गलवान में चीनी घुसपैठ की Inside story
गलवान घाटी में ताजा चीनी घुसपैठ को लेकर कुछ बेहद अहम सवाल हैं
- चीन ने इस घुसपैठ का फैसला कब किया ?
- वो कौन घटना थी जिसके बाद चीन ने ये फैसला किया ?
- गलवान में ताजा घुसपैठ का मकसद क्या था ?
2020 के गलवान घुसपैठ की साजिश 2012 में रची गई
चीनी मीडिया में हाल के दिनों में कई चौंकाने वाली जानकारी सामने आई है। इनसे ये पता चलता है कि गलवान घाटी में चीनी सेना की घुसपैठ की योजना चीन की 8 साल पुरानी साजिश का हिस्सा है, जिसके तहत पहले 2013 में एक पायलट प्रोजेक्ट की तरह लद्दाख में चीनी सेना ने घुसपैठ की। 2012 में शी जिनपिंग चीन की कम्यूनिस्ट पार्टी के महासचिव बने। इस पद के हासिल करते ही वो सेंट्रल मिलिटरी कमीशन के अध्यक्ष भी बन गए। अगले साल, शी चीन के प्रेसीडेंट बन गए। सेंट्रल मिलिटरी कमीशन की मंजूरी से साल भर की तैयारी के बाद 2013 में चीनी सेना ने घुसपैठ कर डेपसांग में भारतीय सेना के पांच पेट्रोल प्वाइंट 10, 11, 11A, 12 और 13 तक जाने का रास्ता रोक दिया।
कोलकाता में चीन के पूर्व काउन्सल जनरल Mao Siwei ने इसी साल एक लेख में लिखा
“The so-called LAC is just a concept and there is no such thing as a mutually agreed, impassable border line on the ground, in maps or in the mind,”
Mao Siwei
2013 में जब भारत और चीन के बीच LAC को लेकर पांचवां और आखिरी करार हुआ, तब चीन ने provision for respecting and observing the LAC का करार में लिखा जाना नामंजूर कर दिया। जबकि 1988 से अब तक हुए चारों करार में ये करार के सबसे अहम बिन्दुओं में से एक था। दरअसल चीन भारत से सीमा पर किसी आखिरी करार के पक्ष में नहीं था।
China Program at the Stimson Center की डायरेक्टर yun sun कहती हैं
China was in no hurry to resolve the border dispute because it could be used as the “leverage to bog down India in the region and undermine its global potential”,
Yun Sun, Director,China Program at the Stimson Center
गलवान घुसपैठ का ट्रिगर क्या था ?
चार साल बाद और ज्यादा तैयारी के साथ चीनी सेना ने डोकलाम में घुसपैठ की। चीनी सैनिक यहां सड़क बनाने लगे। डोकलाम भूटान का हिस्सा है। चीनियों का मकसद भूटान पर भारत से अलग होकर चीन से रिश्ते बनाने के लिए दबाव डालने का था। लेकिन वो तब हैरान रह गए, जब भारतीय सेना ने उन्हें 16 जून 2017 को सड़क बनाने से रोक दिया। 73 दिन की तनातनी के बाद चीनी सेना पीछे हट गई। चीनी रणनीतिकार डोकलाम विवाद को गलवान घाटी में ताजा घुसपैठ का ट्रिगर मानते हैं। ब्रिक्स समिट को कामयाब बनाने के लिए शी झुक तो गए, लेकिन चीन ने इसके बाद से भारत के साथ लगी सरहद पर युद्ध स्तर पर बॉर्डर कनेक्टिविटी का काम शुरू कर दिया। इस घटना के तीन महीने बाद अमेरिका ने नई Indo-Pacific Strategy को दुनिया के सामने रखा। इसके तहत समूचे प्रशांत महासागर में भारत को एक जिम्मेदार ताकत की भूमिका दी गई। चीन अमेरिका के इस कदम से बौखला गया। गलवान में ताजा चीनी घुसपैठ का ये दूसरा ट्रिगर था।
गलवान घुसपैठ की तीसरी वजह
Lin Minwang जो Fudan University’s Center for South Asian Studies में research fellow हैं। उन्होंने इसकी वजह बताई है RCEP में शामिल होने से भारत का इनकार।
स्रोत :-https://www.globaltimes.cn/content/1193813.shtml
चीन ने भारत के बाजार पर पकड़ बनाने के मकसद से कंबोडिया, इंडोनेशिया,लाओस, म्यांमार, फिलीपीन्स, थाइलैंड और वियतनाम में भारी निवेश किया है। लेकिन जब भारत ने RCEP में शामिल होने से ये कह कर इनकार कर दिया कि चीन के साथ उसका सीमा विवाद है, लिहाजा वो ऐसे किसी फ्री ट्रेड एग्रीमेंट को मंजूर नहीं कर सकता, जिसमें चीन भी शामिल हो, तो इससे चीन चिढ़ गया।
गलवान घुसपैठ का मकसद क्या था ?
चीनी रणनीतिकार युन सुन का मानना है कि 1962 की तरह एक बार फिर गलवान घाटी में चीन की घुसपैठ खास मकसद से है। चीन चाहता है कि भारतीय जनमानस को ये कभी भूलने नहीं दिया जाए कि वो 1962 में चीन से हार गए थे।
“Tactically, China appears to be aiming for what it achieved in the 1962 war … and believes it needs to stand up to India whatever the cost,”
Yun Sun, Director Stimson Center
चीन की सरकार बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव पर भारत के विरोध और अमेरिका से उसके करीबी रिश्ते को लेकर एक संदेश देना चाहती थी – “teach India another lesson”
चीनी घुसपैठ की सैद्धांतिक वजह Thucydides Trap
Harvard के professor Graham Allison द्वारा दिए इस सिद्धांत में कहा गया है कि जब एक सुपरपावर के खिलाफ कोई देश चुनौती के तौर पर उभरता है तो उन दोनों के बीच सैनिक तनाव जरूर उभरता है।
Ocean University of China के प्रोफेसर Pang Zhongying का मानना है कि-
2005 में अमेरिका से अलायंस के बाद जिस तरह भारत ने तेज रफ्तार में तरक्की की है, उससे एशिया में वो शक्ति संतुलन खत्म हो गया, जो साउथ एशिया के ताकतवर देश भारत के सामने पाकिस्तान को रख कर चीन ने बनाया था। अब भारत साउथ एशियन पावर न रह कर एशियन पावर बन चुका है, ये वो स्थिति है जो चीन को मंजूर नहीं है।
चीनी फौज वापस क्यों हो गई
चीनी लेखक Shi Jiangtao का मानना है कि दूसरा देंग बनने की चाहत में शी ने बहुत सारे देशों के साथ मोर्चे तो खोल दिए लेकिन चीन की सरकार भी ये जानती है कि ऐसे वक्त में जबकि कोरोना को लेकर सारी दुनिया में चीन को लेकर नाराजगी है, चीन अभी युद्ध के लिए तैयार नहीं है।
स्रोत:-https://www.scmp.com/news/china/diplomacy/article/3091844/did-china-miscalculate-rise-india
Observers generally say that it would be nightmarish scenario for Beijing to ratchet up tensions and further alienate New Delhi in the face of worsening ties with Washington and the biggest international backlash in decades over China’s diplomatic overreach- and its culpability in the coronavirus pandemic
वहीं युन सुन भी मानती हैं कि चीन अभी एक साथ अमेरिका से समंदर में और भारत से जमीन पर किसी जंग का जोखिम नहीं ले सकता।
For China, the prospect of facing the American military at sea and the Indian military along its southern border and in the Indian Ocean becomes much more real and dangerous with defence cooperation between the US and India,”
Yun Sun, Director Stimson Center
अभी भी लद्दाख में चीन की सेना फिंगर फोर पर मौजूद है। घुसपैठ से पहले वो आठ किलोमीटर दूर फिंगर 8 पर रहती थी। चीन की साजिश नाकाम रही है, लेकिन उसकी योजना अब भी जारी है।