादा लोग लॉकडाउन से अपनी जान गंवा बैठेंगे।

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