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क्या आप लुईस ग्लूक को जानते हैं?

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क्या आप लुईस ग्लूक को जानते हैं?

Louise Glück, the nobel prize winner in literature
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क्या आपने लुईस ग्लूक (Louise Glück) का नाम सुना है? 8 अक्टूबर, गुरूवार को जब रॉयल स्वीडिश एकेडमी (Royal Swedish academy) के स्थायी सचिव मैट्स माल्म (Mats Malm) ने स्टॉकहोम (Stockholm) में साहित्य के नोबेल पुरस्कार 2020 (Nobel Prize in Literature 2020) की घोषणा की तब ये नाम अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर किसी परिचय का मोहताज़ नहीं रहा। नोबेल एकेडमी ने प्रतिष्ठित पुरस्कार की घोषणा करते हुए कहा – “लुईस ग्लूक को उनकी बेमिसाल काव्य शैली के लिए ये सम्मान दिया गया है, जो खूबसूरती के साथ व्यक्तिगत अस्तित्व को वैश्विक पहचान दिलाती है (for her unmistakable poetic voice that with austere beauty makes individual existence universal)।”

नोबेल पुरस्कार के तहत स्वर्ण पदक और एक करोड़ स्वीडिश क्रोनर (लगभग 8.20 करोड़ रुपये) की राशि दी जाती है। साल 2010 से लेकर अब तक वह चौथी ऐसी महिला हैं जिन्हें साहित्य का नोबेल पुस्कार दिया गया है। नोबेल की शुरूआत साल 1901 में हुई और तब से लेकर अब तक वह ये सम्मान पाने वाली 16वीं महिला हैं। आख़िरी बार साल 1993 में अमरीकी लेखिका टोनी मरिसन को साहित्य का नोबेल पुरस्कार दिया गया था।

नोबेल एकेडमी ने 2006 में आये उनके 11वें कविता संग्रह “एवर्नो” (Averno) को  ‘उत्कृष्ट संग्रह’ माना है, जिसमें मृत्यु के देवता हेड्स की कैद में नरक में पर्सफेनी की मिथक (यूनानी पौराणिक कथा) की शानदार व्याख्या है। लुईस ग्लूक (Louise Glück) की कविताएं मानवीय दर्द, मौत, परिवार की पृष्ठभूमि और उनकी जटिलताओं को बयां करती हैं। उनकी कविताएं बाल्यावस्था, पारिवारिक जीवन, माता-पिता और भाई-बहनों के साथ घनिष्ठ संबंधों पर केंद्रित रही हैं। नोबेल साहित्य समिति के अध्यक्ष एंड्रेस ऑल्सन (Anders Olsson) ने लुईस ग्लूक (Louise Glück) की प्रशंसा करते हुए कहा कि उनके पास बातों को कहने का स्पष्टवादी और समझौता नहीं करने वाला (candid and uncompromising) अंदाज है, जो उनकी रचनाओं को और बेहतरीन बनाता है।

1943 में न्यूयॉर्क (New York) में जन्मी 77 वर्षीया लुईस ग्लूक (Louise Glück) अमेरिका के येल यूनिवर्सिटी (Yale University, New Haven, Connecticut) में अंग्रेजी की प्रोफेसर हैं और वर्तमान में कैम्ब्रिज (Cambridge, Massachusetts)  रहती हैं। 1968 में लुइस की पहली किताब फर्स्टबॉर्न (First Born) प्रकाशित हुई थी और वह जल्द ही अमेरिकी समकालीन साहित्य के सर्वाधिक जाने-माने कवियों की श्रेणी में शामिल हो गईं।

1992 में आए द वर्ल्ड आइरिस (The World Iris) को लुइस के बेहतरीन कविता संग्रह में शुमार किया जाता है। इस कविता संग्रह के लिए उन्हें साल 1993 में पुलित्जर पुरस्कार (Pulitzer prize) दिया गया था। साल 2014 में उन्हें ‘फेथफुल एंड वर्चुअस नाइट्स’ (Faithful and Virtuous Night) के लिए नेशनल बुक अवॉर्ड (National Book Award) से सम्मानित किया गया।

साल 2008 में लुईस ग्लूक (Louise Glück) को वालेस स्टीवेंस पुरस्कार (Wallace Stevens Award ), 2001 में बोलिंजन प्राइज फॉर पोएट्री (Bollingen Prize for Poetry) और 2015 में नेशनल ह्यूमेनिटीज मेडल (National Humanities Medal) दिया गया। लुईस की कविताओं के अब तक 12 संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं जिनमें ‘डिसेंडिंग फिगर’ (Descending Figure), ‘अरारट’ (Ararat) और ‘द ट्राइंफ ऑफ एकिलेस’ (The Triumph of Achilles) जैसे संग्रह प्रमुख हैं।

लुइस ग्लूक (Louise Glück) ने आघात, इच्छा और प्रकृति के उजास पहलुओं पर ध्यान केंद्रित किया । इन व्यापक विषयों की खोज में, उनकी कविता उदासी और अलगाव की स्पष्ट अभिव्यक्तियों के लिए जानी जाती है। लुइस की ऐसी ही एक मार्मिक कविता ‘एक फंतासी’ (‘A Fantasy’) के साथ आपको छोड़ रहा हूँ, जिसका भाषा-संयम याद रखने लायक है: (हिंदी में अनुवाद मंगलेश डबराल जी ने किया है)

एक फंतासी – लुइस ग्लूक (Louise Glück)

मैं आपको कुछ बताती हूँ: हर दिन

लोग मर रहे हैं. और यह सिर्फ शुरुआत है.

हर दिन अंत्येष्टि-स्थलों में नयी विधवाएं जन्म लेती हैं,

नयी-नयी अनाथ. वे दोनों हाथ बाँध कर बैठती हैं,

नये जीवन के बारे में कुछ तय करने की सोचती हुईं.

फिर वे कब्रिस्तान जाती हैं,  कुछ तो

पहली बार. उन्हें रोने से डर लगता है,

कभी रुलाई न आने से. फिर कोई उनकी तरफ झुकता है

उन्हें बताता है कि आगे क्या करना है, जिसका मतलब हो सकता  है

कुछ शब्द कहना, कभी

खुली हुई कब्र में मिट्टी डालना.

और उसके बाद सभी घर लौटते हैं,

जो अचानक मातमपुर्सी वालों से भर गया है.

विधवा सोफे पर बैठ जाती है, एकदम धीर-गंभीर,

लोग एक-एक कर उससे मिलने के लिए आगे आते हैं,

कभी उसका हाथ थामते हैं, कभी गले लगाते हैं,

उसके पास कहने के लिए हमेशा कुछ न कुछ होता है,

वह उन्हें शुक्रिया कहती है, आने के लिए शुक्रिया.

मन ही मन वह चाहती है कि वे चले जायें.

वह लौटना चाहती है कब्रिस्तान में,

बीमारी वाले कमरे में, अस्पताल में. वह जानती है

कि यह संभव नहीं है. लेकिन वही उसकी अकेली उम्मीद है,

पीछे लौटने की इच्छा. थोडा सा ही पीछे,

बहुत पीछे विवाह और  पहले चुंबन तक नहीं.

–अनुवाद: मंगलेश डबराल

यह कविता उनके काव्य संग्रह ‘अरारट’ (Ararat) में संकलित है। लम्बे जीवन अनुभवों, संघर्षों तथा वृहत्तर लेखकीय जीवन बिताने के बाद ‘लुइस ग्लूक’ (Louise Glück) को यह पुरस्कार मिलना, वाकई उनके समस्त जीवन का सम्मान है और इस सम्मान के लिए उन्हें ढेर सारी बधाई एवं भावी सृजन के लिए शुभकामनाएँ !!!

लेखक – मंजुल मयंक शुक्ल (manjul.shukla@gmail.com)

 

Shailendra

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