Loan waiver: चक्रवृद्धि ब्याज का चक्रव्यूह
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व्यवस्था की बेरहमी, आपदा को अवसर बनाने की कारोबारियों की सोच और न्याय व्यवस्था की लाचारी को एक साथ देखना, समझना है तो उस बहस पर गौर कीजिए जो बीते कई महीनों से कोरोना काल के कर्ज की ब्याज माफी (#Loan waiver ) को लेकर देश की सबसे बड़ी अदालत में चल रही है।
भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी इकोनॉमी है और ये दुनिया की अकेली इकोनॉमी है जहां कोरोना काल के कर्ज पर चक्रवृद्धि ब्याज की वसूली की व्यवस्था की गई है। संविधान की प्रस्तावना और अनुच्छेद 38 में आर्थिक न्याय की बात कही गई है। 2019 के आंकड़ों में हमारे यहां प्रति व्यक्ति सालाना आय 94,954 रुपया है। एक लाख तक के कर्ज पर पूर्ण ब्याज माफी होती तो देश की बहुत बड़ी आबादी को इससे राहत हासिल हो सकती थी। लेकिन बड़े कारोबारियों ने आपदा को अवसर बनाने के लिए सरकार से अपील की कि 2 करोड़ तक के कर्ज पर ब्याज नहीं लिया जाए। पॉवर से लेकर रियल इस्टेट की ओर से नामी वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट में पैरवी की और सुप्रीम कोर्ट ने बीते 14 अक्टूबर को केंद्र सरकार से कहा कि दो करोड़ तक के कर्जदारों के लिए ब्याज माफी पर जल्द अमल किया जाए।कामत समिति ने भी कोरोना संकट के मद्देनजर 26 क्षेत्रों के लिये रियायत की सिफारिश की थी। लेकिन सवाल है 2 करोड़ की रकम तक सरकार पहुंची कैसे? 2 करोड़ का कर्ज मिलने के लिए पांच करोड़ की पात्रता होनी चाहिए। इस साल फरवरी में इनकमटैक्स से जारी आंकडे बताते हैं कि देश में पांच करोड़ या ज्यादा आय वाले सिर्फ 8600 लोग हैं। क्या इन 8600 लोगों को कर्जमाफी की किसी योजना में शामिल किया जाना चाहिए? अब केंद्र सरकार कह रही है कि अगर 2 करोड़ तक के सभी कर्ज पर ब्याज माफी हुई तो 6 लाख करोड़ का भार पड़ेगा। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट में कहा
इस माफी की एक कीमत होगी, जिसे या तो बैंक भुगतेंगे या सरकार। हकीकत ये है कि इसे ना तो सरकार झेल सकती है न ही जमाकर्ता। लोगों ने लोन मोरिटोरियम को गलत समझ लिया है। इसका मतलब किस्तों में स्थगन है, न कि ब्याज में पूर्ण छूट।
तुषार मेहता, सॉलिसिटर जनरल
अदालत ने कहा
हम ऐसा कोई आदेश पारित नहीं करेंगे, जिससे अर्थ व्यवस्था पर असर पड़े। हम यह भी नहीं कह रहे हैं कि सरकार द्वारा कुछ नहीं किया गया है, लेकिन आग्रह यह है कि और कुछ भी किया जाए, क्योंकि उद्योग जिस हालात से गुजरे रहे हैं, उसे देखते हुए कुछ और किए जाने की जरूरत है।
सुप्रीम कोर्ट
अमेरिका में 18 मार्च को सीनेट से पारित Families First Corona Virus Response Act के तहत हर नागरिक के कोरोना टेस्ट के खर्च को सरकार ने उठाना स्वीकार किया, वहां भी कारपोरेट्स को हर तरह के कर्जमाफी से बाहर रखा गया है, लेकिन हमारे यहां कोरोना की आपदा के मद्देनजर गरीबों को कर्ज पर सूद की राहत देने की योजना में देश के सबसे अमीर 8600 लोगों को शामिल कर लिया गया।
बीते छह सालों से बैंकों का एनपीए कम करने के लिए केंद्र सरकार हर साल दो लाख करोड़ का फंड बैंकों को मुहैया करा रही है, बगैर ये पूछे कि ये लाखों करोड़ का कर्ज किनका है? लेकिन जब बात उनको राहत देने की हुई जिनकी कोरोना की वजह से नौकरी छूट गई या रोजगार प्रभावित हुआ तो सरकारी बैंकों के पसीने छूट गए। स्टेट बैंक का तो यहां तक कहना है कि अगर उसे ब्याज पर माफी देनी पड़ी तो 65 साल में कमाई पूंजी घट कर आधी रह जाएगी।
ये इसलिए आपको जानना चाहिए क्योंकि अगले कुछ महीनों में बैंकों के बड़े एनपीए की खबर टेलीकॉम से आने वाली है, जहां स्पेक्ट्रम की नीलामी के नाम पर बैंकों ने कंपनियों को हजारों करोड़ का कर्ज दिया लेकिन सरकार की ओर से कई दौर की राहत के बावजूद अब जिओ के अलावा तमाम टेलीकॉम कंपनियां बड़े घाटे में हैं। क्या इन कंपनियों का कर्ज माफ किया जाएगा? इसी तरह का मामला स्टील और पॉवर का है। आप देखेंगे कि जैसे ही इनके एनपीए का मामला अदालत में आएगा तब बैंक एक बार फिर से उदार हो जाएंगे।