bihar election 2020-क्या भूलूं, क्या याद करूं ?

ताल्लुक़ की नई इक रस्म अब ईजाद करना है
न उसको भूलना है और न उसको याद करना है
bihar election 2020 में जनता के सामने सवाल है कि, क्या भूलूं, क्या याद करूं ?प्यार में जिसे भूलना चाहें, वही हर वक्त याद रहता है। राजनीति में रवायत भूलने की है जिस पर नेता अक्सर खरे उतरते हैं। फिर ऐसा क्यों है कि bihar election 2020 में तमाम पार्टियां नहीं भूलने देने के इरादे के साथ उतरी है?एसेंबली के चुनाव (bihar election 2020) बिहार में पहले भी हुए हैं, लेकिन शायद ये पहली बार है कि पक्ष और विपक्ष दोनों का नारा एक ही है।

शुरूआत BJP ने की । सुशांत सिंह की मौत को लेकर पार्टी का नया नारा है- ना भूले हैं, ना भूलने देंगे! वर्चुअल रैली करने आए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार(JDU) ने भी सीबीआई जांच से न्याय मिलने की उम्मीद जताई।
अब नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ( RJD) भी कह रहे हैं कि – ना भूले हैं, ना भूलने देंगे!
नारा वही, लेकिन मायने अलग – bihar election 2020
BJP और JDU चाहते हैं कि इस बार वोटिंग सुशांत के लिए इंसाफ की जंग के नाम पर हो, वहीं RJD चाहती है कि बिहार की जनता वोट से नीतीश सरकार को चोट दे। इसके लिए जरूरी है कि वो लॉकडाउन में बिहार के गरीबों को आई दुश्वारियां याद रखे।

सुशील मोदी चाहते हैं कि जनता भूल न जाए कि RJD गरीबों को लालटेन युग से बाहर नहीं आने देना चाहता तो RJD याद दिला रही है कि …नीतीश सरकार …बिहार का अंधकार है…इसलिए… 9 तारीख को रात के 9 बजे 9 मिनट के लिए घरों की लाइट बंद कर दीया जलाएं।
नीतीश कुमार कह रहे हैं…याद रखिए …दारोगा प्रसाद राय और रामलखन सिंह यादव के परिवार के साथ कैसा व्यवहार हुआ…दारोगा जी की पढ़ी लिखी पोती (ऐश्वर्या -तेज प्रताप की पत्नी) को सम्मान नहीं मिला। अब जवाब तेजस्वी की ओर से आया है – नीतीश कुमार का अपनी पत्नी और बेटे से कैसा संबंध रहा है, ये सब जानते हैं
रोजगार का रण
चुनाव करीब हैं, स्वास्थ्य विभाग में 2669 नए पदों पर बहाली का आदेश आया है। नीतीश सरकार याद दिला रही है कि 1990 से 2005 तक RJD शासन में महज 95734 लोगों को नौकरी मिली थी, जबकि 2005 से अब तक 6,08,893 लोगों को नौकरी दी गई है। इस पर तेजस्वी चाहते हैं कि जनता ये न भूले कि बिहार में आज सबसे ज्यादा बेरोजगारी है।

तीन साल पहले तक नीतीश जब RJD के साथ थे, तब वो बिहार के लिए विशेष राज्य के दर्जे की मांग करते थे, अब लालू कह रहे हैं कि दर्जा वाला पर्चा लगता है कहीं खो गया है।
तस्वीर बदलती है तकदीर नहीं –who will win bihar assembly election 2020
बिहार की जनता बहुत उम्मीद के साथ हर चुनाव में पसंद के कैंडिडेट को वोट देती है और फिर असीम धैर्य के साथ पांच साल तक उन उम्मीदों के पूरा होने का इंतजार करती है, लेकिन गुलीवर के राज्य में ज्यादातर नेता अब तक लिलिपुट ही साबित हुए हैं और जनता छले जाने के एहसास से साल दर साल जूझती आई है। इमरजेंसी में जिन छात्रों में जनता ने मसीहा की तलाश की थी, वो छात्र नेता बनते ही अपनी-अपनी जातियों और पूर्वाग्रहों में कैद हो कर रह गए। आजादी के 70 साल बाद भी बिहार को ऐसे एक अदद नेता की तलाश है जो अपनी जाति के दायरे से बाहर निकल कर किसी सीट से चुनाव लड़ सके और जीत सके। चुनाव के मुद्दों पर गौर कीजिए …आपको एहसास होगा कि चुनाव में बहुत सारे मुद्दे हैं बस नहीं है तो इन मु्द्दों में कहीं बिहार नहीं है, बिहार की बेहतरी की साफ योजना या तस्वीर कहीं नहीं है। याद रखने…और नहीं भूलने लायक शायद सिर्फ इतनी ही बात है।