कहीं न्यूयॉर्क की राह पर तो नहीं मुंबई?
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दुनिया में कोरोना के 24 लाख मामलों में करीब 8 लाख यानी एक तिहाई अमेरिका में हैं। मौत के कुल मामलों 1.70 लाख में अमेरिका में 42 हजार यानी पूरी दुनिया में हो रही मौतों का लगभग एक चौथाई है। इसमें भी कोरोना संक्रमण और मौत के सबसे ज्यादा मामले न्यूयॉर्क से सामने आये हैं। यूएस में कोरोना के 8 लाख मामलों में से करीब 2.5 लाख न्यूयॉर्क में सामने आए हैं और इसकी वजह से अमेरिका में हुई 42 हजार से ज्यादा मौतों में से करीब 15 हजार न्यूयार्क में हुई हैं।
न्यूयॉर्क सारी दुनिया में कोरोना का केंद्र बना हुआ है, और हमारे देश में यही स्थिति मुंबई की है।
न्यूयॉर्क और मुंबई में समानता
- मुंबई भारत की वित्तीय राजधानी है, न्यूयॉर्क अमेरिका का फाइनांस कैपिटल है।
- मुंबई दुनिया का सबसे व्यस्त एयरपोर्ट है। यहां लॉकडाउन से पहले रोजाना 850 के करीब फ्लाइट्स आ रही थीं और करीब 1.5 लाख से ज्यादा मुसाफिर आ रहे थे।
- न्यूयार्क इस मामले में मुंबई से कई गुना आगे है। यहां कोरोना के मामले सामने आने के बाद से चार लाख से ज्यादा मुसाफिर तो सिर्फ चीन से आए हैं, जबकि यूरोप से आए मुसाफिरों की तादाद इससे कई गुना ज्यादा है।
तो आइए समझने की कोशिश करते हैं कि न्यूयॉर्क में कोरोना से इतनी ज्यादा मौतें क्यों हो रही हैं?
- यूरोप से आए कोरोना संक्रमितों की बड़ी तादाद – अमेरिका में कोरोना खुद से नहीं फैला। यूरोप और चीन से आए मुसाफिरों के जरिए कोरोना अमेरिका पहुंचा। अमेरिकी शहरों में दर्ज कोरोना के शुरुआती मामलों के रिसर्च से पता चला है कि जहां कैलिफोर्निया में कोरोना के मामले चीन से आए 8 मुसाफिरों से फैले, तो वहीं न्यूयॉर्क में इसके जिम्मेदार यूरोप से आए 100 से ज्यादा लोग थे।
- सुपरस्प्रेडर का कहर – कोरोना से संक्रमित तो अमेरिका का हर शहर हुआ,लेकिन बदकिस्मती से न्यूयार्क में एक साथ कई सुपर स्प्रेडर की मौजूदगी दर्ज हुई। उदाहरण के लिए, न्यू रोशेल इलाके के सिर्फ एक शख्स की वजह से सौ से ज्यादा लोग न्यूयार्क में कोरोना से संक्रमित हुए। संक्रमण के सूचकांक R0 (R-nought) की बात करें तो कोरोना का एक आम मरीज 2 से 3 लोगों को संक्रमित करता है जबकि एक सुपरस्प्रेडर अज्ञात इम्यूनोलॉजिकल सोशल या बायोलॉजिकल वजह से 100 से 1000 व्यक्तियों को संक्रमित कर देता है।
- बड़ी तादाद में शुरूआती संक्रमण – शुरूआती दौर में ही न्यूयार्क में इतनी बड़ी तादाद में संक्रमित मरीज मिलने लगे कि दुनिया की बेहतरीन स्वास्थ्य सेवा के लिए मशहूर न्यूयार्क इसको संभाल नहीं पाया। चीन के वुहान में, जहां शुरुआत में सबसे ज्यादा मामला आए, चीनी वायरोलॉजिस्ट्स के अध्ययन का निष्कर्ष था कि जिस शहर में महामारी के शुरूआती सबसे ज्यादा मामले आते हैं, वहीं पर सबसे ज्यादा मौतें भी होती हैं।
- सोशल डिस्टेन्सिंग पर सियासत – चीन में CDC के प्रमुख जार्ज गाओ के मुताबिक कोरोना के खिलाफ सोशल डिस्टेन्सिंग सबसे अहम हथियार है। इस फैसले को लेने में हुई दिन और घंटों की देरी भी बहुत मायने रखती है। कोरोना संक्रमित का पहला मामला आने और सोशल डिस्टेंसिंग को शहर में लागू करने के मामले में न्यूयॉर्क, अमेरिका के ज्यादातर शहरों से 2 सप्ताह पीछे रहा। अमेरिका के ज्यादातर शहरों में संक्रमण का पहला मामला आने के 2 हफ्ते के भीतर सोशल डिस्टेंसिंग लागू किया गया, वहीं न्यूयॉर्क में इसे 4 हफ्तों बाद लागू किया गया। लेकिन तब तक संक्रमण से हालात बेकाबू हो चुके थे। अमेरिका में CDC के पूर्व प्रमुख डॉ. थॉमस रेडियन का कहना है कि अगर न्यूयॉर्क में सोशल डिस्टेंसिंग 2 सप्ताह पहले लागू किया गया होता तो मरने वालों और संक्रमितों की तादाद 50 से 80% तक कम रही होती।
- सघन आबादी में तेजी से फैला संक्रमण – मुंबई की तरह न्यूयार्क भी देश के सबसे सघन आबादी वाले इलाकों में से एक है। सघन आबादी में संक्रमण की आशंका ज्यादा होती है। अमेरिका में हुए एक ताजा अध्ययन से पता चला है कि शहर की सघन आबादी में भी संक्रमण की संभावना वहां ज्यादा होती है जहां गरीब बस्तियां होती हैं। इस तरह न्यूयॉर्क में मैनहटन जैसे अमीर इलाकों में संक्रमण की रफ्तार धीमी रही, जबकि गरीबों की सघन बस्तियों वाले इलाके, जैसे ब्रांक्स, क्वींस और स्टेटन आइलैंड में संक्रमितों की तादाद ज्यादा थी। मुंबई के धारावी में बड़ी तादाद में हुए संक्रमण को भी इस रिसर्च से बेहतर तौर पर समझा जा सकता है।
- अश्वेत और अफ्रीकी में ज्यादा संक्रमण – ज्यादातर देशों में ये पैटर्न देखने को मिला है कि कोरोना से ज्यादा खतरा समाज के कमजोर तबके को है। न्यूयॉर्क टाइम्स के एक रिसर्च से पता चला है कि कोरोना संक्रमण गरीब तबके जैसे अश्वेत और अफ्रीकी अमेरिकी समुदाय में ज्यादा हुआ । श्वेत अमेरिकियों के मुकाबले इनमें संक्रमण के मामले 3 गुना ज्यादा और मौत के मामले 6 गुना ज्यादा दर्ज हुए हैं। न्यूयॉर्क में 22% आबादी अश्वेतों की है और कोरोना से हुई मौतों में हर तीसरा व्यक्ति अश्वेत है।
- गरीबी और सघन आबादी बनी मुसीबत – अगर हम मुंबई में भी मरीजों का सोशियोलॉजिकल एनासिसिस कर पाएं तो आशंका यही है कि यहां भी ज्यादा संक्रमण गरीबों में है, जिनके पास पहले से अनाज और दूसरी जरूरी चीजों का स्टॉक रखने के लिए पैसा नहीं था और जिन्हें खतरा उठाकर भीड़- भाड़ वाली जगहों पर बार-बार जाने को मजबूर होना पड़ा। न्यूयार्क में हुए एक ताजा रिसर्च में पाया गया कि जहां अमीरों की सघन आबादी थी वहां उन लोगों के पास घर में रहने का मौका था। वो घर से ही काम कर रहे थे और उन्होंने खाने का सामान और जरूरतों की चीजों को या तो पहले घर में स्टोर करके रख लिया या उन्होंने डिजिटल पेमेंट कर होम डिलीवरी से हासिल कर लिया। वहीं न्यूयॉर्क में जहां गरीबों की सघन आबादी थी, जैसे क्वींसलैंड या ब्रांक्स में, वहां लोगों को कैश ले कर सड़कों पर उतरना पड़ा और उनको भीड़-भाड़ की जगहों पर बार-बार जाना पड़ा । नतीजा उन पर कोरोना कहर बन कर टूटा।
- टेस्टिंग में पिछड़ गया न्यूयॉर्क – न्यूयॉर्क में टेस्टिंग पर राजनीति हुई। कैलिफोर्निया में शुरू में ही बड़ी तादाद में टेस्टिंग हुई, इस तरह वहां संक्रमण पर काबू पाना आसान हुआ। लेकिन न्यूयॉर्क में शुरू में ये कहा गया कि टेस्टिंग सिर्फ उनकी होगी, जिन्हें अस्पताल में भर्ती करने की तत्काल जरूरत है। बाद में टेस्टिंग की शर्तें लचीली की गईं और जब टेस्टिंग किट्स उपलब्ध हो गए, तब इनकी तादाद बढ़ा कर 10000 की आबादी में 257 तक लाया गया। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। वैसे अमेरिका के दूसरे शहरों में यह औसत 10000 में 54 का ही है।