इस मामले में नंबर वन है झारखंड!
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कोरोना के बढ़ते संक्रमण, मजदूरों के प्रवास और लॉकडाउन की वजह से घटते राजस्व ने लगभग सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों की नींद उड़ा रखी है। सभी इससे अपने-अपने तरीके से निपट भी रहे हैं। लेकिन इनमें से कुछ ने बेहतर ढंग से काम कर अपनी अलग पहचान कायम की है, और जनता का भरोसा जीता है। कठिन परिस्थितियों में किसने अपनी अवाम की सही तरीके से मदद की, इन मुसीबतों का कितने बेहतर ढंग से सामना किया, इसी से किसी नेता की पहचान होती है। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कई मामलों में देश के ज्यादा पढ़े-लिखे और नामी-गिरामी मुख्यमंत्रियों के सामने एक नजीर पेश किया है और दिखाया है कि संकट काल में तमाम परेशानियों के बीच भी बेहतर काम किया जा सकता है। ऐसा ही एक मामला है, प्रदेश के मजदूरों को रोजगार दिलाने का। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) को उसकी अहम परियोजनाओं के लिए राज्य से 11,800 श्रमिकों की भर्ती की अनुमति दी है। लेकिन ये अनुमति मजदूरों के अधिकारों को लेकर लिखित आश्वासन मिलने के बाद ही दी गई है।

मजदूरों के साथ खड़ा हुआ राज्य
संताल परगना से हजारों आदिवासी मजदूर 1970 से ही लेह-लद्दाख के दुर्गम स्थानों, कठिनतम चोटियों और दर्रों पर सड़क बनाने जाते रहे हैं। बॉर्डर रोड ऑर्गेनाइजेशन (बीआरओ) अपने स्थानीय नेटवर्क की मदद से इन्हें साल में दो बार बुलाता है। इस बार जब लॉकडाउन के कारण श्रमिक फंस गए, तो उन्होंने सीएमओ और कॉल सेंटर से संपर्क कर वापसी की गुहार लगाई। इसके बाद मुख्यमंत्री ने सक्रियता दिखाते हुए एक टीम बनाई और 29 मई को 60 मजदूर एयरलिफ्ट कर रांची लाये गए। श्रमिकों के स्वागत के लिए एयरपोर्ट पहुंचे मुख्यमंत्री ने जब उनसे बात की, तो पता चला कि काम के बहाने दशकों से प्रदेश के मजदूरों का शोषण हो रहा है।
किस तरह होता था शोषण?
एयरलिफ्ट होकर झारखण्ड पहुंचे मजदूरों ने बताया कि वहां पर उन्हें समय पर मजदूरी का भुगतान नहीं किया जाता है। इसके अलावा ठेकेदार और बिचौलिए, बीआरओ द्वारा तय राशि से भी कम राशि का भुगतान करते हैं। इनका एटीएम कार्ड ठेकेदार रख लेते हैं, और झारखंड लौटने समय इनकी मेहनत की कमाई का एक तिहाई हिस्सा निकाल लेते हैं, उसके बाद ही एटीम कार्ड वापस करते हैं।

सरकार ने की पहल
इसके बाद सरकार ने बीआरओ से सवाल किए। मामला रक्षा मंत्रालय पहुंचा, तो वहां भी मजदूरों के शोषण की जानकारी दी गई। मुख्यमंत्री ने एक विशेष टीम गठित कर बीआरओ के साथ तमाम मुद्दों पर वार्ता कराई। आखिरकार दोनों पक्ष के बीच इंटर स्टेट लेबर एक्ट 1979 और वर्क्समैन कंपनसेशन एक्ट 1923 के तहत, मजदूरों को निर्धारित मजदूरी, स्वास्थ्य सुविधायें, दुर्घटना लाभ, यात्रा भत्ता, आवास लाभ आदि लाभ देने पर सहमति बनी। जब बॉर्डर रोड ऑर्गेनाइजेशन (बीआरओ) ने वैधानिक शर्तों को मानने और श्रमिकों को सभी लाभ देने की लिखित सहमति दी, तब जाकर राज्य सरकार ने मजदूरों को ले जाने की अनुमति दी।
मजदूरों को क्या हुआ फायदा?
- इन मजदूरों को निर्धारित मजदूरी में 20 प्रतिशत बढ़ोत्तरी होगी, जो सीधे उनके बैंक खाते में जमा होगी।
- बीआरओ और उपायुक्त के बीच पंजीकरण प्रक्रिया के बाद ही श्रमिक जाएंगे।
- मजदूरों की नियुक्ति में बिचौलियों की भूमिका खत्म कर दी गई।
- मजदूरों को चिकित्सा सुविधा, यात्रा भत्ता, कार्य स्थल पर सुरक्षा, आवास लाभ भी मिलेगा।
कोरोना संकट में हर राज्य आर्थिक, सामाजिक और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से जूझ रहा है। कई राज्य कोरोना के डर से मजदूरों को वापस लाने की अनुमति तक नहीं दे रहे हैं। वहीं झारखंड ऐसा पहला राज्य है, जिसने फ्लाइट से मजदूरों को वापस लाने की पहल की। झारखंड ने ही सबसे पहले श्रमिक स्पेशल ट्रेन की मांग की थी और पहली ऐसी ट्रेन झारखंड के मजदूरों को ही वापस लेकर आई थी। मौजूदा स्थिति ये है कि झारखंड का खजाना खाली है, प्रवासी मजदूरों के आने की वजह से कोरोना के मामलों में तेजी से बढ़ोतरी हुई है, करीब 3.5 लाख मजदूर पहुंच चुके हैं, और इन सबके बावजूद सरकार अपने खर्च से लेह-लद्दाख और अंडमान से मजदूरों को फ्लाइट के जरिए भी वापस लाने की कोशिश कर रही है। बेरोजगारी, कोरोना और खर्च में बढ़ोतरी के बावजूद झारखंड ने मजदूरों से मुंह नहीं मोड़ा है, बल्कि आगे बढ़कर उनके हितों की रक्षा के लिए प्रयास कर रही है। ये ना सिर्फ काबिले-तारीफ है, बल्कि अनुकरणीय भी।
