#Kisan andolan:सरकार से किसानों के 9 सवाल
(#Kisan andolan)प्रधानमंत्री मोदी- विपक्ष किसान को गुमराह कर रहा है
कृषि मंत्री तोमर- विपक्ष किसान को गुमराह कर रहा है
मध्य प्रदेश मुख्यमंत्री शिवराज – किसानों को गुमराह करने का किया जा प्रयास
केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी – किसानों को गुमराह और भ्रमित करने की कोशिश चल रही है
लोकतंत्र में कानून बनने की एक स्थापित प्रक्रिया है। पहल जनता की ओर से होती है, दबाव समूह जैसे छात्र, मजदूर, किसान, सामाजिक कार्यकर्ता इसकी मांग उठाते हैं, चर्चा और बहस होती है… विधायिका के संज्ञान में ये मामला आता है, तब विशेषज्ञों और मुद्दे से जुड़े समूहों की सलाह लेकर कानून बनता है। लेकिन आस्था से ओत-प्रोत भारतवर्ष में अब कानून बनते नहीं, देवों की तरह अवतरित होते हैं, प्रकट होते हैं। वो पहले आ जाते हैं, फिर उनकी खूबियों को समझाने की कोशिशें शुरू होती हैं। सीएए से एनपीआर तक नोटबंदी से देशबंदी तक देश ने पाया कि कभी छात्र गुमराह हो रहे हैं तो कभी मजदूर, इस बार गुमराह होने की बारी किसानों की है।
सवाल है विपक्ष ऐसा क्या कह रहा है कि किसान गुमराह हो जा रहे हैं, वहीं सरकार किसानों के हित में दिन रात एक कर रही है, लेकिन भूला-भटका किसान रास्ते पर नहीं आ रहा, सरकार की सुनने के बजाय विपक्ष की सुन रहा है.
ये गुमराह किसान अगर पूछ पाते तो सरकार से 9 सवाल पूछते
- सुप्रीम कोर्ट ने ये क्यों कहा कि – ऐसा लगता है कि सिर्फ सरकार के स्तर पर ये मामला सुलझने वाला नहीं है। कोर्ट ने आपसे क्यों कहा कि आप किसान संगठनों समेत दूसरे पक्षों को शामिल कर कमेटी बनाइए। कोर्ट ने ये क्यों कहा कि किसानों का मुद्दा जल्द ही राष्ट्रीय मुद्दा बनने वाला है?
- जब देश कोरोना आपदा से जूझ रहा था, उस वक्त आर्डिनेंस के जरिए कृषि कानून लाने और जल्दबाजी में संसद पारित कराने की वजह क्या थी ?आप जानते थे जल्दबाजी में लाए गए इस कानून में कई खामियां हैं, किसानों से बातचीत के बाद आप पांच बदलाव के लिए रजामंद भी हुए, लेकिन इन्हीं मुद्दों पर जब लोकसभा में विपक्ष ने इने कानूनों को सेलेक्ट कमेटी को भेजने की मांग की तब उसे क्यों ठुकराया ?
- मानसून सत्र आपने बुलाया, क्योंकि आपको कृषि कानून पारित करवाना था, अब जबकि किसान इस कानून को लेकर आंदोलन कर रहे हैं, तब आप शीत सत्र क्यों नहीं बुलाते, आज कोरोना है, तब कोरोना नहीं था?
- मान लिया हम गुमराह हैं, किसानों के देश में किसान पर कानून बनाने के लिए किसानों से मशविरा करना आपकी शान के खिलाफ होता, लेकिन कृषि राज्य सूची का विषय है, सेवेंथ शेड्यूल का उल्लंघन कर, कानकरेंट लिस्ट से ट्रेडिंग के नाम पर कानून लेकर आए तो कम से कम राज्यों को तो भरोसा में ले सकते थे, उनसे बात क्यों नहीं की?
- आप मानते हैं कि आप किसानों की भलाई करने के लिए ये कानून लाए हैं, हम किसान ये भलाई नहीं चाहते, तो फिर आप कानून वापस क्यों नहीं लेते ?
- आप कानून पर इसलिए अड़े हैं क्योंकि कानून वापस लेने से आपकी इज्जत कम हो जाएगी या फिर आप इसलिए अड़े हैं क्योंकि आप पर कारपोरेट्स का दबाव है?
- अगर हम गुमराह हैं और आप सही, तो स्वदेशी जागरण मंच और आरएसएस का किसान संगठन भारतीय किसान संघ कृषि कानून पर सरकार के साथ क्यों नहीं है? क्यों वो इंदौर से उज्जैन तक एमएसपी के लिए प्रद्रशर्न कर रहा है?क्या उन्हें भी विपक्ष गुमराह कर रहा है?
- आप कह रहे हैं कि ये आंदोलन सिर्फ पंजाब के किसानो का आंदोलन है। अगर आप गौर करेंगे तो पाएंगे कि पंजाब के अलावा हरियाणा, यूपी, उत्तराखंड, राजस्थान और अब मध्य प्रदेश के किसान भी प्रदर्शन कर रहे हैं, और जो दूसरे राज्यों के किसान अपने राज्यों मे प्रदर्शन नहीं भी कर रहे, वो भी आपके साथ नहीं हैं न हमारे खिलाफ हैं।
- अगर ये कानून इतने ही अच्छे थे तो इसी कानून को लेकर शिरोमणि अकाली दल क्यों आपसे अलग हो गई, क्यों राजस्थान में राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के सासंद हनुमान बेनीवाल एनडीए छोड़ने की धमकी दे रहे हैं, और क्यों हरियाणा में जेजेपी के विधायक दुष्यंत चौटाला पर एनडीए से अलग होने के लिए दबाव डाल रहे हैं? क्यों इस वास्ते पांच निर्दलीय और एक जेजेपी विधायक की रणधीर सिंह गोलन के घर पर बैठक हुई ?
जो सरकार के बनाए कानून के खिलाफ है वो दरअसल देश के खिलाफ है – मीडिया का बनाया ये नैरेटिव जो विपक्ष पर चला, जामिया और जेएनयू के छात्रों पर चला, सामाजिक कार्यकर्ताओं पर चला, अब किसानों पर बुरी तरह और पूरी तरह नाकाम रहा है। चिंता की बात सिर्फ ये नहीं है कि किसानों को सरकार पर भरोसा नहीं है, आप उन्हें गौर से सुनिए, उनका भरोसा किसी एक पर नहीं, सब पर टूट चुका है..विपक्ष, मीडिया, पुलिस, ज्यूडिशियरी …वो जानते हैं वो हारी हुई लड़ाई लड़ रहे हैं, मौसम से सर्द सरकार के सामने उनके जीतने की कोई संभावना नहीं है, लेकिन उनके पास विकल्प नहीं है..लड़ो या मरो…अब तक बीस से ज्यादा किसान इस आंदोलन में दम तोड़ चुके हैं, मीडिया अपने ही नागरिकों में दुश्मन तलाशने में लगा है, और सरकार ..अगले कानून के साथ नए गुमराह की लिस्ट तैयार कर रही है।