चीन के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक!

चीन (china) भले ही इस बात को ना माने, लेकिन ये बात बिल्कुल साफ है कि पैंगोंग झील (Pangong Lake) इलाके में भारत ने चीन (china) को पहली बार सामरिक तौर पर नुकसान पहुंचाया है और इस वजह से वो तिलमिलाया हुआ है। लेकिन क्या आप 29-30 अगस्त की रात की पूरी कहानी जानते हैं, जब भारतीय सेना ने पैंगोंग झील (Pangong Lake) के दक्षिणी हिस्से में मौजूद एक अहम चोटी ब्लैट टॉप पर कब्जा कर लिया और चीन के उसे दुबारा हासिल करने के तमाम प्रयासों को नाकाम कर दिया? चीन के खिलाफ इस सर्जिकल स्ट्राइक की कहानी…ना सिर्फ भारतीय सेना की ताकत बयान करती है, बल्कि एक देश के रुप में भारत की बदलती सोच की भी कहानी बयान करती है।

कब शुरु हुई प्लानिंग?
इस कहानी शुरुआत होती है…3 जुलाई से, जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अचानक लेह दौरे पर पहुंचे। इनके साथ आर्मी चीफ नरवाने भी मौजूद थे। 14-15 जून को गलवान में हुई झड़प के बाद सभी के मन में चीन को लेकर आशंका बढ़ गई थी, और इस ताकतवर दुश्मन के खिलाफ क्या रणनीति हो, इसे लेकर सैन्य अधिकारियों में अनिश्चितता थी।
यहां प्रधानमंत्री ने नॉदर्न कमांड के चीफ ले.जनरल वाई.के.जोशी और 14 कॉर्प्स के चीफ लेफ्टिनेंट जनरल हरिंदर सिंह से मुलाकात की और सीमा पर ताज़ा हालात की जानकारी ली। इन्हीं दोनों पर लद्दाख क्षेत्र की सुरक्षा के लिए रणनीतिक और ऑपरेशनल कमांड की जिम्मेदारी थी। इस ब्रीफिंग में सैन्य अधिकारियों ने उन्हें बताया कि किस तरह चीनी सेना काफी आक्रामक रुख अपनाये हुए है। उन्होंने 4th मोटराइज्ड 6th मैकेनाइज्ड डिवीजन के करीब 20 हजार सैनिक तैनात कर दिये हैं, और हल्के तोपों , रॉकेट और हैवी आर्टिलरी से लैस हैं। भारत को इस तरह के आक्रामक रवैये की उम्मीद नहीं थी।
सैन्य अधिकारियों के बातचीत के बाद यहां प्रधानमंत्री ने 17 कॉर्प्स के सैनिकों को संबोधित किया – “अपनी सीमाओं की सुरक्षा का हमारा इरादा और समर्थन….हिमालय की तरह ऊंचा और अडिग है। हम सदियों से अपनी इन्हीं सीमाओं की रक्षा के लिए लड़ते रहे हैं। यही हमारी पहचान है। अगर हम बांसुरी बजानेवाले मुरलीधर की पूजा करते हैं, तो सुदर्शन चक्रधारी श्रीकृष्ण भी हमारे आदर्श हैं। ” ये वही सैनिक थे, जिन्हें हाल ही में देश की पहली माउंटेन स्ट्राइक कॉर्प्स के तौर पर शामिल किया गया था। वहां मौजूद सेना के उच्च अधिकारियों को भी ये समझने में देर नहीं लगी कि अब इतिहास बदलने का वक्त आ गया है। इसी दिन से सेना का मूड और तरीका बदल गया।

क्या थी चीन की रणनीति?
1962 की हार के बाद से ही भारतीय सेना की रणनीति सुरक्षात्मक रही थी। जब भी चीनी सैनिकों के आगे बढ़ने का पता चलता, वहां और सैनिक भेजे जाते और उनको वहीं तक रोक कर शांति बनाये रखे जाने पर जोर दिया जाता था। लेकिन चीन के साथ लगती 3000 किमी से भी लंबी सीमा पर…हर जगह निगरानी करना संभव नहीं था। चाहे कितनी भी सेना भेजी जाए, हमेशा कम पड़ती थी। चीन भारत से इसी सुरक्षात्मक रवैये का फायदा उठाता रहा और दोनों देशों के बीच तय सीमांकन के अभाव में आगे बढ़ता रहा।
चीनी सैनिक अक्सर किसी सेक्टर में गश्त लगाने के बहाने कुछ किलोमीटर अंदर चले आते और फिर विवाद बढ़ने पर थोड़ा पीछे हटकर जम जाते। ये घटनाएं किसी एक-दो साल तक सीमित नहीं थी, बल्कि हर साल… तिब्बत से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक किसी ना किसी सेक्टर में ये होता रहता था। चार कदम बढ़ने और फिर दो कदम पीछे हटने की इस रणनीति के जरिए उन्होंने पिछले पांच दशकों में सैकड़ों किलोमीटर भारतीय क्षेत्र पर कब्जा जमा लिया। सेना की भाषा में इसे सलामी स्लाइसिंग टैक्टिक्स (salami slicing tactics) कहते हैं।

पहले भी सेना दिखा चुकी है ताकत
अब सेना पैसिव डिफेंस के बजाए एक्टिव डिफेंस… और बाद में ऑफेंस के मूड में आ गई थी। इससे पहले भी जून 2017 में हुए डोकलाम विवाद में सेना ने अपनी ताकत दिखाई थी और राजनीतिक तौर पर उन्हें पूरा सपोर्ट मिला था। डोकलाम में भारतीय सेना ने तेजी से कार्रवाई करते हुए चीनी सैनिकों को आगे बढ़ने का मौका ही नहीं दिया और किसी भी सूरत में एक इंच भी पीछे हटने को तैयार नहीं हुए। आखिर में ड्रैगन को अपने कदम वापस खींचने पड़े। उस समय जनरल विपिन रावत आर्मी चीफ थे, जो अभी भारत के पहले चीफ ऑफ ऑर्मी स्टाफ (CDS) हैं। चीन के साथ विवाद में पहली बार भारतीय सेना को पीछे हटने को नहीं कहा गया और इससे सेना का मनोबल बहुत बढ़ गया।

पहले सुरक्षा पर दिया ध्यान
मौजूदा विवाद में आर्मी चीफ जेनरल मनोज मुकुंद नरवाणे के नेतृत्व में आगे की कार्रवाई की योजना बनाई गई। इनका चीन के साथ रहा लंबा अनुभव भी काम आया। सबसे पहले पूरी सीमा पर सैनिकों की संख्या बढ़ाई गई और तिब्बत से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक अतिरिक्त डिवीजन पहुंच गई, ताकि युद्ध की स्थिति में हर मोर्चे पर सेना मुकाबले की स्थिति में रहे। वायु सेना से लगातार गश्त लगानी शुरु कर दी और जून के अंत तक जमीन से जमीन पर मार करनेवाले ब्रम्होस मिसाइल भी तैनात कर दिये गये। एयरफोर्स के C-17 हेलिकॉप्टरों की मदद से युद्ध के भारी साजो-सामान सीमा पर पहुंचाए गये। समुद्र में भी गश्त बढ़ा दी गई और हिंद महासागर में चीनी युद्धपोतों की आवाजाही पर कड़ी नजर रखी जाने लगी। अब सेना चीन के किसी भी आक्रमण का मुंहतोड़ जवाब देने को तैयार थी।

अब अटैक की प्लानिंग
अगस्त तक GOC 17 Corps की पूरी डिवीजन लद्दाख पहुंच चुकी थी और एक महीने में वे माहौल के हिसाब से ढल चुके थे। दुश्मन की सीमा में अंदर तक घुसने और वार करने में सक्षम इस नई माउंटेन डिवीजन की ऑपरेशनल कमांड लेफ्टिनेंट जनरल सवनीत सिंह (Sawneet Singh) को सौंपी गई। जल्द ही ये सैनिक सीमा पर टोह लेने के लिए निकलने लगे और जानकारी जुटानी शुरु कर दी। उधर चीन के उच्चाधिकारियों के साथ बातचीत जारी थी और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चीन पर पीछे हटने के लिए कूटनीतिक दबाव डालने का प्रयास भी लगातार चल रहा था।
24 अगस्त तक इस डिविजन के कमांडरों ने रणनीतिक चोटियां की पहचान, घुसपैठ का प्लान, इसके रास्ते की मैपिंग और लगने वाले समय का पूरा खाका तैयार कर लिया। फाइनल प्लानिंग में स्पांगुर गैप के इलाके पर सहमति बनी। पैंगोंग झील के दक्षिण और चुशूल के पूर्व का ये इलाका रणनीतिक तौर पर काफी फायदेमंद था। इसमें ब्लैक टॉप, हेलमेट, मगर और गुरुंग पहाड़ियां शामिल थे, जो रेजंग-ला तक फैले हुए हैं। माउंटेन डिवीजन और स्पेशल फ्रंटियर फोर्स को इन पहाडियों पर कब्जे के लिए 120 मिनट का समय दिया गया।
ग्रीन सिग्नल मिलते ही रात के अंधेरे में ये डिविजन इतनी तेजी और चुपके से आगे बढ़ी कि इन्होंने दो घंटे के नियत समय से पहले ही अपना लक्ष्य हासिल कर लिया। जब सुबह का सूरज निकला तो हमारे 2000 से ज्यादा सैनिक इन चोटियों पर कब्जा जमाये बैठे थे। इनके पास फ्रेंच मिलान एंटी-टैंक मिसाइल और कार्ल गुस्ताव रॉकेट लॉन्चर भी थे। इसके अलावा आर्टिलरी एवं वायु सेना समेत पूरी सेना एलर्ट मोड में थी।

भौंचक्का रह गया चीन!
नीचे स्पांगुर घाटी में मोल्डो के पास चीनी सेना की मैकेनाइज्ड कॉम्बैट टीम T-15 टैंक और भारी सैनिक साजो-सामान के साथ मौजूद थी। सुबह जब उन्होंने खुद को चारों तरफ से घिरा पाया तो उनके होश उड़ गये। गुस्से में पहले तो उन्होंने लाठी-डंडे से लैस जवानों को भेजा, लेकिन भारतीय सैनिकों ने जब हवा में वार्निंग शॉट्स दागे, तो वो उल्टे पांव वापस लौट गये। इसके बाद सड़कों से उनकी आर्मर्ड डिविजन मोल्डो से रेजांग-ला की ओर बढ़ने लगी। लेकिन ये भी रुक गये जब उन्हे पता चला कि भारतीय सैनिकों के पास एंटी टैंक मिसाइल और रॉकेट-लॉन्चर भी हैं। जल्द ही उन्हें समझ में आ गये कि उस घाटी में अब भारतीय सैनिकों की नजर में आये बिना वो एक पत्ता भी नहीं हिला सकते। उनका माल्डो का पूरा डिविजन भारतीय सैनिकों के सीधे निशाने पर है। ऐसे में कोई भी आक्रामक कदम आत्मघाती हो सकता है।

इस कदम से क्या बदला?
चीनी सैनिकों को सपने में भी उम्मीद नहीं थी कि भारतीय सेना ऐसा कदम उठा सकती है। इसके बाद से उनके सुर बदल गये हैं। चीनी रक्षा मंत्री ने खुद भारतीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से मुलाकात की इच्छा जताई। मॉस्को में विदेश मंत्री स्तर की बातचीत के लिए भी प्रयास चल रहे हैं। उधर, चीन में पैंगोंग झील के दक्षिणी किनारे पर नए सैनिक और टैंक तैनात किए गए हैं। लेकिन पिछले 50 सालों बाद भारत ने चीन को उसी की भाषा में जवाब दिया है, और अब उसे कोई भी कदम उठाने से पहले गंभीरता से सोचना होगा।