बिहार को एक गुलीवर की तलाश है!
गलत क्या है, दिन दहाड़े हत्या, या हत्या का विरोध…?
जो कहीं नहीं होता, वो बिहार में होता है, नीतीश कुमार के सुशासन में इतना अनुशासन है कि हत्या पर FIR हो न हो, हत्या का विरोध जताने पर FIR जरूर होता है, वो भी नेता प्रतिपक्ष पर, और राज्य की सबसे बड़ी पार्टी आरजेडी के 90 से ज्यादा नेताओं पर।
गोपालगंज में एक परिवार के तीन लोगों की हत्या हुई, पीड़ित परिवार आरजेडी से जुड़ा है… आरोप सत्ताधारी जेडीयू विधायक पप्पू पांडेय पर है, FIR तो बनता है…. RJD पर…
मीडिया से मुखातिब तेजस्वी ने कहा कि नीतीश कुमार के शासन में …अपराध के लिए… अपराधियों के लिए …लॉकडाउन नहीं है, विपक्ष के लिए है। पुलिस की भारी बंदोबस्ती, उन्हें घर के अंदर तो नहीं रोक पाई, लेकिन गेट से बाहर निकलते ही उन्हें रोक दिया गया।
अगर मुद्दा गोपालगंज था, आरजेडी कार्यकर्ता पर हुआ जानलेवा हमला था, उनके परिवार के तीन लोगों की हत्या था, तो इसे आवाज देने में तेजस्वी कामयाब रहे।
बाद में तेजस्वी स्पीकर से मिले, उन्हें ज्ञापन सौंपा और एसेंबली में कोरोना, राज्य में अपराध की बढ़ती घटनाओं और प्रवसी मजदूरों की स्थिति पर चर्चा के लिए तीन दिन का विशेष सत्र बुलाने का अनुरोध किया।
इस पूरे मामले में संदेश कुछ और भी गया। तेजस्वी गोपालगंज जाना चाहते थे जो रेड जोन में है, वो लॉकडाउन का उल्लंघन कर वहां जाना चाहते थे, उन्होंने राजधानी पटना में पुलिस को अपना फर्ज निभाने में परेशानी पैदा की… अपनी पार्टी के सभी विधायकों से भी उन्होंने गोपालगंज कूच करने को कहा। संदेश ये गया कि राष्ट्रीय आपदा के वक्त… राज्य कोरोना से लड़ रहा है और विपक्ष सरकार से … कोरोना के खतरे को लेकर विपक्ष… लापरवाह है, गैरजिम्मेदार है।
तेजस्वी ने प्रेस से बात की तो कहा कि गोपालगंज मेरा ननिहाल है..वहां जाने से आप कैसे रोक सकते हैं? नेता प्रतिपक्ष के तौर पर तेजस्वी के लिए सारा राज्य उनका परिवार है, राज्य में कोई जाति या समुदाय अगर पीड़ित है तो विपक्ष उसे आवाज देगा…इसमें रिलेशन और लोकेशन, अप्रासंगिक है।
तेजस्वी की पहचान अब तक पिता लालू प्रसाद से जुड़ी रही है। सियासत में विरासत सबसे बड़ी ताकत भी है और सबसे बड़ी कमजोरी भी। तेजस्वी को समझना होगा कि लालू प्रसाद का MY समीकरण नीतीश के गैर यादव ओबीसी, ईबीसी, एमबीसी और महादलित समीकरण के आगे फेल हो गया था। यूपी में मुलायम सिंह यादव के खिलाफ मायावती ने भी नीतीश की ही तरह रेनबो कोयलिशन तैयार किया था।
तेजस्वी को समझना होगा कि जिस पिता के कांधों पर चढ़कर उन्होंने दुनिया देखी है, उससे क्या है जो उन्हें नहीं सीखना है। आंध्रप्रदेश में जगनमोहन रेड्डी ने पिता राजशेखर रेड्डी की तरह ही तीन हजार किलोमीट से ज्यादा की पदयात्रा की, लेकिन अपनी अलग पहचान बनाने के लिए उन्होंने नवरत्न के नाम से राज्य की जनता को नौ योजनाओं की सूची दी….क्लियर एजेंडा दिया । इससे जनता के लिए ये तय करना आसान हुआ कि उसे चंद्र बाबू नायडू की कंप्यूटर और आईटी वाली सरकार चाहिए या किसानों की जरूरतों पर ज्यादा ध्यान देने वाली जगन की सरकार। जगन के वादों में मगन जनता ने उनका इस तरह समर्थन किया कि दो तिहाई बहुमत के साथ आंध्रप्रदेश में उन्होंने पहली सरकार बनाई।
तेजस्वी युवा हैं, उनमें जोश है, लेकिन अभी उन्हें जोखिम लेना सीखना होगा। जैसे हेमंत सोरेन ने एसेंबली चुनाव में कांग्रेस से गठबंधन के बावजूद निर्दलीय कैंडिडेट सरयू राय का समर्थन कर किया। झारखंड में हेमंत ने वो देखा जो कांग्रेस नहीं देख पाई कि हमारे यहां हर राज्य में ईमानदारी का अपना वोटबैंक है। इससे पहले तक जो चुनाव रघुवर बनाम हेमंत था वो रिश्वत बनाम ईमानदारी में तब्दील हो गया। सरयू को चुनाव में समर्थन देकर हेमंत ने अप्रत्यक्ष तौर पर अपनी सरकार का बनना तय कर लिया।
मौका खोज-खोज कर सरकार की लानत-मलामत करने के बजाय तेजस्वी को चाहिए कि वो जनता के सामने अहम मुद्दों पर विकल्प पेश करें जैसे ब्रिटेन में शैडो कैबिनेट के जरिए विपक्ष करता है। उन्हें समझना होगा कि दुनिया के सबसे पुराने लोकतंत्र बिहार में जनता विपक्ष को वोट न देकर खारिज जरूर करती है, लेकिन उसकी हर बात, वो बहुत धैर्य से और बहुत गौर से सुनती है। वो विपक्ष के कामकाज का उसी कड़ी कसौटी पर मूल्यांकन करती है जिस पर सरकार का। वो अपनी आवाज का इको सुनना चाहती है… जिस दिन उसे एहसास हो जाता है कि विपक्ष वही बोल रहा है जो वो सुनना चाहती है, तब वो विपक्ष को सत्ता सौंप देती है।
कोरोना संक्रमण के मामले में दुनिया के देशों में जो स्थिति भारत की है, राज्यों के मामले में उसी नौवें पायदान पर अभी बिहार है। डर है कि जून के आखिरी हफ्ते या जुलाई के पहले हफ्ते में बिहार में कोरोना पीक पर होगा, और तब शायद बंगाल और झारखंड के साथ बिहार देश के सबसे ज्यादा प्रभावित चार राज्यों में एक होगा।
ऐसे वक्त में जबकि विपक्ष को क्वारंटीन और आइसोलेशन को बेहतर बनाने, अस्थायी अस्पताल बनवाने और ज्यादा टेस्टिंग के लिए नीतीश सरकार पर दबाव बनाना चाहिए, वो लॉकडाउन के खिलाफ नजर आ रहा है।
कोरोना विपक्ष की ताकत है लेकिन कोरोना काल में पहले संभावित एसेंबली इलेक्शन के मद्देनजर… लॉक डॉन का उल्लंघन करने से वो उसकी कमजोरी बन जाता है
बिहार में लिलिपुट की राजनीति चल रही है, नेताओं के पास पद है, कद नहीं, ज्यादातर पार्टियों की न कोई नीति है न रणनीति… तेजस्वी के पास वही मौका है जो 1989 में उनके पिता लालू प्रसाद के सामने था…सवाल है क्या वो गुलीवर बनने का हौसला रखते हैं?