जानें भारत में कैसे होती हैं अफीम की खेती, अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान कर रहा हैं अरबों की कमाई
दुनिया भर के आतंकी संगठन कमाई के लिए की तरह के गैर कानूनी काम करते हैं। इसी तरह हाल ही में अफगानिस्तान की सत्ता पर काबिज हुआ तालिबान दशकों से अफीम की खेती करता आ रहा है। अब तो अफगानिस्तान में सरकार भी तालिबान की है तो वहां पर अफीम की खेती और बढ़ाई जा रही है। आपको जानकर हैरानी होगी की दुनिया भर का करीब 85 फीसदी अफीम अफगानिस्तान में ही पैदा होता है।
भारत में भी कुछ किसान अफीम की खेती करते हैं और तगड़ा मुनाफा कमाते हैं। हालांकि, अफीम की खेती करना इतना आसान नहीं, क्योंकि इसके लिए आपको तमाम नियम और शर्तों का पालन करना होता है और लाइसेंस लेकर ही इसकी खेती की जा सकती है। आइए जानते हैं कैसे की जाती है अफीम की खेती और इसमें कितना मुनाफा होता है।
कैसे की जाती है अफीम की खेती?
अफीम की खेती ठंड के दिनों में होती है। अक्टूबर से लेकर नवंबर तक के बीच में इसकी फसल बोई जाती है। इसके लिए पहले खेत को 3-4 बार अच्छे से जोता जाता है और उसमें ढेर सारी गोबर की खाद या वर्मी कंपोस्ट डाली जाती है।
अफीम की खेती में एक न्यूनतम सीमा तक पैदावार करना जरूरी होता है, इसलिए जमीन में पर्याप्त मात्रा में पोषण होना चाहिए, वरना आपका लाइसेंस तक कैंसल हो सकता है। अधिक पैदावार के लिए खेती से पहले जमीन की जांच जरूर कराएं, ताकि पता चल सके कि किस चीज की कमी है और उसे कैसे पूरा करें।
अफीम के पौधे में 95-115 दिनों में फूल आने लगते हैं। उसके बाद धीरे-धीरे ये फूल झड़ जाते हैं और 15-20 दिनों में पौधों में डोडे लग जाते हैं। अफीम की हार्वेस्टिंग एक दिन में नहीं होती है, बल्कि कई बार में होती है। इन डोडों पर दोपहर से शाम तक के बीच में चीरा लगाया जाता है। चीरा लगते ही डोडे से एक तरल निकलने लगता है, जिसे पूरी रात निकलने के लिए छोड़ दिया जाता है। अगले दिन तक यह तरल डोडे पर जम जाता है, जिसे धूप निकलने से पहले ही इकट्ठा कर लिया जाता है। यही प्रक्रिया कई बार दोहराई जाती है, जब तक डोडे से तरल निकलना बंद ना हो जाए। ध्यान रहे कि चीरा लगाने से करीब हफ्ते भर पहले सिंचाई कर देनी चाहिए, इससे अच्छा उत्पादन मिलता है। जब तरल निकलना बंद हो जाता है तो फसल को सूखने दिया जाता है और फिर डोडे तोड़कर उससे बीज निकाला जाता है। अप्रैल के महीने में हर साल नार्कोटिक्स विभाग किसानों से अफीम खरीदता है।
लाइसेंस और बीज –
अफीम की खेती के लिए आपको सबसे पहले लाइसेंस लेना होगा। इसका लाइसेंस भी कुछ खास जगहों पर ही खेती के लिए दिया जाता है। वहीं कितने खेत में आप खेती कर सकते हैं ये भी पहले से ही निर्धारित किया जाता है। इसका लाइसेंस वित्त मंत्रालय की तरफ से जारी किया जाता है। आखिरी बार इसके लाइसेंस के लिए नियम और शर्तों की लिस्ट 31 अक्टूबर 2020 को जारी की गई थी, जिसे आप क्राइम ब्यूरो ऑफ नारकोटिक्स की वेबसाइट से डाउनलोड (यहां क्लिक करें) कर सकते हैं।
नारकोटिक्स विभाग के कई इंस्टीट्यूट अफीम पर रिसर्च करते हैं, जहां से आपको अफीम का बीज मिल जाएगा। जवाहर अफीम-16, जवाहर अफीम-539 और जवाहर अफीम-540 जैसी किस्में काफी लोकप्रिय हैं। प्रति हेक्टेयर के लिए आपको करीब 7-8 किलो अफीम के बीज की जरूरत होती है। ध्यान रहे, अफीम के कुछ बीज आपको कहीं से मिल जाएं तो भी आप उन्हें नहीं उगा सकते हैं। बिना लाइसेंस के एक भी अफीम का पौधा आपने उगाया तो इसके लिए आप पर कानूनी कार्रवाई हो सकती है।
अफीम की खेती के लिए प्रति हेक्टेयर किसान को करीब 7-8 किलो बीज की जरूरत होती है और इसकी कीमत काफी कम होती है। इसका बीज 150-200 रुपये प्रति किलो के हिसाब से मिल जाता है। वहीं एक हेक्टेयर से करीब 50-60 किलो अफीम का लेटेक्स इकट्ठा होता है। यह लेटेक्स डोडे से निकले तरल के जमने से बनता है।
दाम और मुनाफा –
अफीम के लिए सरकार की तरफ से करीब 1800 रुपये प्रति किलो का भाव दिया जाता है, जबकि अगर इसे काले बाजार में बेचा जाए तो 60 हजार रुपये से 1.2 लाख रुपये तक मिल जाते हैं। अफीम की कालाबाजारी की एक बड़ी वजह ये भी है। इस तरह अगर एक किसान एक हेक्टेयर में उगाई सारी अफीम सरकार को बेचे तो उसे करीब 1 लाख रुपये की आमदनी होगी। इसी में से उसे बीज का खर्च, खेती का खर्च, लेबर का खर्च सब निकालना होता है, जो मुमकिन नहीं लगता। इसी वजह से अफीम की कालाबाजारी भी होती है। हालांकि, लेटेक्स के अलावा डोडे के बीज को बाजार में बेचकर भी किसान की थोड़ी कमाई हो जाती है, जिसे खस-खस कहते हैं। खस-खस को किचन में मसाले के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।
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