रेलवे का सिनेमा, BSNL की पटकथा
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रेलवे के कर्मचारी निजीकरण के खिलाफ आंदोलन करने को तैयार हैं और रेल मंत्री कह रहे हैं कि निजीकरण का तो सवाल ही नहीं है। आप चाहें तो इसे स्वच्छता पर जोर देने वाली सरकार की सफाई मान सकते हैं।
जिसे भोली जनता बैकडोर से प्राइवेटाइजेशन समझ रही है, दरअसल वो सरकार का विश्वस्तरीय सेवा का संकल्प है, इससे निवेश बढ़ेगा, निर्यात बढ़ेगा, आधुनिक ट्रेन बनेंगे।

आपको बस ये याद रखना है कि कांग्रेस जैसी विरोधी पार्टियां नहीं चाहती कि मुसाफिरों को बेहतर सुविधा मिले और रेल के जरिए देश का विकास हो।
अगर जनता बता पाती, तो गोयल साहब से कहती, सर आप जो हमें समझ रहे हैं और समझते आए हैं, वो हम हैं, नहीं…और कभी नहीं थे। अगर आप बेहतर सेवा के लिए 151 ट्रेन ला रहे हैं तो ये सुविधा हमें ही तो मिलेगी, हम इसका विरोध क्यों करेंगे? हमें इसलिए परेशानी होती है क्योंकि पहले आप बड़े-बड़े दावे कर तेजस का ऐलान करते हैं, उसे प्राइवेट हाथों में देते हैं और इसका भाड़ा राजधानी से ज्यादा हो जाता है। सवाल आपकी नीति का नहीं नीयत का है। इसी तरह के तर्क हमने तब भी सुने थे जब प्राइवेट मोबाइल कंपनियां आई थीं, जब प्राइवेट एयरलाइंस आए थे। आप बेहतर सेवा के नाम पर निजी कंपनियों को रेलवे में लाइए, इस पर भी शायद किसी को एतराज न हो, हमारा डर ये है कि आप इंडियन रेलवे को BSNL और AIR INDIA न बना दें।

नीयत पर सवाल इसलिए उठता है क्योंकि रेलवे में नई भर्तियों पर रोक लगी है, और खाली पदों में 50% कटौती की बात कही जा रही है। रोजगार देने के मामले में रेलवे भारत की सबसे बड़ी संस्था है। रोजगार संकट के दौर में रेलवे में रोजगार का खत्म होना क्या चिंता की बात नहीं है? 151 निजी ट्रेन चलाने को सरकार एक समाधान के तौर पर देख रही है। सवाल है रेलवे की परेशानी का क्या ये सही समाधान है? आइए पहले समझते हैं रेलवे की परेशानी क्या है?
रेलवे की बड़ी परेशानी
भारतीय रेलवे दुनिया की चौथी सबसे बड़े रेल कंपनी है।
रेल कंपनी | सालाना टर्नओवर 2017 |
Deutsche Bahn | $51.14bn |
SNCF | $40.12bn |
JSC Russian Railways | $39.04bn |
Indian Railways | $28.8bn |
लेकिन मुनाफे के नजरिए से दुनिया की टॉप 20 कंपनियों में भी इसका शुमार नहीं होता। वजह है इसका खर्च। बीते दस साल में हर सौ रुपये की कमाई पर हमारी रेल औसतन 96 रुपये खर्च करती है।

हमारी रेलवे अगर ज्यादा बेहतर तौर पर काम करती तो वो कितनी कमाई कर सकती थी, इसे इस तरह समझिए कि दुनिया की दो सबसे बड़ी रेल कंपनी जर्मनी की Deutsche Bahn 33 हजार किमी रेल नेटवर्क पर $51.14bn और फ्रांस की SNCF 30 हजार किमी रेल नेटवर्क पर $40.12bn की कमाई करते हैं, वहीं हमारी भारतीय रेल इन दोनों से ज्यादा 67,415 किमी नेटवर्क पर $28.8bn की कमाई करती है। यानी दोगुने नेटवर्क पर एक तिहाई कमाई। यही है वो कमाई की संभावना जो निजी क्षेत्र को रेलवे में हिस्सेदारी के लिए बेकरार कर रहा है।
रेलवे की दूसरी बड़ी परेशानी है उधार

क्योंकि रेलवे बचत कम कर पाता है, लिहाजा इसको कैपिटल एक्सपेंडीचर के लिए भी उधारी लेनी पड़ती है। पांच साल पहले तक यानी 2015 तक रेलवे हर साल केंद्र सरकार को डिवीडेंड देता था, अब ये पूरी तरह केंद्र सरकार के बजटीय सहायता और उधारी पर जिंदा है। सिर्फ 2018 की बात करें तो रेलवे को केंद्र सरकार से 55,088 करोड़ की सहायता मिली, वहीं 81,940 करोड़ की उधारी लेनी पड़ी। इस तरह 2018 में रेलवे के कुल capital expenditure में 55% उधार, केंद्र सरकार की बजटीय सहायता से 37% और रेलवे के अपने संसाधन से महज 8% हासिल हुआ।
मतलब ये कि अगर रेलवे एक प्राइवेट कंपनी होती तो इसके मालिक को ये बैलेंस शीट देख कर दिल का दौरा पड़ जाता।

भारतीय रेल को ट्रैफिक से 2018 में 2,00,840 करोड़ की आय हुई, जबकि इस साल उसका कुल खर्च था 1,88,100 करोड़।
स्रोत : – https://www.prsindia.org/parliamenttrack/budgets/demand-grants-2018-19-analysis-railways
2020 के बजट में अनुमान है कि इस साल रेलवे को अपने 13,452 पैसेंजर ट्रेन से 61 हजार करोड़ की आय होगी, जबकि 9,141 मालगाड़ी से 1.47लाख करोड़ । दुनिया में पैसेंजर और माल भाड़े दोनों के नजरिए से ये सबसे कम औसत कमाई का रिकार्ड है।

भारतीय रेल एक और बीएसएनएल बनने की राह पर दौड़ रही है। जबकि इसमें देश की सबसे बड़ी, सबसे कमाऊ सरकारी कंपनी बनने की हर संभावना मौजूद है।
100 बिलियन डॉलर सालाना कमाई की कंपनी बन सकती है भारतीय रेल
सरकार हॉलेज चार्ज की नीति पर चलने के बजाए अगर मोबाइल सेक्टर वाली नीति पर चले तो ज्यादा राजस्व मिलने की संभावना है। रेलवे में साउथ कोस्ट को मिला कर 18 रेलवे जोन हैं और 73 डिवीजन। जैसे मोबाइल के लिए देश को कई जोन में बांटकर फ्रिक्वेंसी का ऑक्शन किया गया था, उसी तर्ज पर सभी 18 रेलवे जोन के रेलवे ट्रैक के निजी इस्तेमाल का 20 साल के लिए ऑक्शन किया जा सकता है। या फिर जैसा कि मोबाइल में लूप से जीएसएम टेक में शिफ्ट करते वक्त सरकार ने हर जोन में चार-चार कंपनियों को टोटल एनुअल ट्रांजैक्शन के 2.5% फीस के एवज में देकर लाइसेंस आवंटित किया था वो रास्ता भी अपनाया जा सकता है। इसके साथ ही इंडियन रेलवे भी एक मजबूत कंपनी बन कर इन निजी कंपनियों से मुकाबला कर सके और दूसरी BSNL न बन जाए, इस वास्ते सरकार को उसे दुनिया की नामचीन कंपनियों जैसे अमेरिका की यूनियन पैसेफिक, जर्मनी की Deutsche Bahn (DB), या फ्रांस की SNCF से गठजोड़ करने की इजाजत देने पर गौर करना चाहिए। Alstom, Bombardier, GE Transportation और Siemens जैसी कंपनियों से सहयोग कर सबसे उन्नत किस्म की इंजन भारत में बनाने पर काम हो सकता है।
गोयल सर आप सुन रहे हैं ना ?
Nice 👍