क्या केरल के लोग वाकई इतने बुरे हैं?
गर्भवती हथिनी की हत्या पर तमाम लेखकों, पत्रकारों, कलाकारों, राजनेताओं और यहां तक कि पूर्व केंद्रीय पर्यावरण और वन राज्यमंत्री मेनका गांधीजी तक ने जैसी विद्वतापूर्ण टिप्पणियां कीं, तो एकबारगी लगा कि केरल पर लिखने का यह ठीक समय नहीं। लेकिन जब टिप्पणियां सीधे केरल प्रांत और वहां के नागरिकों पर होने लगी तो रहा नहीं गया। अच्छे और बुरे लोग किस समाज में नहीं होते हैं। लेकिन दो-चार बुरे लोगों की हरकतों को लेकर क्या हम पूरे समाज पर कीचड़ उछाल सकते हैं?
हम प्रकृति और पर्यावरण की बात भले अधिक करते हों, लेकिन केरल के नागरिक जो काम करते हैं, वैसा बाकी लोग भी करने लगें तो वास्तव में यह देश स्वर्ग बन जाएगा। इसके बावजूद कि हाल के सालों में भयानक प्राकृतिक आपदाओं और बाढ़ का प्रकोप को इस प्रांत ने झेला है और बहुत सी चुनौतियां भी सामने आयी हैं। गर्भवती हथिनी की मौत की खबर भी हमें पता न चलती अगर केरल के ही एक जागरूक वन अधिकारी मोहन कृष्णन ने सारी घटना का विवरण फेसबुक पेज पर न डाला होता।
केरल को ठीक से समझने के लिए जरूरी है कि आप राजनीतिक चश्मा उतार कर कमसे कम एक सप्ताह केरल जायें और खुली आंखों से केरल की प्रकृति और समाज को देखें समझें। बिना देखे यह समझना कठिन है कि केरल ने आखिर आधुनिकता के साथ पुरातनता के बीच समन्वय कैसे बिठा रखा है। आखिर क्या कारण है कि जब देश में वनों पर भारी दबाव हो, तो भी केरल में वनावरण भी बढ़ा है और हाथियों की संख्या भी। केरल भारत का अकेला प्रांत है जिसने कोट्टूर में हाथी पुनर्वास केंद्र स्थापित किया है, जिसमें हाथी संग्रहालय, महावत प्रशिक्षण केंद्र, सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल और जानवरों के लिए एक रिटायरमेंट होम तक है। अनाथ, घायल और बुजुर्ग हाथी इसमें रखे जाते हैं। तमाम मंदिरों के पास हाथी हैं, जिनकी मनुष्यों से कम देख-रेख नहीं होती। केरल में ही विश्व के सबसे अधिक उम्रदराज हाथी भी हैं। पिछली बाढ़ के दौरान त्रिशूर में स्थानीय प्रशासन ने पानी में फंसे एक हाथी को सुरक्षित निकालने के लिए बांध का पानी रोक दिया। गजराज को सुरक्षित वहां से निकाला गया। हाथी फंसा है इसकी सूचना सरकार को नागरिकों ने ही दी थी।
केरल आकार में राजस्थान के जैसलमेर जिले के बराबर है। कई राज्य इससे बहुत बड़े हैं। लेकिन जब भारत का जिक्र होता है तो सामाजिक और मानव विकास प्रगति के इसके आंकड़े विकसित देशों के बराबर दिखाई देता है। मानसून भारत में सबसे पहले यहीं दस्तक देता है और आदि शंकराचार्य की इस जन्मभूमि में प्रकृति ने अनूठा रंग बिखेरा है। भारी आबादी के दबाव के बाद भी केरल ने प्राकृतिक संसाधनों को सबसे अधिक संरक्षित रखा है। वैश्वीकरण का सिलसिला शुरू होने से बहुत पहले ही केरल दुनिया के कई हिस्सों से जुड़ चुका था। केरल का कई देशों के साथ मसालों के व्यापार का इतिहास वास्को -डि- गामा के 1498 में कोझीकोड के तट पर पहुंचने से भी पुराना है। यहां के लोग साहसी हैं और इनकी उपलब्धियों को किसी भी क्षेत्र में देखा जा सकता है।
प्राकृतिक सौंदर्य, समृद्ध सांस्कृतिक विरासत, लाजवाब व्यंजन और सहृदय तथा मैत्रीपूर्ण लोगों के कारण ही विश्व पर्यटन में केरल ने अलग स्थान बनाया है। केरल के लोगों ने प्राकृतिक सुंदरता के साथ मसालों के अपने प्राचीन वैभव और देसी औषधियों और आयुर्वेद को देश के बाकी सभी हिस्सों से बेहतर तरीके से संरक्षित रखा है। देश-विदेश से आयुर्वेदिक उपचार के लिए भारी संख्या में लोग यहां आते हैं। भारत का यही एकमात्र राज्य है जो आयुर्वेद के केंद्र के रूप में विकसित हुआ है। यही नहीं ईको-टूरिज़्म की परिकल्पना को जमीन पर उतार कर साकार करने वाला राज्य भी केरल ही है। अपने समुद्र तट, बैकवाटर, पहाड़ियों और ग्रामीण परिवेश को जितना केरल ने व्यवस्थित कर रखा है उतना किसी और प्रांत ने नहीं। मुन्नार में 12 साल में एक बार नीलकुरुंजी जब अपने अंदाज में कुंभ मनाती है, तो बैगनी रंग से ढंकी पहाड़ियां देखने तमाम हिस्सों के लोग पहुंचते हैं।
भारत के दूसरे राज्यों जैसा, शहरी और ग्रामीण संस्कृति में विभाजन केरल में नजर नहीं आता। यहां के लोग प्रकृति के प्रति बेहद जागरूक और संवेदनशील हैं। सबसे अधिक पढ़ने-लिखने वाले भी हैं। सत्ता का विकेन्द्रीकरण है और बजट का 40 फीसदी हिस्सा ग्राम पंचायतों को मिलता है। क्या विकास करना है, इसका फैसला पंचायतें करती हैं और इसमें सांसदों और विधायकों की भूमिका नहीं होती। 1991 में ही केरल देश का पहला पूर्ण साक्षर राज्य बना। सूचना प्रौद्योगिकी, मोबाइल सघनता, डिजिटल बैंकिंग, ब्रॉडबैंड कनेक्शन, बैंक खाते और आधार कार्ड से लेकर डिजिटल क्रांति का यहां जैसा मजबूत आधार किसी राज्य में नहीं। ‘ईश्वर का अपना देश’ लिंग अनुपात में भी बेहतरीन है।
सदियों पुराने प्राचीन मंदिरों के साथ अति प्राचीन मार्शल आर्ट और बहुत कुछ आप यहीं देख सकते हैं। केरल ने अपनी नदियों को बचा कर रखा है। आज भी यहां जल परिवहन का ढांचा सबसे मजबूत है। प्रकृति प्रेमी केरल के लोग जलमार्गो को नया जीवन दे रहे हैं। उनके नाते ही केरल सरकार की नीतियां भी पर्यावरण मैत्री हैं। ये प्रांत सालाना नावों की दौड़ आयोजित करता है। केरल में विचरण करनेवाली अधिकतर नौकाएं देसी हैं और उनका निर्माण स्थानीय जंगलों में सहज उपलब्ध अंजिली लकड़ी से होता है। एक टन से 40 टन की क्षमता वाली ये नौकाएं केरल के प्रकृति पथ में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। बेशक वहां जो घटना घटी, वह बुरी थी लेकिन उससे केरल के प्रकृति प्रेमी नागरिकों पर उंगली उठाना बड़ा अन्याय है।
(वरिष्ठ पत्रकार अरविंद कुमार सिंह के फेसबुक वॉल से साभार)