लॉकडाउन 4 @ 8 pm
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हमारे देश में प्रधानमंत्री सिर्फ सरकार का मुखिया नहीं होता। उसका सोना, जागना, हंसना,बोलना.. सब खबर है। वो खबर देखता नहीं, खबर बनाता है, वो खुद प्राइमटाइम है, वो इंडिया का #The Truman Show है। इसलिए हमारे पीएम को 8पीएम यानी टीवी का प्राइम टाइम पसंद है।
8 नवंबर 2016 की नोटबंदी हो या 24 मार्च की देशबंदी, प्रधानमंत्री मोदी ने देश के लिए बेहद अहम फैसलों को पर्सनल शो की तरह पेश किया…न नोटबंदी के लिए रिजर्व बैंक की सलाह ली, न लॉकडाउन में मुख्यमंत्रियों की।
लेकिन लॉकडाउन 4 @ 8 pm के पहले उन्होंने तीस राज्यों के मुख्यमंत्रियों से बात की। इशारा साफ है पीएम चाहते हैं, कि अब जबकि कोरोना का पीक शायद एक महीना दूर है और इतिहास में देश का सबसे बड़ा रिवर्स माइग्रेशन शहरों से गांवों की ओर शुरू हो चुका है, इस बिगड़े हालात का बोझ राज्यों के कंधे पर भी डाला जा सके।
सवाल ये नहीं है कि लॉकडाउन 4 कैसा होगा, ज्यादा बड़ा सवाल ये है कि कोरोना के खिलाफ महाभारत में जिसके अर्जुन, राज्य हैं,क्या प्रधानमंत्री मोदी और केंद्र सरकार सारथी कृष्ण की भूमिका निभाने को तैयार हैं? ये लड़ाई ‘जान भी जहान भी’, ‘जन से जग तक’ जैसे मुहावरों से नहीं जीती जाएगी। सड़कों और रेल ट्रैक पर चल कर गरीबों ने लॉकडाउन के खिलाफ जो अविश्वास प्रस्ताव पेश किया है, उसके बाद अगर उसे 17मई के बाद बढ़ाया जाता भी है तो ये साफ है कि ऐसा सिर्फ रेड जोन में और वहां भी कंटेनमेंट जोन में ही होगा।
राज्य इस लड़ाई को किस तरह लड़ना चाहते हैं, इसकी रुपरेखा काफी हद तक उन्होंने साफ कर दी है। इसमें तीन तरह की बातें हैं।
छत्तीसगढ़, केरल, दिल्ली, राजस्थान समेत ज्यादातर राज्य चाहते हैं कि रेड, ग्रीन, और ऑरेंज जोन में जिले को रखने का अधिकार राज्यों को मिले। साफ है वो चाहते हैं कि अगर लड़ाई हमारी है, तो नेतृत्व भी हमारा हो ।
बिहार, उड़ीसा, तमिलनाडु और तेलंगाना जैसे राज्य चाहते हैं कि अगर हालात से निबटने की जिम्मेदारी हमारी है तो फिर रेल या हवाई सेवा शुरू की जाए तो इसके लिए पहले हमारी राय ली जाए। यानी गृह मंत्रालय के अफसर प्रेस रिलीज के बम फोड़ना बंद करें, हमें हमारा काम करने दें।
सबसे अहम मांग है पंजाब और दिल्ली जैसे राज्यों की, जिनका कहना है कि लॉकडाउन के केंद्र सरकार के फैसले की वजह से उनकी आय 90 फीसदी तक कम हो गई है। अब इस लड़ाई में स्वास्थ्य से लेकर इकोनॉमी तक को जिंदा करने के लिए जो खर्च है वो केंद्र सरकार उठाए।
ये वो भूमिका है जिसको लेकर अमेरिका में प्रेसीडेंट ट्रंप और हमारे यहां पीएम मोदी सहज नहीं हैं। कई दास भी हैं जो उदास हो जाएंगे। लेकिन फैसला उन्हें करना है—खबर बनानी है या देश ?