Type to search

कांग्रेस ही तो नहीं है ‘अमरबेल’?

बड़ी खबर बिहार चुनाव राज्य संपादकीय

कांग्रेस ही तो नहीं है ‘अमरबेल’?

Alliance with congress seems disastrous for allies
Share on:

बिहार विधानसभा चुनाव में परिणामों के आने के बाद से ही इस बात पर बहस जारी है कि तेजस्वी यादव की जीत का रथ किसने रोका? कुछ विशेषज्ञ इसके लिए चिराग पासवान को दोषी ठहरा रहे हैं, तो कुछ लोग AIMIM को। लेकिन कोई ये बात सीधे तौर पर नहीं कह रहा है कि दरअसल कांग्रेस (Congress) के अड़ियल रवैये और फिसड्डी प्रदर्शन की वजह से तेजस्वी यादव की साफ दिखती जीत…हार में बदल गई।

कांग्रेस (Congress) का फिसड्डी प्रदर्शन

बिहार में कांग्रेस ने 70 सीटों पर चुनाव लड़ा था, लेकिन किसी तरह केवल 19 सीटों पर जीत हासिल कर पाई, जबकि आरजेडी ने 144 सीटों पर चुनाव लड़ा और 75 सीटें जीत लीं। आंकड़ों के आधार पर तुलना करें, तो कांग्रेस की जीत का प्रतिशत 27.1 रहा, जबकि आरजेडी के जीत का प्रतिशत 52.8 रहा। राहुल-सोनिया के तमाम प्रयासों और उम्मीदों के बावजूद, कांग्रेस अपना पिछला प्रदर्शन भी दुहरा नहीं पाई। 2015 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 27 सीटों पर जीत दर्ज की थी, जबकि वह केवल 40 सीटों पर ही चुनाव लड़ी थी।

हालात इतने बुरे थे कि महागठबंधन के दूसरे छुटभैया पार्टियों ने भी कांग्रेस से बेहतर प्रदर्शन किया। बिहार की राजनीति से लगभग बाहर चुके वामदलों ने भी 29 सीटों पर चुनाव लड़ कर 16 सीटें जीतकर शानदार प्रदर्शन किया। यहां तक कि गठजोड़ का हिस्‍सा रही CPI-ML ने भी 19 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे और 12 सीटें जीत लीं। ऐसी स्थिति में कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टी के लिए ये शर्मनाक प्रदर्शन है।

क्यों फिसड्डी साबित हुई कांग्रेस?

कांग्रेस (Congress) के कमजोर प्रदर्शन को लेकर, उनकी अपनी ही पार्टी में असंतोष के लक्षण दिखने लगे हैं। बिहार चुनाव को लेकर कांग्रेस ने कई ऐसी गलतियां की, जिन्हें सिर्फ रणनीतिक चूक कहना गलत होगा। इसके पीछे कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं की मानसिकता, बिहार की राजनीति की समझ ना रखना और प्रचार में लापरवाही जैसे गंभीर कारण हैं।

  • बिहार में कांग्रेस (Congress) को पिछली बार भी 30 से कम सीटें मिली थीं। बिहार में ना तो कोई उनका लोकप्रिय नेता है और ना ही मजबूत संगठन। फिर भी महागठबंधन की बैठक में 70 सीटों की मांग रखना, किसी भी तरह उचित नहीं था।
  • तेजस्वी जानते थे कि प्रदेश में कांग्रेस का वजूद लगभग खत्म होने की स्थिति में है और वो उन्हें ज्यादा सीटें देना नहीं चाहते थे। लेकिन सोनिया गांधी की दखल के बाद उन्हें कांग्रेस की ये बेबुनियाद मांग माननी पड़ी।
  • कांग्रेस के असंतुष्ट वर्ग का आरोप है कि जमीनी स्तर के लोगों को प्रचार से बाहर रखा गया, जबकि दिल्ली से आए अक्षम लोगों को चुनाव की बागडोर सौंप दी गई। नतीजे बताते हैं कि उनके आरोप गलत नहीं थे।
  • कांग्रेस (Congress) के दिग्गज नेताओं अखिलेश सिंह और सदानंद सिंह पर पैसे लेकर टिकट बांटने के आरोप लगे। कांग्रेस नेताओं पर ऐसे आरोप भी लगे कि उसने कई जगहों पर कमजोर उम्मीदवारों को टिकट दिया, जिसके कारण एनडीए की जीत आसान हो गई।
  • पार्टी के एकमात्र वरिष्‍ठ नेता जिसने बिहार में प्रचार किया, वह राहुल गांधी रहे। इन्होंने भी कुछ खुदरा अभियान किये और फिर निश्चिंत होकर बैठ गये। इनका अपनी पार्टी के उम्मीदवारों के लिए भी तेजस्वी यादव या पीएम मोदी जैसा सघन चुनाव अभियान नहीं रहा।
  • सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी बिहार चुनाव से दूर ही रहीं, और एक्ज़िट पोल में जीत के दावों के बाद ही सक्रिय हुईं।
  • राहुल गांधी का प्रचार अभियान भी पूरी तरह से पीएम नरेंद्र मोदी के खिलाफ निजी हमला करने पर फोकस रहा। दूसरी तरफ तेजस्वी यादव ने स्थानीय मुद्दों जैसे रोजगार और सीएम के भ्रष्टाचार पर ज्यादा निशाना साधा।
  • कांग्रेस के स्थानीय नेताओं के मुताबिक चुनाव प्रचार के दौरान भी कांग्रेस और आरजेडी में तालमेल का अभाव दिखा। अगर तालमेल बेहतर होता, तो नतीजे काफी बेहतर हो सकते थे।

फर्क तो दिखता है!

बिहार ही नहीं, 11 राज्यों के उपचुनावों में बीजेपी फिर एक बार मजबूती के साथ उभरी है। इसकी एक वजह पार्टी की कार्य-संस्कृति और नेताओं का रवैया भी है। बिहार में जीत के बाद भी पीएम मोदी समेत बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व ने समीक्षा बैठक की और बंगाल चुनाव के लिए भी तैयारी शुरु कर दी । उधर, हारने के बाद तेजस्वी कोप भवन में चले गये और राहुल छुट्टी मनाने। प्रियंका ने तो चुनाव प्रचार के दौरान भी बिहार की तरफ झांकना भी जरूरी नहीं समझा। कांग्रेस (Congress) को समझना होगा कि इस तरह की राजनीति से काम नहीं चलेगा और पार्ट-टाइम पॉलिटिक्स से उन्हें कुछ भी हासिल नहीं होनेवाला है।

कहीं खुद ‘अमरबेल’ तो नहीं है कांग्रेस?

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह (Digvijaya Singh) ने ट्वीट कर कहा, ‘भाजपा/संघ अमरबेल के समान हैं। अमरबेल जिस पेड़ पर लिपट जाती है, वह पेड़ सूख जाता है और वह पनप जाती है।’ लेकिन बिहार के मामले में तो यही दिखा कि कांग्रेस की वजह से ही तेजस्वी यादव के अरमानों पर पानी फिर गया। अब दूसरे राज्यों में भी पार्टियां कांग्रेस के साथ गठबंधन को लेकर आशंकित हैं। अगर कांग्रेस के नेताओं ने जल्द ही अनुशासन और समर्पण का सबक नहीं सीखा, तो कहीं ऐसा ना हो कि सभी क्षेत्रीय पार्टियां कांग्रेस को बोझ समझने लगें।

इस बीच, हार के कारणों पर विश्लेषण के बजाय कांग्रेस (Congress) ने नीतीश कुमार पर डोरे डालने शुरु कर दिये हैं। कांग्रेस नेताओं ने नीतीश को बीजेपी का साथ छोड़ने और तेजस्वी को आशीर्वाद देने की सलाह दी है। बेहतर नहीं होता कि दिग्विजय सिंह…नीतीश कुमार को महात्मा गांधी और जेपी की याद दिलाने के बजाय अपने नेताओं को समझाते कि पहले अपना दामन देखें और कमियां दूर करें, फिर किसी और का…?

Shailendra

Share on:
Tags:

You Might also Like

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *