Harivansh: चाय,नाश्ता और उपवास!
अगर ANI की कैमरा टीम न होती तो देश शायद कभी न जान पाता कि राज्यसभा डिप्टी चैयरमैन हरिवंश नारायण सिंह(Harivansh ) का दिल कितना बड़ा है।
संसद परिसर में महात्मा गांधी की मूर्ति के पास बैठे आठ निष्कासित सांसदों के लिए जिस तरह राज्यसभा के डिप्टी चेयरमैन हरिवंश (Harivansh)चाय और नाश्ता लेकर आए, उनकी आत्मशुद्दि के लिए एक दिन का उपवास रखा… उससे सिद्ध हो गया कि उनके दिल में उन सांसदों के लिए कोई दुर्भावना नहीं है, जिन्होंने अपने आचरण से संसद की गरिमा को ठेस पहुंचाई…उनके साथ असंसदीय व्यवहार किया। इसी तरह का एक दिन का उपवास महाराष्ट्र के कद्दावर नेता शरद पवार डिपटी चेयरमैन की आत्मशुद्धि के लिए कर रहे हैं।
सारे देश ने डिप्टी स्पीकर के खत से जाना कि वो किस तरह दो दिन से इतनी आत्मपीड़ा, आत्मतनाव और मानसिक वेदना में थे कि वो पूरी रात सो नहीं पाए। फिर भी दिल जो न कह सका, उसे कहने डिप्टी स्पीकर खुद चाय लेकर सांसदों के पास गए, लेकिन चुप कैमरा देखता रहा और ये सांसद बोलते रहे। इन संगदिल सांसदों ने न उनकी चाय पी न उनके लाए नाश्ते की ओर ही देखा। सांसदों का धरना अब खत्म हो गया है, लेकिन संसद के अंदर विपक्षी सांसदों में असंसदीय आचरण की भावना में चुनावी संभावना है, ये समझ पाने के लिए आप में प्रधानमंत्री की दूरदर्शिता होनी चाहिए
प्रधानमंत्री जिसे बिहार के लोकतंत्र की सीख कह रहे हैं, वो क्या है इसे भी जानना जरूरी है।
राज्यसभा के नियम और परंपरा
विरोधी सांसद चाहते थे कि किसान बिल पर राज्यसभा में वोटिंग हो। नियम ये है कि अगर एक सांसद भी मत विभाजन की मांग करता है तो सदन में मतविभाजन होगा। विपक्षी सांसदों की लगातार मांग के बावजूद डिप्टी स्पीकर ने मत विभाजन (division of votes ) से इनकार कर दिया। इसकी वजह उन्होंने ये बताई कि इस मांग को करते वक्त सांसदों का अपनी सीट पर मौजूद रहना अनिवार्य था, लेकिन सांसद वेल में आ गए थे, इस तरह हाउस आर्डर में नहीं था। हकीकत ये है कि राज्यसभा में हंगामा इसी वजह से शुरू ही हुआ क्योंकि डिप्टी स्पीकर ने अपनी सीट पर बैठे, DMK सांसद शिवा की मतविभाजन की मांग खारिज कर दी थी। रोचक बात ये है कि जो हंगामा मतविभाजन के लिए अनुकूल नहीं था, वो ध्वनिमत से बिल के पारित करने में अनुकूल साबित हुआ। सत्र में सात दिन अभी बाकी थे… डिप्टी स्पीकर चाहते तो सदन को स्थगित कर सकते थे.. और अगले दिन वोटिंग हो सकती थी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
उपवास वाला खत
धरना देने वाले सांसदों के लिए चाय लाने के बाद की कहानी ये है कि डिप्टी स्पीकर ने इसके बाद राज्यसभा के सभापति को एक खत लिखकर इन आठ सांसदों के आचरण की शिकाय़त की। डिप्टी स्पीकर का राष्ट्रपति और स्पीकर को खत लिखना एक रुटीन मामला भी हो सकता है, लेकिन राज्यसभा के डिप्टी स्पीकर को क्या अपना ये खत राज्यसभा में बीजेपी के सदन के नेता थावरचंद गहलोत को…सदन में मौजूद सांसदों के सामने पढ़ने के लिए देना चाहिए था? स्पीकर वेंकैया नायडू ने संसदीय परंपरा का हवाला देते हुए जब इस मांग को खारिज कर दिया तो इससे ये भी साफ हो गया कि डिप्टी स्पीकर का गहलोत को ये खत देना संसदीय परंपरा के अनुकूल नहीं था।
चाय और समोसे की दुनिया से बाहर आएं तो इस कहानी में हमारे लोकतंत्र के लिए नई चुनौतियां सामने आई हैं।
लोकतंत्र की चुनौतियां
13 मई 1952 को शुरू राज्यसभा के पहले सत्र से अब तक 68 साल के इतिहास में पहली बार संसद में मत विभाजन की मांग खारिज की गई …इसके साथ ही पहली बार… राज्यसभा के डिप्टी स्पीकर के खिलाफ 12 पार्टियों के 47 सांसदों की ओर से अविश्वास प्रस्ताव पेश किया गया । संसद के इतिहास में पहली बार निलंबित सासंद पूरी रात संसद भवन के परिसर में धरने पर बैठे।
रविवार को सांसद संजय सिंह और राजीव साटव महासचिव के सामने टेबल पर चढ़ गए थे. वहीं तृणमूल कांग्रेस के डेरेक ओ ब्रायन आसन के सामने रूल बुक लहराते पाए गए कुछ सांसदों ने माइक तो कुछ ने किसान बिल की कॉपी फाड़ दी थी। लेकिन इसके बावजूद इन्हें पूरे मानसून सत्र के लिए निष्कासित करने से पहले इनकी सफाई सुनी जानी चाहिए थी। सत्ताधारी दल के निष्कासन प्रस्ताव को स्वीकार करने के बजाय स्पीकर खुद अपनी ओर से सजा देने या माफ करने का फैसला ले सकते थे। इसी तरह डिप्टी स्पीकर के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव को खारिज करने के लिए स्पीकर जिस 14 दिन के नोटिस की अनिवार्यता पर जोर दे रहे हैं, उससे संविधान के कई जानकार इत्तेफाक नहीं रखते। उनकी दलील ये है कि 14 दिन की मोहलत प्रस्ताव पेश करने के लिए नहीं इस पर फैसला लेने के लिए निर्धारित की गई है।
1977 से परंपरा ये है कि डिप्टी स्पीकर का पद विपक्ष को दिया जाता है, लेकिन बीजेपी इसके लिए तैयार नहीं थी, लिहाजा साल बीतने के बाद भी अब तक लोकसभा में डिप्टी स्पीकर का पद खाली है, राज्यसभा में बिहार चुनाव से पहले सहयोगी दल जेडीयू के हरिवंश को छह दिन पहले डिप्टी स्पीकर बनाकर बीजेपी अल्पमत वाले राज्यसभा में किसी संभावित खतरे की आशंका को निर्मूल करना चाहती थी। महज छह दिन में हरिवंश ने अपनी उपयोगिता साबित कर दी है।