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#kisanandolan: किसान कानून से किसका फायदा?

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#kisanandolan: किसान कानून से किसका फायदा?

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#kisanandolan:टेलीकॉम, एविएशन, और बैंकिंग के बाद निजी क्षेत्र की नज़र कृषि पर है। कृषि $ 276.37 billion यानी 19.48 लाख करोड़ सालाना का कारोबार है। अगले दो साल में भारत से होने वाला कृषि निर्यात $ 60 billion तक पहुंचने की संभावना है। कल्पना कीजिए कि सरकार ने किसानों के लिए कानून बनाते वक्त किसानों की जगह देश के बड़े कारपोरेट्स से मशविरा से किया होता तो उन्होंने सरकार के सामने क्या मांगें रखी होती?

  1. हम मंडियों में जाकर खरीद नहीं करेंगे जहां MSP से कम पर खरीद नहीं हो सकती। हमें देश में कहीं भी खरीदने, कहीं भी बेचने और कहीं भी स्टॉक रखने की इजाजत दी जाए।
  2. हम सीधे किसान से खरीद करेंगे और अनाज के लिए जो कीमत करार में दर्ज होगी, वही किसान को मिलेगी, चाहे उस वक्त बाजार में उसकी कीमत ज्यादा ही क्यों न हो।
  3. अगर कांट्रैक्ट को लेकर विवाद हुआ तो किसान के पास अदालत जाने का अख्तियार न हो।
  4. हमें इस व्यापार के लिए किसी रजिस्ट्रेशन की जरूरत न पड़े, ताकि किसानों से हमारे करार, कीमत, खरीद या लेन-देन की कोई जानकारी सरकार के पास न हो, न ही हमारी खरीद-बिक्री पर किसी कानून की बाधा हो। हमें न पाबंदी कबूल है न किसी तरह की निगरानी।
  5. ये खरीद बिक्री पूरी तरह टैक्स फ्री हो

देश में किसानों के पांच सौ से ज्यादा संगठन हैं, इनमें से एक भी संगठन किसान कानून पर सरकार के साथ नहीं है। ऐसा इसलिए है क्योंकि दुनिया के सबसे पुराने लोकतंत्र में जब किसानों के लिए नए  कानून की रुपरेखा तैयार हो रही थी, तब सरकार ने इनसे मशविरा करना जरूरी नहीं समझा था। ये इत्तेफाक तो नहीं हो सकता।

#kisanandolan:ये कानून कैसे किसान विरोधी है?

  1. तमिलनाडु में राज्य सरकार ने किसानों से अनाज की सीधी खरीद के लिए ‘Uzhavar Santhai’ व्यवस्था बनाई है, जिसमें सरकार किसान को मिलने वाले मूल्य की गारंटर है। नए कानून में स्टेट लिस्ट के विषय में राज्य की भूमिका खत्म हो गई है।
  2. कृषि उत्पाद की जमाखोरी को कानूनी वैधता दी गई है। अगर आपने जिंदगी में पहली बार 60रुपये किलो आलू खरीदना शुरू किया है तो जान लीजिए इसका फायदा किसानों को नहीं, स्टॉकिस्ट्स को हो रहा है, जिन्होंने किसानों से कम कीमत पर आलू खरीद कर स्टॉक कर लिया और अब उसे कारटेल बना कर कानून के तहत बेच रहे हैं।
  3.  नए कानून (agri laws) के मुताबिक विवाद की स्थिति में किसान कंपनी के सामने अपनी बात रखेगा। 30 दिन में समाधान न हुआ तो एसडीएम के समक्ष फरियाद लेकर जाएगा। एसडीएम कोर्ट से किसान का रोज साबका पड़ता है, अपने अनुभव से वो जानता है कि बाबू के दरबार में बड़े लोगों की पूछ होती है। यहां से हारने के बाद वो पांच लाख बकाया के लिए हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट नहीं जा सकता, जबकि सौ रुपये की वसूली के लिए ये अधिकार देश में बाकी हर नागरिक को है।
  4. इस साल जुलाई में मुकेश अंबानी ने ऐलान किया था कि उनके रिटेल चेन में बिकने वाले फल और सब्जियों का 80% से ज्यादा सीधे किसानों से सोर्स किया जा रहा है। यही काम ITC अपने e-choupal के जरिए बीस साल से कर रहा है। ग्रोफर्स, बिग बास्केस समेत कई एग्री स्टार्टअप किसानों के साथ कांट्रेक्ट करने लगे हैं। जाहिर है व्यवस्था पहले बन चुकी है, उसको कानूनी वैधता अब सरकार ने प्रदान की है।  

17 राज्य पहले ही फल और सब्जियों को APMC के दायरे से बाहर कर चुके हैं, 19 राज्यों में कांट्रैक्ट फार्मिंग को कानूनी वैधता पहले से हासिल है।5 नवंबर को प्रधानमंत्री ने विदेशी निवेश को बढ़ावा देने के लिए एक वर्चुअल बैठक बुलाई जिसमें रतन टाटा, मुकेश अंबानी के अलावा विदेश से GIC, Temasek, US International Development Finance Corporation, Pension Denmark, Qatar Investment Authority, Japan Post Bank ने शिरकत की। ‘Software  as a Service’ (SaaS) वाला देश ‘Farming as a Service’ (FaaS) के लिए विदेशी निवेश चाहता है। सवाल है क्या किसान भी यही चाहते हैं? ये वो सवाल है जो किसी ने किसानों से पूछना अब तक जरूरी नहीं समझा है।

http://sh028.global.temp.domains/~hastagkh/farmer-protest-is-msp-a-big-issue-to-fight-for/
Shailendra

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