मेरे अंगने में…?
साल के अंत तक होनेवाले बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर रोजाना नये समीकरण बन और बिगड़ रहे हैं। जैसे-जैसे नये खिलाड़ी मैदान में कूद रहे हैं, चुनावी दंगल और रोचक होता जा रहा है। हाल के कुछ फैसलों से लगता है कि इस बार नीतीश सरकार को एक तगड़े महागठबंधन से मुकाबला करना पड़ेगा। महागठबंधन के नेता नीतीश सरकार को बेदखल करने की पूरी कोशिश में जुटे हैं, तो सत्ता प्राप्ति को राजद ने प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया है।
कैसा होगा महागठबंधन?
पहले गठबंधन की बात…। इस बार कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी काफी सक्रिय नजर आ रहे हैं और झारखंड की तर्ज पर बिहार में भी गठबंधन की सरकार बनाने की जुगत में हैं। राजद नेता तेजस्वी प्रसाद यादव अपने सहयोगियों को साधने में लगे हैं। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भी बिहार में अपने 12 उम्मीदवार खड़े करने का फैसला किया है। वहीं लोजपा नेता चिराग पासवान भी यूपीए महागठबंधन से जुड़ने को उत्सुक दिख रहे हैं। पप्पू यादव ने कुछ संकेत दिये हैं, जिससे उनके भी गठबंधन में शामिल होने की संभावना बनती है।
बिहार में 12 सीटों पर दावा
इस चुनाव में झारखंड की सत्ताधारी पार्टी झामुमो ने भी जोर-आजमाइश का फैसला किया है। जेएमएम लालू प्रसाद यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस के साथ महागठबंधन में शामिल होगा। झारखंड मुक्ति मोर्चा के महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य ने बताया कि पार्टी बिहार में 12 विधानसभा सीटों तारापुर, कटोरिया, मनिहारी, झाझा, बांका, ठाकुरगंज, रूपौली, रामपुर, बनमनखी, जमालपुर, पीरपैंती और चकाई पर प्रत्याशी उतारने की तैयारी कर रही है। आपको बता दें कि 2005 के विधानसभा चुनाव में झामुमो के प्रत्याशी ने चकाई विधानसभा सीट पर जीत हासिल की थी। फिलहाल जिन सीटों पर झामुमो ने दावेदारी जताई है, वे झारखंड की सीमा से सटे हैं।
जेएमएम को क्यों मिलेंगी सीटें?
पार्टी महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य के मुताबिक हाल ही में झारखंड विधानसभा के चुनाव के दौरान राजद को सात सीटें दी गई थी। और राजद के सिर्फ एक सीट जीतने के बावजूद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने उनके विधायक को मंत्रिमंडल में जगह दी। इनका दावा है कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के शासन का मॉडल बिहार में लोकप्रिय है और इसका लाभ झामुमो समेत गठबंधन में शामिल तमाम दलों को मिलेगा। उन्होंने यह भी कहा कि अगर तालमेल पर सहमति नहीं बनेगी तो झामुमो फैसला लेने को स्वतंत्र होगा। फिलहाल गठबंधन को लेकर अनौपचारिक बातचीत चल रही है।
क्या है हेमंत का प्लान?
हाल-फिलहाल की कई घटनाओं से संकेत मिलता है कि हेमंत सोरेन सिर्फ झारखंड तक सीमित रहने की नहीं सोच रहे। शायद अपने पिता की तरह एक दिन केन्द्रीय राजनीति का हिस्सा बनने की भी सोच रहे हों। बिहार में अपने उम्मीदवार खड़े करने का सिर्फ एक फायदा है, जेएमएम को क्षेत्रीय दल से आगे बढ़ाकर राष्ट्रीय दल के तौर पर स्थापित करने की कोशिश। वैसे भी झारखंड विधानसभा के चुनाव में जब जदयू और राजद जैसी बिहार की पार्टियां अपने उम्मीदवार खड़ी कर सकती हैं, तो बिहार में जेएमएम क्यों नहीं?
कच्चे खिलाड़ी नहीं रहे हेमंत
वहीं इसके पीछे हेमंत सोरेन का बढ़ता आत्मविश्वास भी है। मुख्यमंत्री बनने के शुरुआती कुछ महीनों में हेमंत बड़े गर्व से घोषणा करते थे कि उन्होंने कोरोना महामारी के मामले में केन्द्र के सभी निर्देशों का अक्षरशः पालन किया है। लेकिन बाद में, चाहे वो मजदूरों की वापसी का मुद्दा हो या कोयले की नीलामी का मामला… हेमंत सोरेन खुलकर केन्द्र सरकार की मुखालफत करते नजर आए। प्रवासी मजदूरों के मामले में उनके काम की काफी प्रशंसा हुई है और लोगों के बीच इसका असर जानने के लिए बिहार चुनाव एक अच्छा मौका है।
बिहार विधानसभा के इस चुनाव में हेमंत सोरेन के पास खोने को कुछ नहीं है, लेकिन पाने को सारा राजनीतिक परिदृश्य….। कुछ सीटें जीत गये, तो ना सिर्फ उनका राजनीतिक कद बढ़ेगा, बल्कि किंगमेकर की भूमिका में आ सकते हैं।